अमर आनंद I योगी फिर से आ चुके हैं। साथियों के साथ यूपी में जीत के बाद जश्न में लखनऊ में नमूदार हुए योगी के चेहरे गुलाल का रंग और दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की जुबान से योगी के लिए निकले प्रशंसा गीत ये बता रहे हैं की जो बात 2017 में संयोग से हुई थी वो बात 2022 में प्रयोग से हुई है और 2024 और उसके बाद के भारत और बीजेपी के सियासी परिदृश्य में योग से होगी।
यानी देश और दुनिया में होंगे योगी…. योगी…योगी।
एक अक्खड़ मिजाज और जिद्दी माने जाने वाले संन्यासी को बुल्डोजर वाले अपने अंदाज की वजह से उत्तर प्रदेश अपने मुख्य मंत्री के रूप में लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए दोहरा रहा है और देश प्रधानमंत्री के रूप में उसकी राह देख रहा है। चाह, राह और प्रवाह से युक्त यह मंगल बेला है जिसमें सब वाह – वाह कर रहे हैं और जो नहीं कर रहे हैं वो योगी के तेज से झुलसे हुए हैं या उनसे हारे हुए हैं। देश उस योगी से आत्मीय लगाव पैदा कर रहा है जो अपने परिवार से दूर रहकर अपने आप को वसुधैव कुटुंबकम की ओर ले जा रहा है। राम से राष्ट्र की ओर बढ़ रहा है। भगवा और भगवान में विश्वास की अपनी ताकत से सियासी दुश्मनों और समाज के दुश्मनों को रौंद रहा है।
2017 में सीएम की जो कुर्सी योगी को कथित रूप से संघ के दखल से मिली थी और जिस कुर्सी पर प्राथमिक तौर पर डिप्टी सीएम केशव मौर्य का दावा था वो कुर्सी अब उन्हें स्वाभाविक तौर पर मिली है और उसके संभावित दावेदार मौर्य अपनी पारंपरिक और पसंदीदा सिराथू सीट पर खेत रहे हैं।
इधर योगी ने अयोध्या की बजाय गोरखपुर शहर से चुनाव लड़कर भी वोटों की अच्छी फसल उगाई।योगी ने कुछ हद तककेद्रीय नेताओ से कुछ हद तक रणनीतिक उपेक्षा झेली। पार्टी के पोस्टरों से कम किए गए। साथियों ने भी अपने अपने स्वार्थ के हिसाब से बर्ताव किया। जातिवादी राजनीति का आरोप झेलने वाले योगी की कुर्सी चुनाव के बाद किसी पिछड़ी जाति के नेता को दिए जाने की भी दबी जुबान से चर्चा हुई मगर परिणाम ये निकला कि मोदी के बाद गर योगी है तो मुमकिन है। यह अलग बात है कि योगी के मुमकिन होने में पार्टी के कई नेताओं और उनके हितों का नामुकिन होना भी शामिल है।
2022 को 2024 से सीधे- सीधे जोड़ कर देखा जा रहा है और इस योग में संन्यासी योगी के अलावा पार्टी के अंदर से बाहर तक किसी और का नाम दूर – दूर तक महसूस नहीं किया जा रहा है। भले ही मोदी के करीबी गृह मंत्री इस बात को नजर अंदाज करें लेकिन योगी का अंदाज मोदी के अंदाज के बाद सबसे बड़ा और व्यापक माना जाने लगा है। आरएसएस की पसंद योगी का बढ़ता तेज उन्हें पीएम पद की दावेदारी की ओर ले जा रहा है और उनका मार्ग पूरी तरह प्रशस्त भी नजर आ रहा है।
आरएसएस के कहने से 2017 में योगी को सीएम की कुर्सी तक पहुवाने वाले पीएम मोदी के बाद उनके सामने दूर- दूर तक कोई नहीं है। सत्तर के आसपास के बड़े कद वाले नेता गडकरी और राजनाथ भी नहीं और योगी से कई मामलों में असहमत अमित शाह भी नहीं। हालांकि यूपी में बीजेपी को दुबारा लाने में केंद्रीय नेताओं में सबसे ज्यादा मेहनत अमित शाह ने ही की है। हो सकता है उनका मकसद कुछ और भी रहा हो, लेकिन योगी की वापसी में उनकी भूमिका भी कम नहीं मानी जाएगी। बीजेपी में आगे की राजनीति में अगर दो सबसे बड़े नेताओं के हित आमने- सामने होंगे तो वो गुजरात से दिल्ली पहुंचे अमित शाह और यूपी में दोबारा परचम लहरा रहे योगी ही होंगे।
पार्टी के अध्यक्ष रहे रणनीतिकार और मोदी के सबसे बड़े सिपहसालार मोदी के बाद नंबर दो समझे जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी दोनों 2024 के बाद के सियासी परिदृश्य में पीएम पद के लिए आमने – सामने होंगे। परिवार के हितों के साथ चलने वाले व्यापारिक स्वभाव के शाह और परिवार के बगैर चलने वाले सन्यासी स्वभाव के योगी में से योगी तमाम समीकरणों के बावजूद देश की पसंद माने जाएंगे, ऐसा समझा जाना चाहिए।
(लेखक टीवी और अखबार में रहे वरिष्ठ पत्रकार है।)