नये संसद भवन में पहले ही कार्य दिवस पर महिला शक्ति वंदन विधायक पेश करके मोदी सरकार ने नया इतिहास रच दिया । यद्धपि लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही जगह इसके पेश होने के बाद हंगामे हुए फिर भी इस विधेयक का बुधवार को चर्चा के बाद पारित होना तय माना जा रहा है किसी भी राजनीतिक दल में इतनी हिम्मत नहीं कि वह नैतिक तौर पर इसको मना कर सके ।
इस विधेयक के अनुसार एससी एसटी या ओबीसी के लिए अलग से प्रावधान नहीं है संविधान के अनुच्छेद 330 के जरिए एसटी एससी वर्ग के लिए आरक्षित की गई कल 131 में एक तिहाई यानी 44 सीटों पर महिलाओं को आरक्षण मिलेगा । वहीं कुल सीटों में 181 सीटों पर महिलाओं को आरक्षण मिलेगा । विधेयक में प्रारंभ में 15 साल के लिए आरक्षण को लागू किया गया है। यद्धपि यह माना जा रहा है कि इसके बाद इसको समाप्त करना मुश्किल होगा।
विधायक भले ही संसद से परित बुधवार को हो जाएगा किंतु विशेषज्ञों के अनुसार यह 2024 के लोकसभा चुनाव में लागू नहीं हो पाएगा क्योंकि विधेयक में कहा गया है कि कानून अनुसूचित होने और परिसीमन के बाद ही आरक्षण लागू किया जाएगा परिसीमन के लिए जनगणना जरूरी है कोविड के कारण 2021 में होने वाली जनगणना अभी तक नहीं हुई है। इसके 2027 में पूरा होने की उम्मीद है इसके बाद ही परिसीमन होगा उसके बाद ही महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों को आरक्षित किया जा सकेगा।
कांग्रेस से लेकर भाजपा तक सब कर रहे समर्थन पर सबको अपनी सीट पर है दुविधा
नारी शक्ति वंदन के रूप में महिला आरक्षण बिल्ला कर जहां एक और मोदी सरकार ने अपना मास्टर स्ट्रोक चल दिया है वहीं कांग्रेस भी से अपना बात कर क्रेडिट लेने में पीछे नहीं है इसके साथ ही अन्य राजनीतिक दल भी लगातार इसके लिए अपनी राजनीति को महत्वपूर्ण बता रहे हैं। किंतु गौतम बुद्ध नगर में भाजपा और कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के लिए यह बिल समस्या बनता नजर आ रहा है । कहने को तो यह कहा जा रहा है कि 2024 के चुनाव में इस बिल के आधार पर टिकट वितरण नहीं होगा किंतु भाजपा और कांग्रेस दोनों ही 2024 में इस विधेयक के असली हकदार होने के लिए 33% सीटों पर महिलाओं को टिकट दे सकती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह आदत भी रही है कि वह हर चुनाव में 40 परसेंट नेताओं को बदल देते हैं ऐसे में महिला आरक्षण के बहाने कानूनी तौर पर ना सही नैतिक तौर पर भाजपा में इसकी पहल करके वह यह संदेश देने की कोशिश करेंगे कि हम इस विधेयक को लेकर गंभीर है और सबसे पहले पार्टी के अंदर 33% टिकट हमने दिए हैं जिसके कारण गौतम बुध नगर में टिकट मांग रहे वर्तमान सांसद डॉ महेश शर्मा उनके विरोधी गोपाल कृष्ण अग्रवाल, बी एन सिंह, धीरेंद्र सिंह और नवाब सिंह नागर जैसे तमाम दावेदारों की सुविधा बढ़ गई है ।
इस सीट पर महिला दावेदारों के लिए अब नए नाम खोजे जाने शुरू हो चुके हैं । जिले के एक राजनीतिक विश्लेषक में तो बीते दिनों दोनों प्राधिकरण की सीईओ रही एक अधिकारी का नाम भी मजाक में ही सही प्रस्तावित कर दिया वही जिले में मौजूद कई महिला डॉक्टर और वकील भी फिलहाल गौतम बुध नगर से टिकट पाने के सपने देख रहे हैं।
जिले में भाजपा के एक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा की स्थिति तो यह हो गई है कि आने वाले संगठन के कार्यकारिणी विस्तार में भी कहीं महिलाओं को 33% स्थान देने की पॉलिसी भाजपा ना कर दे। ऐसे में संसद से जनप्रतिनिधियों से लेकर कार्यकर्ता स्तर तक सब में एक नए तरीके के आरक्षण का डर फिलहाल बैठा हुआ है
इसके उलट कांग्रेस की स्थिति और भी दुविधा वाली है जानकारों की माने तो कांग्रेस में पहले ही कार्यकर्ताओं का अकाल पड़ा हुआ है ऐसे में दिखाने के लिए ही सही अगर महिलाओं को टिकट देने की रणनीति कांग्रेस भी अपना लेती है तो कांग्रेस के बचे हुए कार्यकर्ताओं के सपनों पर यह आखिरी कुठाराघात होगा
पंचायत पति और प्रधान पति की तरह न अवतरित हो जाएं विधायक पति और सांसद पति, बौद्धिक वर्ग की बड़ी चिंता
वहीं जिले के बौद्धिक समाज में एक अलग तरीके की बेचैनी है । बौद्धिक वर्ग का कहना है की महिलाओं को 33% आरक्षण तो नारी शक्ति वंदन विधायक के जरिए मिलने की आशा की जा रही है । किंतु क्या इसका हश्र पंचायत चुनाव जैसा तो नहीं हो जाएगा I इसके बाद पंचायत या प्रधान पति के तरह विधायक और सांसद पति की भूमिका बढ़ जाए या फिर पार्टियां राजनीतिक नेताओं की पत्नियों को उनके स्थान में टिकट देना शुरू कर दें ।
ऐसा इसलिए सोचा जा रहा है क्योंकि अक्सर नेताओं के जेल जाने के बाद उनकी पत्नियों को पार्टियां टिकट देती रही हैं। बिहार में लालू प्रसाद यादव इसके बड़े हस्ताक्षर हैं उनके अलावा उत्तर प्रदेश में डिंपल यादव इसी तरीके से चुनाव लड़ने को आगे आई थी और भी कई ऐसे किस्से है जो लगातार राजनेताओं के जेल जाने की स्थिति में उनकी पत्नियों के चुनाव लड़ने की बात कहते हैं ।
विशेष तौर पर एससी एसटी या ओबीसी के अंतर्गत आने वाले समाजों में यह स्थिति ज्यादा है जहां महिलाओं को आज भी दूसरे दर्जे पर रखा जाता रहा है प्रधान और ब्लॉक प्रमुख या पंचायत अध्यक्ष बनने के बावजूद उनके परिवार के लोग ही फैसला करते रहे हैं । ऐसे में महिला सशक्तिकरण कि इस कोशिश को कितना कामयाब माना जाएगा या इस कोशिश के लिए मात्र 15 साल बहुत रहेंगे यह भी चर्चा का विषय है ।
वही बौद्धिक वर्ग में ही एक बड़ा हिस्सा यह भी मान रहा है कि पंचायत और प्रधान पतियों के नाम पर भले ही एक संशय सांसद और विधायक स्तर पर बन रहा हो । किंतु देश की सर्वोच्च सदन में पहुंचने के बाद धीरे-धीरे ही सही महिला राजनेताओं की संख्या में न सिर्फ बढ़ोतरी होगी बल्कि उनके आत्मविश्वास में भी सुधार होगा जिसका परिणाम अगली पीढ़ी की उनकी महिला राजनेताओं में दिखाई देगा । देश में कई ऐसे राजनेता है जिनकी अगली पीढ़ी महिला ही है दक्षिण में कर की बेटी को हम इस रूप में देख सकते हैं इसके अलावा शरद पवार की वारिस के तौर पर सुप्रिया सुले को आगे करना भी इसी कड़ी का एक हिस्सा भर है ।
महिला सशक्तिकरण के दावे करता यह बिल कितना सफल हो पाएगा इसको लेकर आपकी क्या राय है आप हमें हमारे सोशल मीडिया हैंडल्स पर दे सकते हैं।