गौतम बुध नगर में भाजपा से टिकट लेना है तो वर्तमान सांसद डा महेश शर्मा के बराबर नहीं उनसे आगे आ कर खेलना होगा । ऐसी बातें अक्सर दावेदारों के बीच होती रहती है । गौतम बुध नगर में डॉक्टर महेश शर्मा के मीडिया प्रबंधन को लेकर तमाम चर्चाएं सामने आती रहती हैं
लोगों के अनुसार वर्तमान सांसद डॉक्टर महेश शर्मा ने 20 वर्षों में न सिर्फ यहां के समाजसेवियों और व्यापारियों के बीच अपनी पैठ बनाई है बल्कि यहां मौजूद पत्रकार लॉबी में भी अपनी पहुंच और पकड़ दोनों को मजबूत रखा है। कहा तो यहां तक जाता है कि यहां मौजूद कई पुराने पत्रकारों, समाचार पत्रों और मंचों पर समाचार वैसे ही प्रकाशित होते है, जैसी प्रेस विज्ञप्ति कैलाश पर्वत से बनकर आती है। बीते दिनों शहर में महेश शर्मा विरोधी लाबी के एक पत्रकार ने डॉक्टर महेश शर्मा की पत्रकारों के साथ एक गुप्त मीटिंग के बारे में सोशल मीडिया पर चर्चा भी की थी।
ऐसे में उनके सामने इस बार सांसद पद के लिए टिकट मांग रहे, बीएन सिंह, धीरेंद्र सिंह, नवाब सिंह नागर, प्रो अजय छोकर और गोपाल कृष्ण अग्रवाल जैसे नेताओं ने भी लगातार अपनी विजिबिलिटी को बढ़ाने के लिए मीडिया के साथ संबंध मधुर करने शुरू किए है और सभी विपक्षी दावेदार अपने-अपने तरीके से पत्रकारों को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं ।
किंतु बीते रविवार कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद यह कहा जा रहा है कि कहीं ऐसा तो नहीं इनमें से एक दावेदार ने जल्दबाजी में पत्रकारों को खुश करने की जगह अपने हाथ जला लिए है । बताया जा रहा है कि इस नेता ने सरस्वती शिशु मंदिर में संघ के बड़े नेता का एक कार्यक्रम रखवाया । यहां संघ से विशेष संबंध रखने वाले पत्रकारों को बुलाया भी गया । किंतु खेल इसके बाद शुरू हुआ। बताया जा रहा है कि कार्यक्रम को मैनेज कर रहे कोऑर्डिनेटर ने कुछ पत्रकारों को सम्मान के नाम पर पैसे वितरित किए । संघ के कार्यक्रम में पत्रकारों को इस तरीके से सम्मानित करने की इस घटना पर जिले में प्रश्न पूछे जा रहे हैं लोगों का कहना है कि संघ के बेहद करीबी रहे राष्ट्रीय प्रवक्ता जल्दबाजी में वह काम कर गए हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए । बातें तो अब यहां तक हो रही है कि कहीं ऐसा ना हो कि राष्ट्रीय प्रवक्ता जल्दबाजी में अपने प्रबल विरोधी के किसी षड्यंत्र का शिकार ना हो जाए ।
वहीं प्रवक्ता के करीबी लोगों से इस बारे में जो पूछा गया तो उन्होंने जिस तरीके से अभिज्ञता दिखाई उससे स्पष्ट हो रहा है कि उनकी हालत कहीं चौबे जी छब्बे बनने चले थे दुबे जी बनकर लौटे वाले ना हो जाए।