राजेश बैरागी l तीर्थ नगरी ऋषिकेश की पहचान और उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) के पर्वतीय क्षेत्र में उद्योगों की स्थापना का पहला सोपान आईडीपीएल (भारतीय औषधि एवं फार्मास्युटिकल लिमिटेड) के अवशेषों को अंततः मिटाया जा रहा है। यह एक सार्वजनिक क्षेत्र अर्थात सरकारी दवा कंपनी थी जिसे 1991 में कांग्रेस सरकार की ग्लोबलाइज़ेशन की नीतियां स्वीकार करने के फलस्वरूप बीमार घोषित किया गया।2014 में सत्ता में आने पर और आत्मनिर्भर भारत बनाने का राग अलापने के बावजूद मोदी सरकार ने भी इस अत्यंत महत्वपूर्ण दवा कंपनी को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया बल्कि 28 दिसंबर 2016 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे पूरी तरह बंद करने का फैसला कर लिया। ऋषिकेश में आम चर्चा है कि इस दवा कंपनी की 834 एकड़ (3.38 मिलीयन वर्गमीटर) भूमि को गुजरात के किसी उद्योगपति को देने की तैयारी है। उद्योगपति द्वारा यहां अन्तर्राष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर और वाटर पार्क बनाने की योजना की भी चर्चा है।
देश में पहली बार जीवनरक्षक दवाओं का उत्पादन करने वाली आईडीपीएल का शिलान्यास 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किया था।1962 में इसका निर्माण शुरू हुआ और 1967 में यहां दवाओं का उत्पादन प्रारंभ हुआ। इस दवा कंपनी ने एंटीबायोटिक दवा टेट्रासाइक्लिन, पेनिसिलिन,स्ट्रेप्टोमाईसिन तथा गर्भनिरोधक गोलियां माला डी आदि अनेक जरूरी दवाओं का उत्पादन किया। इसमें डेढ़ हजार से अधिक स्थाई और तीन हजार से अधिक अस्थाई कर्मचारी काम करते थे। यह कंपनी आरक्षित वन की पट्टे की भूमि पर स्थापित की गई थी। यहां कर्मचारियों के 2700 मकानों की विशाल टाउनशिप, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स,इंटर कॉलेज, केंद्रीय विद्यालय,खेल का मैदान, थाना, डाकघर जैसी तमाम नगरीय सुविधाओं से सुसज्जित किया गया। यह एक उद्योग तीर्थ स्थल था। यहां न केवल उत्तराखंड के पहाड़ी लोगों को बल्कि देश के कई राज्यों के लोगों को बड़ी मात्रा में रोजगार हासिल था।
हरिद्वार से ऋषिकेश जाते हुए ऋषिकेश से तीन किलोमीटर पहले दाईं ओर आईडीपीएल का चमकता विशाल द्वार तीर्थयात्रियों को जंगल में मंगल का अनुभव कराता था।इसी कंपनी में काम करते हुए जीवन गुजारने वाले और इसी टाउनशिप में जन्म लेने वाले लोग अब अपने आशियाने को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। उत्तराखंड सरकार और स्थानीय जिला प्रशासन उनके आशियाने को जल्द से जल्द ध्वस्त कर भूमि को अपने कब्जे में लेना चाहते हैं। कर्मचारियों की सेवा भी इसी प्रकार जबरन समाप्त की गई थी।
उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार मनोज रौतेला बताते हैं कि कर्मचारियों को जबरन निकाला गया है और उनका बकाया पैसा भी पूरा नहीं दिया गया है। टाउनशिप में जन्मे और कंपनी के एक दिवंगत कर्मचारी के पुत्र अनिल कुटलहेरिया कहते हैं कि आज भी इस कंपनी को ज्यों का त्यों चालू किया जा सकता है। उनका दावा है कि यह कंपनी हमेशा लाभ में रही है। इसके लाभ से आईडीपीएल के गुरुग्राम और हैदराबाद के संयंत्रों को स्थापित किया गया।हालांकि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कंपनी टाउनशिप के वाशिंदों को उजाड़ने पर फिलहाल स्टे लगा दिया है।अगली सुनवाई की तिथि तक ये वाशिंदे अपने आशियानों के आगे बैठकर धरना दे रहे हैं।