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उद्योगों के विकास और नए उद्योग लगाने के लिए औद्योगिक भूखंडों की योजनाएं निकालकर उद्योगपतियों को ठगते प्राधिकरण अधिकारी : सुरेंद्र नाहटा ने लगाए आरोप

कोविड काल में भले ही सरकार तमाम तरीको से उधोगो को वापस पटरी पर लाने के लिए तमाम दावे कर रही हो लेकिन नॉएडा का शो विंडो कहे जाने वाले नॉएडा का हाल ऐसा नहीं है Iलघु,सूक्ष्म एवं मध्यम वर्ग के उद्यमी की संस्था की और से सुरेन्द्र नाहटा ने इस मामले पर सरकार से गुहार लगाईं है

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सुरेन्द्र नाहटा ने अपने पत्र में लिखा है कि नोएडा व ग्रेटरनोएडा प्राधिकरण द्वारा विगत या वर्तमान में निकाली गई भूखंडीय योजनाएं उद्योगपतियों के हितों को ध्यान में रखते हुए नहीं बल्कि प्राधिकरण अपनी कमाई को तव्वजों देते हुए निकाल रहे हैं। जिला गौतमबुद्धनगर के तीनों प्राधिकरण द्वारा भारत में सबसे ज्यादा दरों पर औद्योगिक भूखण्ड बेचे जाते है जोकि 6000/- 7000/- रुपए प्रति वर्ग मीटर से ज्यादा नहीं होने चाहिए क्योंकि लघु,सूक्ष्म एवं मध्यम वर्ग के उद्यमियों के ज्यादा निवेश हो जाने से उद्यमियों के पास उद्योग में वर्किंग कैपिटल की कमी हो जाने से उद्योग चलने में बहुत दिक्कतें आती है! हमारी संस्था की तरफ से औद्योगिक भूखंडों की कीमत कम किए जाने के लिए बार बार प्रार्थना की जाती रही है! और इतने कुछ के बाद भी योजनाओं में पंजीकरण के नाम पर लूट-खसोट का खेल किया जा रहा है। स्थिति यह है कि अब तक नोएडा प्राधिकरण में जमा हजारों उद्यामियों का जमा करोड़ों रुपए छह महीने बाद भी उनके खातों में ट्रांसफर नहीं किया जा सका। इसको लेकर तमाम शिकायते लगातार की जाती रही है।

नोएडा प्राधिकरण ने 25० से 2० हजार वर्गमीटर तक के भूखंड की योजना निकाली थी। महज 93 भूखंडों के लिए 78०० लोगों ने आवेदन पत्र प्राधिकरण की वेबसाइट से डाउनलोड किए थे। 5321 लोगों ने ब्राशर डाउनलोड किया आवेदन भी किया और रजिस्ट्रेशन भी कराया। वहीं इनमे से 4426 लोगों ऐस डाक्यूमेंट फीस, प्रोसेसिग फीस एवं ईएमडी जमा की गई थी। पंजीकरण राशि 3 लाख रुपए से लेकर 5० लाख और प्रोसेसिंग फीस करीब 23 हजार थी। प्रोसेसिंज फीस नॉनरिफंडेबल की गई। भूखंड आवंटित नहीं होने पर शेष रह गए उद्योगपती अब भी पंजीकरण फीस वापस लेने के लिए चक्कर लगा रहे है। प्रोसेसिंग फीस के करोड़ों रुपए प्राधिकरण डकार गया। यह पैसा कई महीनों से प्राधिकरण के खाते में जमा है।

आपको अवगत कराना चाहते है कि ग्रेटरनोएडा प्राधिकरण द्वारा 2० भूखंडों की योजना निकाली गई। यह सभी भूखंड 1००० से 8००० वर्गमीटर तक के है। इसके लिए आवेदन मांगे गए है। यहा भी प्रोसेसिंग फीस 15 हजार और जी एस टी 18,% अलग से रखी गई है। यह पैसा वापस नहीं किया जाएगा। मांगे गए आवेदन के लिए लगभग दो दर्जन दस्तावेज CA से सत्यापित करवाकर आवेदन के साथ संलग्न करने होते हैं जिसके लिए 25000/- से 50000/- चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा लिए जाते हैं! अतः आवेदन फॉर्म बनवाने व सीए फीस मिलाकर कुल 5० से 7० हजार का खर्च यानी एक आवेदन करने में करीब 1 लाख रुपए तक का खर्चा उद्यमी को लगेगा। कोविड काल में औद्योगिक योजना के नाम पर प्राधिकरणों द्वारा उद्योगपतियों के साथ इस तरह की ठगी करना अनुचित है।

संस्था आपसे आग्रह करती है कि योजना उद्योगपतियों के लिए जरूरी है। लेकिन उसके क्रियान्वन में बदलाव किया जाए। पहले उद्यमियों से आवेदन मांगे जाए। ड्रा कराया जाए। जिन उद्यमियों को भूखंड आवंटित हो जाए उन को प्रोसेसिंग फीस व पंजीकरण राशि जमा कराने के लिए समय बद्ध किया जाए। ऐसे में शेष उद्यमियों का न तो पैसा बर्बाद होगा और न ही डाक्यूमेंटेशन करने में समय बर्बाद होगा। इस पर विशेष ध्यान दिया जाए।

आपको यह भी बता दे कि यमुना विकास प्राधिकरणों द्वारा निकाली गई भूखंड योजना में उद्यमियों को आवंटित साल 2015 या उससे पहले के भूखंडों पर अब तक कब्जा नहीं मिल सका है। जबकि यह भूखंड पांच से छह साल पहले उद्यमियों को आवंटित हो चुके हैं। ग्रेटरनोएडा प्राधिकरण की योजना की यह स्थिति न हो इसलिए पजेशन मिलने पर होने वाली देरी के लिए प्राधिकरण पर अर्थदंड लगाया जाए। यह अर्थ दंड आवंटित भूखंड के स्वामी को दी जाए। यह नियम तीनों ही प्राधिकरणों पर लागू किया जाए। सिर्फ पजेशन देरी पर ही नहीं बल्कि पंजीकरण या धरोहर राशि वापस नहीं करने पर भी नियम लागू किया जाए।

प्राधिकरणों की योजनाओं में प्रोसेसिंग व पंजीकरण राशि जमा करने की बजाए उद्यमी बाजार भाव में भूखंड खरीद रहे है। यह भूखंड योजनाओं से सस्ते और तुरंत पजेशन मिलने वाले होते है या उद्यमी किराए पर ही फैक्ट्री चला रहे है। ऐसे हजारों उदाहरण है। इसकी वजह प्राधिकरण द्वारा सोच समझ कर उद्योगपतियों को परेशान करने वाली निती है। योजनाओं में एक बार फंसने वाले उद्यमी दोबारा प्राधिकरण की तरफ देखते तक नहीं। इससे राजस्व को नुकसान होता है। ऐसे में योजना के क्रियान्वन निति को पारदर्शी, सरल और स्पष्ट बनाई जाए। साथ ही नियमों के तहत उद्योगपति को समय से पजेशन मिलना चाहिए।

कोविड काल में उद्योगपतियों की मदद की बजाए प्राधिकरण विभिन्न तरीकों से उन पर आर्थिक बोझ डाल रहा है जिसको पहले भी कई बार अवगत कराया जा चुका है। अब योजनाएं जोकि उद्योगपतियों के हित के लिए होनी चाहिए उसमे भी प्रोसेसिंग फीस व पंजीकरण राशि पहले जमा करवाकर या विगत की योजनाओं में जमा राशि को अब तक वापस नहीं करना यह महाठगी के सामान है। इससे निजात दिलाई जाए।

एन सी आर खबर ब्यूरो

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