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फीसमाफ़ी : क्या स्कूलफीस माफी अभियान स्कूल और संगठनो के बीच रस्साकशी मात्र है ? भाग 1

फीस माफ़ी पर चल रहे स्कुल और अभिभावकों के बीच चल रही लड़ाई को हम दोनों ही पक्षों की बात को सामने रखने का प्रयास कर रहे है I इसको शुरू करने के समय हमारा विचार इस पर एक स्टोरी करने का था लेकिन आप लोगो के जबरदस्त रिस्पोंस ने हमें इसे विस्तृत रूप में बदलने पर मजबूर कर दिया I अब अगले 9 दिनों तक आने वाली इस सीरीज में हम विभिन्न संगठनो, स्कुलो, राजनेताओं. सामाजिक विचारको और सरकार के साथ साथ आम अभिभावकों का भी अनसुना पक्ष रखने की कोशिश करेंगे I इसी क्रम में सबसे पहले हम आल नोएडा स्कूल पैरेंट्स एसोशियेशन के सचिव मनोज कटारिया की बात आपके सामने रख रहे है I आप सभी लोग अपनी राय इस सीरीज पर दे सकते है ताकि इस विषय पर सभी का सच सामने आ सके

सबसे पहले मैं आपको यह बताना चाहूंगा कि हमारा संगठन (आल नोएडा स्कूल पैरेंट्स एसोशियेशन) के सोसाइटी एक्ट मे रजिस्ट्रेशन की बात आयी तो कुछ लोगो ने बताया कि आप रजिस्ट्रेशन के लिए मेरठ मे नीचे बैठे दलाल वहा अधिकारियों और बाबूओ से मिले हुए हैं और कुछ पैसे ज्यादा लेकर आपका कार्य आसानी से करा देंगे।

परन्तु हमने सीधे ऑफिस में बात की और हमारा रेजिस्ट्रेशन हो गया बाद में 2 आपत्ति लगकर आयी थी जो हमने पूरी करके दे दी। हमें कोई अधिकारी/बाबू और दलाल मिला हुआ नही मिला। यह सब कहानियाँ वही बनाते है जिनको बीच में दलाली खानी होती है।

आपका पहला प्रश्न है कि क्या स्कूल माफी अभियान स्कूल और संगठनो के बीच रस्साकशी मात्र है ?

अभिभावकों के संगठनों को अभिभावकों और स्कूल के बीच के पुल का कार्य करना चाहिए। सभी अभिभावक यही चाहते है कि उनके बच्चों की पढाई कम फीस मे बेहतर तरीके से हो जाये और अधिकतर स्कूल विद्यार्थियों को अच्छा सुविधा देने के नाम पर दुगना दाम वसूलना चाहते है।

अभिभावको और स्कूलों के बीच रस्साकशी होने का कारण स्कूल का हर जगह कमीशन बंधा हुआ होना है चाहे किताबे हो, ट्रांस्पोर्ट हो, स्कूल ट्रिप हो,गार्ड्स के लिए सेक्यूरिटी एजेंसी हो या फिर हाउस कीपिंग एजेंसी से आया या सफाई कर्मचारी हो या स्कूल प्रागंण मे किसी मेले का आयोजन हो या स्कूल के लिए कुछ भी ख़रीदा जाता हैं उसका बिल हो, यहाँ तक कि उन्होंने गरीब बच्चो को पढ़ाने के लिये या स्पोर्ट्स सिखाने के लिये फ़र्ज़ी अकादमी अभिभावकों के पैसों से बनायी जाती हैं।

चारो तरफ लूट ही लूट है। करोड़ो रुपए के रिज़र्व फण्ड है स्कूलों के पास परन्तु विश्वव्यापी महामारी मे स्टाफ का वेतन देने के लिए फीस बेरोजगार अभिभावक ही देगा। स्कूलों का लेखा परीक्षा करवा लीजिये। सब कुछ आपके सामने होगा और मेरा दावा है कि चार क्वार्टर मे से स्कूल तीन क्वार्टर की फीस से ही अपना सत्र पूरा कर सकता हैं।

आपका दूसरा प्रश्न है क्या स्कूल, नेता, संगठन, सरकार मिले हुए हैं ??

बाकी का मुझे नही पता परन्तु मुझे अभिभावक संगठन का पता है यदि संगठन स्कूल और सरकार से मिले हुए होते तो इतना विरोध प्रदर्शन क्यो करते ?? हम सरकार की उन नीतियों का भी विरोध करते हैं जो अभिभावकों या विद्यार्थियों के लिए हितकारी नही होती हैं। हम स्कूलों की उन नीतियों का विरोध करते जहा पर विद्यार्थियों की सुरक्षा, ट्रांस्पोर्ट या अध्ययन की बात आती हैं। या स्कूल द्वारा जरूरत से ज्यादा शुल्क वसूलने की शिकायत आती हैं।

हम संगठन वाले बड़े अजीब स्थिति में फस जाते है क्योकि स्कूल और प्रशासन दोनों हमारी सुनते ही नही और नेताओ से हमारा ना कोई नाता नहीं है और न ही कोई सासंद या विधायक खुलकर स्कूलों के विरोध कभी बोला है। अतः हम सभी अभिभावक मिलकर अपनी लड़ाई अपने आप लड़ते हैं।

स्कूलों और हमारे संगठन (ए एन एस पी ए) के बीच रस्साकशी केवल पिछले दो महीने से नही है परन्तु करीब पिछले पांच सालों से चली आ रही है। 2015 से स्कूलों ने अपनी फीस 20% से 50% तक बढा दी थी। क्या किसी अभिभावक का व्यापार या वेतन कभी इतना बढ़ा हैं ??

मनोज कटारिया

एन सी आर खबर ब्यूरो

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