प्रत्येक एक जनवरी मुझे याद दिलाता है कि आज के वैज्ञानिक युग में हम एक मिथकीय कालगणना से चिपके हुए हैं। इस अवसर पर विज्ञान का भूत हमारे ऊपर से उतर जाता है। इस अवसर पर हम एकाएक से परंपरावादी हो जाते हैं। काफी सहिष्णु और उदार भी हो जाते हैं कि अरे लोग खुशी मना रहे हैं, खुशी के इस अवसर पर नकारात्मक क्यों बोलना। परंतु इनकी यह सकारात्मकता, उदारता और सहिष्णुता होली, दिवाली, दूर्गापूजा, आदि अवसरों पर गायब हो जाती है।
मैं चकित होता हूँ कि सवा अरब के इस देश में एक नेता ऐसा पैदा नहीं हुआ जो सरकार से कहे कि जिस ऐतिहासिकता और वैज्ञानिकता के नाम पर आपने विक्रम संवत् को त्याग दिया उसी ऐतिहासिकता और वैज्ञानिकता के नाम पर इस ईसाई कैलेंडर को भी त्याग दो। किसी भी विश्वविद्यालय में एक इतिहासकार ऐसा पैदा नहीं हुआ जो जोर से हाँक लगा कर कहता कि यह एडी, बीसी या फिर आज प्रचलित बीसीई, सीई, सब अनैतिहासिक और अवैज्ञानिक हैं। ईसा मसीह एक मिथक है।
फिर भी आपकी इस भौंड़ी, पाखंडी और आत्महंता उदारता, सहिष्णुता और वैज्ञानिकता को मैं नमस्कार करता हूँ। आप सभी को इस ईसाई नववर्ष की ढेर सारी बधाई हो।
रविशंकर की फेसबुक वाल से