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क्या यही आम आदमी पार्टी की वैकल्पिक राजनीति है ? योगेश गर्ग

मूर्खदिवस की बधाइयाँ। मगर इस सब मैं आम आदमी पार्टी से सवाल बने हुए है उन्ही के कार्यकर्ताओं की आवाज़ हम आप तक पहुंचा रहे है , पढ़ये योगेश गर्ग के तीखे सवाल , हो सके तो लेख के नीचे उन्हें जबाब भी दे दे
सम्पादक 

आम आदमी पार्टी की हाल में हुई NC की मीटिंग और वहां दिए अरविन्द के भाषण को सुन कर ये प्रश्न मन में आता है की क्या ये एक नयी आम आदमी पार्टी है? क्या चुनाव लड़ते लड़ते आम आदमी पार्टी बदल गयी है?

१) अरविन्द ने असल में क्या कहा:

मोदी की ही तरह अरविन्द भी एक बहुत अच्छे वक्ता है। ये दोनों ही अपनी बात इतने प्रभावी ढंग से रखने की क्षमता रखते है की सुनने वाला ये भी भूल जाता है की ये अपनी ही कही गयी पुरानी बातों को काट रहे है। सुनने वाला इतना मंत्र मुघ्द हो जाता है की वो कई बार इस पर गौर ही नहीं कर पाता की भाषण में नेता असल में क्या बोल गया।

तो अरविन्द ने अपने इमोशनल भाषण में आखिर क्या कहा? अरविन्द ने असल में अपनी ही कही पुरानी बातों के खिलाफ बोला और अपने ही किये वादों का मजाक उड़ाया।

a) वॉलेंटियर से इनपुट लेना: अरविन्द ने इस मुद्दे को बड़े ही हल्के और मजाकिया ढंग से नकार दिया। और आश्चर्य की बात ये थी की अरविन्द ने ठीक वही बात कही जो बीजेपी और कांग्रेस कहती थी अरविन्द के स्वराज मॉडल का मजाक उड़ाते समय। पहले जब अरविन्द कहते थे की सरकार और गवर्नेन्स में जनता की भी भागेदारी हो, जनता से पूछ के निर्णय हो। तब बीजेपी और कांग्रेस ठीक वही सवाल ठीक उस ही स्टाइल में पूछते थे जो अरविन्द ने NC मीटिंग में पुछा। वो सवाल था – “क्या ये संभव है? आप ही बताइये क्या ये संभव है?”
अरविन्द शायद अब ये भूल गए की जैसे मोहल्ला सभा को सिर्फ अपने मोहल्ले से जुड़े मुद्दों का निर्णय लेने का हक़ होगा, वैसे ही पार्टी में भी पंचायत, नगर निगम, राज्य आदि लेवल पर वहां के लोकल वॉलेंटियर्स का इनपुट लिया जा सकता है और लिया जाना भी चाहिए।
वैसे वो अरविन्द ही थे जिन ने कांग्रेस के साथ सरकार बनाने का निर्णय लेते समय न केवल वॉलेंटियर्स बल्कि दिल्ली की आम जनता का भी इनपुट बड़ी ही जल्दी ले कर इस “असंभव” काम को संभव कर दिखाया था !!
और वैसे भी बात आज ही लागु करने की नहीं थी, पर एक सिस्टम बनाना चालू करने की थी।

b) डोनेशन की जांच: डोनेशन की जाँच पर अरविन्द ने कहा की – ‘ये लोग (प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव) उन 4 डोनेशन की जाँच करवाने की बात कर रहे है, इस जाँच से किसको फायदा होगा? मोदी को फायदा होगा। बीजेपी वाले बोलेंगे की जब तक जाँच चल रही है इस्तीफा दो।’
बड़े ही आश्चर्य की बात है की ये वो ही अरविन्द है जो अपने द्वारा किये हर खुलासे और आरोप पर कांग्रेस और बीजेपी से जाँच करवाने की बात करते थे। कल को अगर बीजेपी या कांग्रेस के नेता भी यही तर्क दें की भाई हमारे किसी भी मामले की जाँच हम नहीं करवाएंगे क्योंकी इस से विपक्ष को फायदा होगा, विपक्ष इस्तीफा मांगेगा तो क्या अरविन्द उनकी इस बात को मानेंगे??

राजनीती में सच्चाई, पारदर्शिता और न्याय की बात करने वाले अरविन्द कल जाँच से बचते हुवे दिखे।
वैसे चुनाव से ठीक पहले जब उन 4 डोनेशन का मामला चर्चा में आया था तब अरविन्द ने बरखा दत्त को दिए इंटरव्यू में इस देश के लोगों से वादा किया था की मुख्यमंत्री बनने के बाद वो खुद इन चार डोनेशन की जाँच के आदेश देंगे। प्रशांत भूषण इस वादे को अगर याद दिलाते है तो क्या वो पार्टी विरोधी बन जाते है?

c) टिकिट बंटवारे में खामियां: दिल्ली चुनाव में टिकिट बाँटने में कई खामियां हुई है इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। हमारे एक MLA प्रत्याशी के गोदाम से शराब पकड़ी गयी थी। एक MLA अमानतुल्ला खान पर कथित इंडियन मुजाहदीन के आतंकी Zia-Ur-Rehman की मदद करने का आरोप लगा था और ये वही अमानतुल्ला खान है जो कोर्ट के निर्णय के बावजूद बटाला हाउस एनकाउंटर को फर्जी बताते है और दोबारा जाँच की मांग करते है। अमानतुल्ला को AAP ने सिर्फ इसलिए टिकिट दिया क्यों की वो पिछड़ी जाती से है।
– http://zeenews.india.com/news/delhi/aam-aadmi-partys-okhla-candidate-supported-indian-mujahideen-operative_1541147.html
– http://indiatoday.intoday.in/story/aap-delhi-elections-results-batla-house-case-probe-amanatullah-khan/1/418174.html

इस के आलावा जिन 12 प्रत्याशियों की जाँच प्रशांत ने लोकपाल से करवाई उनमें से 2 दोषी पाये गए, 6 के खिलाफ लोकपाल ने चेतावनी दी और सिर्फ 4 को क्लीन चिट दी। इन 2 प्रत्याशियों के टिकिट वापस लिए गए। इसका मतलब साफ़ है की पार्टी ने टिकिट बंटवारे में गलती की थी और अगर प्रशांत ये मामला लोकपाल के पास नहीं ले जाते तो इन 2 अपराधी और गलत छवि के लोगों की भी देश के राजनीती में एंट्री आम आदमी पार्टी के जरिये हो जाती क्योंकी उन को टिकिट तो दिए ही जा रहे थे। अरविन्द खुद हमेशा कहते थे की राजनीती में अपराधी नहीं आने चाहिए। पर दुःख की बात ये है की आज अरविन्द, प्रशांत भूषण के इस कदम की तारीफ करना तो दूर बल्कि उन के इस कदम को पार्टी विरोधी बता रहे है, ये बोल रहे है की प्रशांत ने उन को बहुत परेशान किया।

d) पार्टी का RTI के अंदर आना: अरविन्द ने इस बात को बड़ी आसानी से एक लाइन मे टाल दिया की “जरूर आना चाहिए”। आना तो चाहिए पर अरविन्द इस बात का जवाब नहीं दे पाये की जब वो सभी पार्टियों को RTI के अंतर्गत आने की मांग करते है तो फिर वो खुद अपनी पार्टी को अभी तक RTI के अंदर क्यों नहीं लाये? क्यों प्रशांत भूषण को इस बात के लिए दबाव बनाने की जरुरत पड़ रही है? और ये कोई प्रशांत की मांग नहीं है, ये बात तो खुद अरविन्द पिछले ४ साल से बोल रहे है तो अपने ही वादे को पूरा करना अरविन्द की जिम्मेदारी है की नहीं? इसमें भूषण पार्टी विरोधी कैसे हो गए? क्यों अरविन्द अपने ही वादे को पूरा करने में प्रशांत भूषण पर अहसान जाता रहे है?
नोट: ये हम सभी जानते है की पार्टी की सभी बातें RTI में नहीं आ सकती। और इस बात की मांग कोई कर भी नहीं रहा है।

२) क्या योगेन्द्र और प्रशांत को निकालने की प्रोसेस सही थी?

क्या प्रशांत और योगेन्द्र को शो कॉज नोटिस दिया गया? क्या पार्टी ने इन दोनों पर जो आरोप लगाये उस के पर्याप्त सबूत दिए? क्या NC की मीटिंग में सही ढंग से वोटिंग हुई? क्या इन आरोपों की जाँच किसी स्वतंत्र संस्था जैसे की पार्टी का आतंरिक लोकपाल से करवाई गई?

कुछ AAP कार्यकर्ता ये बोलते है की सबूत तो है पर इसलिए नहीं दिखा रहे की उस से इन दोनों की बदनामी होगी। जब दोनों को सरे आम पार्टी विरोधी गतिविधी का आरोप लगा कर निकला गया तो बदनाम तो वैसे भी किया ही है पार्टी ने, तो अब सबूत बताने में क्या शर्म?

बात ये भी है की जब NC की मीटिंग में अरविन्द को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया,कुमार विश्वास को अपनी बात रखने दी गयी तो फिर जिन लोगों पर आरोप लगे थे उस को अपना पक्ष रखने का मौका क्यों नहीं दिया गया? और एक पक्ष की दलील के बाद ही कथित वोटिंग करवा ली गयी। ये तो ठीक वैसा ही होगा जैसे कोर्ट में सिर्फ एक ही पक्ष को अपनी दलील रखने दी जाये और फिर ज्यूरी से बोला जाये की अब इस के आधार पर अपना फैसला सुना दो।

NC की मीटिंग में मारपीट तो एक ऐसी शर्मनाक घटना है जो शायद अभी तक देश की किसी भी पार्टी की मीटिंग में नहीं हुई होगी जिसमे उस पार्टी के सर्वोच्च नेता आये हो। वैसे AAP इस बात को नकार रही है। पर सवाल उठता है की अगर मारपीट नहीं हुई तो फिर पार्टी पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग क्यों नहीं जनता के सामने रख देती? अरविन्द के भाषण के बाद मुश्किल से 1 घंटे के अंदर ही वोटिंग हो गयी थी तो इस सिर्फ 1 घंटे का वीडियो जारी करने में पार्टी को कितना समय लगेगा? क्या कारण था की लोगों को मीटिंग के अंदर मोबाइल नहीं ले जाने दिया गया? ऐसा पहले तो कभी नहीं हुवा।

बात ये भी है की क्या प्रशांत भूषण वाकई में गलत थे? क्या पार्टी में गलत टिकिट के बटवारे, RTI की वकालत, वॉलेंटियर की आवाज ज्यादा सुनी जाने की मांग, डोनेशन और व्यय में पारदर्शिता और जाँच की मांग करना पार्टी विरोधी है? पीठ में छूरा घोपना है? इन ही सब सिद्धांतो पर तो ये पार्टी बानी थी, ये सारी तो अरविन्द की ही कही बातें हैं पर अब लगता है इस “नई” आम आदमी पार्टी में जो भी उन पुराने और मूलभूत सिद्धांतों की बात करेगा वो पार्टी विरोधी कहलायेगा, उस को चुनाव हरवाने वाला कहा जायेगा। और ये सारी बातें पार्टी के अंदर ही उठाई जा रही थी, प्रशांत भूषण ने पार्टी के बाहर तो कुछ नहीं कहा, यहाँ तक की जब उन के पिता का अरविन्द के खिलाफ बयान आया था तो प्रशांत भूषण सबसे पहले टीवी पर आ कर बोले थे की मै शांति भूषण जी से सहमत नहीं हूँ।

अरविन्द ने खुद कहा की जब वो राजनीती छोड़ने का मन बना चुके थे तब योगेन्द्र और प्रशांत ही उन के पास आये और उन ने अरविन्द की मांग मानी, तो ये आरोप की योगेन्द्र और प्रशांत अरविन्द से पावर छीनना चाहते है, या वो अरविन्द को हटाना चाहते है वो तो बिलकुल गलत है।

पार्टी के लोकपाल “एडमिरल रामदास” जैसे सम्मानित व्यक्ति को निकला गया। अचानक क्या जरुरत आ पड़ी थी उन को निकलने की? क्या इस के पीछे ये कारण नहीं की उन को इसलिए निकला गया क्योंकी उन्होंने कुछ लोगों के इशारों पर काम करने से इंकार कर दिया था। उन के पत्र भी सार्व जनिक ही है ।

अरविन्द ने आखरी में ये प्रश्न भी पुछा था की “इस सब से क्या मिला? स्वराज आ गया? क्या आ गयी इनर पार्टी डेमोक्रेसी? पहले अपने राज्य हरयाणा में ये सब कर के बताओ तब हम भी पूरे देश में लागु कर देंगे”। अरविन्द के मुह से ये बातें सुन कर न सिर्फ दुःख हुवा बल्कि एक झटका भी लगा। किसके किये हुवे वादे है ये सब? कौन इन सब बातों को पिछले 4 साल से बोल रहा है? ये अरविन्द के वादे है। और आज अरविन्द अपने ही वादों का मजाक उड़ा रहा है? अब अरविन्द ये कह रहा है की पहले तुम कर के दिखाओ तब मै करूँगा? क्या इस तरह की बातें बीजेपी और कांग्रेस के नेता नहीं करते? अगर आज भी पार्टी में स्वराज और इनर पार्टी डेमोक्रेसी नहीं है तो ये उस अरविन्द की विफलता दर्शाता है जो पूरे देश में स्वराज का कानून बनाने की बात करता था।कहाँ गया वो अरविन्द जो कहता था की हम राजनीती करने नहीं बल्कि बदलने आये है, हम चुनाव जीतने नहीं आये और अगर बीजेपी कांग्रेस सुधर जाये तो हम राजनीती छोड़ देंगे।

आज अरविन्द अपने ही सिधान्तो और बातों से पीछे हट रहा है, अपनी ही बातों को अपनी पार्टी में लागू कर के अन्य पार्टियों के समक्ष एक उदाहरण पेश करने की बजाये आज आम आदमी पार्टी खुद बाकि पार्टियों जैसी हो गयी है। क्या इस तरह बदलेंगे देश के राजनीती? क्या इस तरह करेंगे राजनीती की सफाई?
क्या सीखेंगी बाकि पार्टियां अब आम आदमी पार्टी से, ये सब ??

३) एक नई नस्ल – AK भक्त !

पहले मै हमेशा सोचता था की इन मोदी भक्तों को क्या हो गया है, ये क्यों ऐसे बिहेव करते है? पर अब कुछ AAP वॉलेंटियर्स को AK भक्त बनते देखा तो समझ आया की कैसे लोग उन बातों को भूल जाते है जिन के लिए शायद वो राजनीती में आये और कैसे धिरे धीरे सिर्फ एक व्यक्ति के पीछे पीछे आँख मूँद के चलने लगते है।
खैर मोदी की ही तरह अरविन्द भी अच्छे वक्ता है और इमोशनल बातें कर के बड़ी आसानी से लोगों को कन्विंस करना भी जानते है, जैसा की इस NC की मीटिंग में किया।

उम्मीद करता हूँ की वॉलेंटियर थोड़ा सोचेंगे की वो क्यों राजनीती में आये और क्या ये सच नहीं की पार्टी अपने ही मूल सिद्धांतों से भटक रही है, ऐसे में क्या ये जिम्मेदारी वॉलेंटियर्स की नहीं की वो आवाज उठाए और नेताओं को जरा नींद और अहंकार से जगाएं और वापस पटरी पर सही दिशा में लाए। या वॉलेंटियर की जिम्मेदारी पार्टी के हर निर्णय को सपोर्ट करना है चाहे वो सही हो या गलत? क्या वॉलेंटियर का काम जय नेता जय नेता के नारे लगाना है?
सोचिये जरा…

योगेश गर्ग 

NCR Khabar News Desk

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