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सत्यम शिवम सुंदरम : 2024 में अमित शाह की नई रणनीति में निशाने पर अखिलेश, क्या समाजवादी पार्टी के लिए एकनाथ शिंदे या अजीत पंवार होंगे शिवपाल यादव ?

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भाजपा के खिलाफ विपक्ष का बड़ा गठबंधन I.N.D.I.A (Indian National Developmental Inclusive Alliance) जन्म ले चुका है । भाजपा सरकार को एक बार फिर से सरकार बनाने के लिए उत्तर प्रदेश की 80 सीटों पर विशेष दृष्टि है । और यही पर समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव केंद्र की आने वाली सरकार में अपनी हिस्सेदारी को मजबूत करने के लिए कमर कस रहे है । समाजवादी पार्टी लगातार दावा कर रही है कि वह इस बार उत्तर प्रदेश में भाजपा को एक अंक में ले जाएगी और स्वयं 70 सीटों पर विजय प्राप्त करेगी ऐसा कहकर उनकी मंशा बनने वाली नई सरकार में महत्वपूर्ण स्थान लेने की है ।

भाजपा भी यह बात जानती है कि 2024 में अगर अपने विजय रथ को बढ़ाना है तो अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश में शून्य पर लाना बहुत जरूरी है l ऐसे में राजनीतिक पंडितों ने अमित शाह की अगली रणनीति को समझने की कोशिश शुरू कर दी है

भाजपा के सूत्रों की मानें तो उद्धव ठाकरे और शरद पंवार के बाद 2024 में अमित शाह के चक्रव्यूह के अगला निशाना अखिलेश यादव ही हैं। दावा किया जा रहा है जैसे एकनाथ शिंदे ने शिवसेना और अजीत पवार ने राकापा में खेल किया वैसे ही लोकसभा चुनाव 2024 से पहले या उसके बाद समाजवादी पार्टी चाचा शिवपाल यादव की हो जाएगी।

माना जा रहा है कि अखिलेश यादव की ऊंची उड़ान को जमीन पर लाने के लिए अमित शाह के इशारे पर सैफई में एक बड़े षड्यंत्र को अंजाम दिया गया है । उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने वाले पंडितों की मांने तो कभी अखिलेश यादव को राजनीतिक तौर पर समाप्त करने की कसम खाने वाले शिवपाल ने मुलायम सिंह यादव की मृत्यु के बाद अखिलेश यादव द्वारा की गई मान मुरव्वत के बाद जिस तरीके से परिवार में और पार्टी में वापसी की और भाजपा को निशाने पर लिया, वह अमित शाह के इशारे पर सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा है ।

इससे पहले आप यह पूछे कि चाचा शिवपाल ने आखिर अपने भतीजे अखिलेश यादव के राजनीतिक भविष्य को बर्बाद करने की कसम क्यों खाई थे तो आपको समाजवादी पार्टी की राजनीति और उसमे अखिलेश यादव के उदय और शिवपाल यादव के अस्त होने की कहानी को समझना होगा ।

2007 में समाजवादी पार्टी की करारी हार के बाद मुलायम सिंह यादव के निर्देश पर अखिलेश यादव ने 2012 के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी l इधर शिवपाल यादव संगठन के बाकी कामों को संभालते रहे थे तो अखिलेश ने साइकिल की यात्राओं के जरिए समाजवादी पार्टी की युवा ब्रिगेड तैयार कर दी जिसका परिणाम उत्तर प्रदेश में 2012 में समाजवादी पार्टी की शानदार वापसी के तौर पर दिखाई दिया । 2012 की जीत के बाद समाजवादी पार्टी में सबको लग रहा था कि मुलायम सिंह यादव अपने भाई शिवपाल यादव को या स्वयं मुख्यमंत्री बनेंगे । किंतु मुलायम सिंह यादव के चरखा दांव ने शिवपाल यादव को ऐसा झटका दिया कि ना वो बड़े भाई के सम्मान के आगे कुछ कह पाए और ना ही पार्टी में अनदेखी की अपनी पीड़ा को छुपा पाए ।

भारत का इतिहास गवाह है कि यहां पुत्र को सिंहासन देने के लिए परिवारों में महाभारत तक हो गई ।ऐसे में स्व. मुलायम सिंह यादव ने वही किया जो एक पिता अपने पुत्र के भविष्य के लिए करता है यद्धपि उसका मूल्य उन्होंने अपने अपमान के जरिए भी चुकाया किंतु कई लोगो ने इसे भी उन्ही का एक दाव बताया था ।

कहा तो ये भी जाता है इस पूरे खेल में अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे रामगोपाल यादव और स्व. अमर सिंह की भूमिका भी महत्वपूर्ण थी और अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद लगातार शिवपाल यादव शनै शनै ना सिर्फ पार्टी में हाशिए पर जाते गए बल्कि अपमान के वह घूंट भी पीते रहे जिसकी कल्पना उन्होंने पार्टी के निर्माण से लगातार 2012 तक कभी नहीं की थी।

समाजवादी चिंतको के अनुसार समाजवादी पार्टी सरकार के शासन में तब के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी को शिवपाल यादव के पुराने प्रभाव से बाहर निकाल कर ऐसी पार्टी बनाना चाहते थे जहां पार्टी पर अपराधियों की पार्टी होने के सारे दाग दिखाई ना दे और इसी सब के बीच पार्टी में अपना वर्चस्व रखने की कोशिश में अखिलेश और शिवपाल यादव के बीच चल रहा आंतरिक संघर्ष पार्टी से बाहर दिखाई देने लगा । अखिलेश यादव ने पहले शिवपाल यादव को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया उसके बाद पार्टी से ही निष्कासित कर दिया इस पूरे घटनाक्रम में अप्रत्याशित बात यह थी कि स्व मुलायम सिंह लगातार शिवपाल यादव के साथ रहने का दावा कर रहे थे और अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह को भी उन्हीं की पार्टी से अध्यक्ष पद से हटाकर निकाल चुके थे।

इस संघर्ष के दौरान एक पल ऐसा भी आया जब अखिलेश यादव द्वारा सार्वजनिक मंच पर स्वर्गीय मुलायम सिंह को अपमानित करने के समाचार भी आये जिससे शिवपाल यादव को बहुत धक्का लगा और उन्होंने अखिलेश यादव को बर्बाद करने की कसम खाई ।

शिवपाल यादव ने अपनी अलग राजनैतिक पार्टी बनाई जिसको परोक्ष रूप से अमित शाह के इशारे पर बनाया जाना कहा जाता रहा है l 2022 के चुनाव में मुलायम सिंह की मृत्यु के बाद अप्रत्याशित और पर परिवार एक दिखाई देना शुरु हुआ । अखिलेश यादव और बहु डिम्पल यादव के पैर छूने के बाद शिवपाल साथ में आते दिखाई दिए और अंततः पार्टी में वापस आगये, पर क्या ये सिर्फ परिवार का पुनार्मिलन था या फिर बरसो पहले खाई गई कसम को पूरा करने के लिए और भाजपा के 2024 चुनाव के लोए रचे अमित शाह किसी चक्रव्यूह का हिस्सा भर है l

कहा जा रहा है इसी चक्रव्यूह का एक हिस्सा अखिलेश यादव को 2024 में कन्नौज से टिकट लड़ा कर भाजपा के सामने राजनीतिक तौर पर समाप्त करने का है । यद्धपि अखिलेश यादव 2022 में लोकसभा के स्थान पर विधानसभा को अपनी पसंद बताकर पीछे हट चुके थे किंतु बदले परिपेक्ष में एक बार फिर केंद्र में भाजपा को उखाड़ फेकने के लिए अखिलेश यादव को समझाया जा रहा है कि वह लोकसभा का चुनाव कन्नौज से लड़े। किंतु कन्नौज में समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच बड़ा परिवर्तन आ चुका है । भाजपा के ताकतवर सांसद सुब्रत पाठक इस सीट पर समाजवादी पार्टी को शिकस्त दे चुके हैं ।

अखिलेश यादव कन्नौज में सुब्रत पाठक के सामने पूरी ताकत से लड़ पाएंगे पाएंगे इसका भरोसा पार्टी के रणनीतिकारों को भी नहीं है । पार्टी को कन्नौज में अखिलेश यादव को जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा और इसका परिणाम बाकी सीटों पर नकारात्मक हो सकता है l

योगी मोदी की डबल लहर में अखिलेश यादव यदि 2024 में सुब्रत पाठक से चुनाव हार जाते हैं तो इससे सुब्रत पाठक को केंद्र में मंत्रीपद तो भाजपा को तीसरी बार सरकार बनाने के साथ साथ दोहरा फायदा हो सकता है l एक और अखिलेश यादव अपनी ही पार्टी में खुद चुनाव हारने के कारण असंतोष का सामना कर रहे होंगे तो दूसरी और शिवपाल यादव बचे हुए पार्टी के विधायकों और सांसदों को यह समझाने में कामयाब हो जाएंगे की कदाचित पार्टी पर अधिकार उन्हीं का है वही इसके लायक है।

अखिलेश यादव के खिलाफ शिवपाल यादव के साथ परिवार के अन्य नाराज सदस्य धर्मेंद्र यादव भी आ सकते है जो अपनी सीट पर उनको चुनाव लड़वाने के बाद हरवाने का कारण भी उन्ही को मानते है । स्मरण रहे कि तब अखिलेश यादव से धर्मेद्र यादव के चुनाव में प्रचार के लिए ना जाना कई प्रश्न खड़े कर गया था ।

अखिलेश को लेकर पार्टी के पुराने कार्यकर्ता उन्हें व्यावहारिक तो मानते हैं किंतु स्व मुलायम सिंह और शिवपाल यादव की तरह अपने साथियों के साथ खड़े होने वाला नहीं मानते । पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने एनसीआर खबर को बीते दिनों बातचीत में बताया की अखिलेश और शिवपाल यादव की तुलना बेमानी है। शिवपाल यादव संघर्ष के साथियों को हर हाल में साथ रखते हैं जबकि अखिलेश यादव बेहद व्यावहारिक हैं । वह चुनाव की रणनीति के तहत लोगों को उनकी काबिलियत और जरूरत के हिसाब से साथ रखते हैं जिसके कारण पार्टी पुराने नेताओ में अखिलेश यादव के ऊपर विश्वास कम है । बीते चुनावों में मायावती, राहुल गांधी, जयंत से लेकर राजभर तक के साथ चुनाव लड़ने को पार्टी उनकी अदूरदर्शिता मानती रही है । बार-बार हिंदुत्व को लेकर सॉफ्टलाइन लेना भी अखिलेश यादव का पार्टी समर्थको विशेषत: मुस्लिम समर्थको में विश्वास कम करता है।

ऐसे में भाजपा के रणनीतिकारों और राजनीतिक पंडितों के विश्लेषण के अनुसार 2024 के चुनाव के बाद अखिलेश यादव पार्टी में उसी तरीके से किनारे किए जा सकते हैं जैसे कभी उन्होंने शिवपाल यादव को अपमानित करके किया था l यद्यपि भविष्य के गर्त में क्या छुपा है यह कोई नहीं कह सकता राजनीतिक पंडितों के अनुमान अक्सर राजनेता अपनी काबिलियत से पलट देते हैं किंतु शह और मात के खेल में शिवपाल यादव के जरिए इस बार अमित शाह फिर से कामयाब होंगे या अखिलेश यादव प्रदेश की जगह केंद्र में अपनी भूमिका रास्ता दिखाई देंगे यह 2024 के परिणाम से पता लगेगा।

आशु भटनागर

आशु भटनागर बीते दशक भर से राजनतिक विश्लेषक के तोर पर सक्रिय हैं साथ ही दिल्ली एनसीआर की स्थानीय राजनीति को कवर करते रहे है I वर्तमान मे एनसीआर खबर के संपादक है I उनको आप एनसीआर खबर के prime time पर भी चर्चा मे सुन सकते है I Twitter : https://twitter.com/ashubhatnaagar हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I एनसीआर खबर पर समाचार और विज्ञापन के लिए हमे संपर्क करे । हमारे लेख/समाचार ऐसे ही सीधे आपके व्हाट्सएप पर प्राप्त करने के लिए वार्षिक मूल्य(501) हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : ashu.319@oksbi के जरिये देकर उसकी डिटेल हमे व्हाट्सएप अवश्य करे

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