सोशल मीडिया पर आयी खबरों पर अगर विश्वाश किया जाए तो #CSDS के editor #अभयदुबे की पत्नी उनसे अलग होकर वामपंथी नेता #अतुलअनजान के साथ चली गयी है I खबर की सचाई पर मेरा कोई क्लेम नहीं है पर उस पर हुए हंगामे ने मुझे जरुर सोचने पर मजबूर किया की यही अगर भारत के बाहर होता है तो क्या ऐसे ही होता है ?
क्या वहां पर भी ऐसी घटनाओं के बाद समाज और समाजशात्री या समाज के ठेकेदार ऐसी ही बातें करते है ?
सच तो ये है हम हिन्दुस्तानी हमेशा इस काम मैं आगे रहते है की सामने वाले की वीबी कहाँ और किसके साथ जा रही है या उस आदमी से सुखी है या नहीं , वस्तुतः हम और हमारा समाज जब किसी से नहीं लढ़ पा रहा होता है तो उसके परिवार की स्त्रिओ को निशाना बनाना शुरू कर देते है I स्त्री पुरुष के संबंधो और उन्हें पुरुषो की संपत्ति मानने की सोच हमारे समाज से कब जायेगी इसका कोई पता नहीं I
और इस खेल मैं कोई पीछे नहीं, क्या वामपंथी , क्या वहावी और क्या संघी या रास्त्र्वादी जब जिस का मौका लगता है वो सहानभूति या खिल्ली उड़ाने के नाम पर अपनी भड़ास निकालने लग जाता है I
मैं #मोदी का सामना ना कर पाने की स्तिथि मैं उनकी पत्नी को लेकर सारे भाजपा विरोधियो के तर्कों, मजाको और सहानभूति के नाम पर कहीं जाने वाली बातों का हमेशा विरोधी रहा हौं और यही बात दुसरे केसों मैं भी लागू करता हूँ
लेकिन समाज की इस सोच के लिए मैं हमेशा पहला दोष आज अभय दुबे का परिहास उड़ाने वाले इन सामान्य लोगो को नहीं दूंगा , वस्तुत ये विक्रती हमारे समाज के साहित्यकारों , लेखको और पत्रकारों की ही देन है
समाज सिर्फ आज इन्हें सोशल मीडिया पर वही दिखा रहा है जो ये पिछले ५० सालो मैं अपनी बौद्धिकता के नाम पर उसे सिखाते आये है पिछले ५० सालो मैं वामपंथियो और समाजवादियो की आढ़ लेकर हमारे साहिय्कारो ओर पत्रकारों ने जो लकीर खीची थी अब उसके मिटाने का वक्त आ गया है , नहीं तो सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव मैं कितने #खुर्शीदअनवर और मरने वाले है ये समय ही बतायेगा