किरण बेदी की बीजेपी में एंट्री के बाद से ही सतीश उपाध्याय के सितारे गर्दिश में हैं। दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह उन्हें बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनावों के बाद दिल्ली भाजपा इकाई में आमूलचूल परिवर्तन किया जा सकता है और सतीश उपाध्याय की अध्यक्ष पद से छुट्टी हो जाएगी।
अमित शाह सतीश उपाध्याय के बहाने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को भी सबक सिखाने के फिराक में हैं। उपाध्याय की छुट्टी राजनाथ को सबक सिखाने का बेहतर तरीका हो सकता है।
राजनाथ सिंह ने अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में सतीश उपाध्याय को दिल्ली की कमान सौंपी थी। भाजपा कें अंदरखाने में उपाध्याय को राजनाथ के गुट का आदमी माना भी जाता है। किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के खिलाफ उभर रहे विरोध के स्वरों को खत्म करने की कमान भी शाह ने अपने हाथ में ले ली है।किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से ही विरोध के स्वर उठ रहे हैं। हालांकि विरोध के ऐसे स्वरों को शांत करने का जिम्मा अमित शाह ने अपने हाथ में ले लिया है। शाह को पार्टी में अनुशासनहीनता बर्दाश्त न करने के लिए जाना जाता है।
विरोधियों को शांत करने के लिए उन्होंने बेदी के साथ रैलियां करने का फैसला किया है। उन्होंने पार्टी की बैठकों और कार्यकर्ता सम्मेलनों में भी संकेत दिया है कि वे पूरी तरह से बेदी के पीछे खड़े हैं, उनका विरोध बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
गुरुवार को उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं की तीन रैलियां की। चांदनी चौक, सोनिया विहार और पूर्वी दिल्ली की रैलियों में बेदी उनके साथ थीं। इन रैलियों में बूथ प्रभारियों को बुलाया गया था। शाह ने रैली में स्पष्ट संकेत दिए कि पार्टी के भीतर बेदी का विरोध कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।टिकट कटने के बाद मंगलवार को उपाध्याय समर्थकों ने दिल्ली भाजपा कार्यालय पर विरोध प्रदर्शन किया था। उस वाकये के बाद से ही उपाध्याय शाह के निशाने पर आ गए हैं। विधानसभा चुनावों के बाद सतीश उपाध्याय का अध्यक्ष पद से हटना तय है और पार्टी की राज्य इकाई में भी बदलाव किया जाएगा।
किरण बेदी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद भाजपा सासंद मनोज तिवारी ने भी सार्वजनिक रूप से अपने विरोध इजहार किया था। उन्होंने किरण बेदी को थानेदार बताया था। शाह ने मनोज तिवारी को भी लताड़ा है। तिवारी को भी सतीश का करीबी माना जाता है।
वैसे भाजपा आलाकमान शुरु से ही सतीश उपाध्याय को किनारे लगाने के फिराक में था। सूत्रों की मानें तो उपाध्याय का टिकट भी जानबूझकर काटा गया। भाजपा उम्मीदवारों की सूची में अंतिम समय तक उपाध्याय का नाम था। उन्हें नामांकन के कागजात भी तैयार रखने के लिए कहा गया था। लेकिन जब लिस्ट आई तो उपाध्याय का नाम गायब था।