विगत कुछ वर्षो से राजनीति में विरोध प्रदर्शन की नई प्रणाली का विकास हो चुका है । जिससे विरोध हो , उसे जूते मारो , चप्पल फेंको , थप्पड़ लगाओ। ऐसा नही है कि इस प्रकार के कुकृत्य पहली बार हो रहे हैं लेकिन भारतीय लोकतंत्र के लिए यह नए ही कहे जायेंगे।
“आज केजरीवाल को किसी ने मुक्का मारा”
“आज मोदी को किसी ने टमाटर फेंक कर मारा”
“आज राहुल पर किसी ने अंडे फेंके”
इन प्रायोजित/ अप्रयोजित घटनाएँ ही सिर्फ होती तो कोई गम न था। बात इनको मिल रहे व्यापक समर्थन की है। दल प्रतिबद्धता लोगों को पार्टी लाइन से ऊपर उठकर सोंचने ही नहीं देती। युवा तो युवा , वरिष्ठ भी मजे लेते दिखाई देते हैं । क्षमा कीजियेगा , किन्तु किस बात के वरिष्ठ !
शायद उन्हें भान नहीं कि वो किस कुरीति का सूत्रपात कर हैं । या भान तो है लेकिन मजा भी तो कोई चीज होती है।
असहिष्णुता का चरम असहिष्णुता को ही जन्म देता है और असहिष्णुता लोकतंत्र का नहीं अपितु लोकतंत्र की कब्र के ऊपर अधिनायकवाद का मार्ग प्रशस्त करती है।
अधिनायकवाद सुनने में बड़ा और असंभव शब्द लगे लेकिन दस के रिक्टर स्केल पर यदि अधिनायकवाद नौ या दस है तो इस प्रकार की असहिष्णुता तीन-चार तो जरुर होगी।
इसे नौटंकी कहकर नकारना बारहसिंगे का झाड़ में छुपकर सुरक्षित महसूस करने जैसा है । बाकी समाज आपका है , देश आपका है , आपको हक़ है कि आप इनसे खिलवाड़ करे।
प्रसन्ना प्रभाकर