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पहला राष्ट्रीय नायक – बाल गंगाधर तिलक जयंती (२३ जुलाई) के अवसर पर विशेष

pead008_bal_gangadhar_tilakसुप्रसिद्ध इतिहासकार आर0 सी0 मजूमदार लिखते है कि ‘अग्रणी राष्ट्रनायको में तिलक सबसे पहले राष्ट्रीय नायक थे , जिन पर राजद्रोह का आरोप लगाकर सजाये दी गयी | लेकिन ब्रिटिश सरकार के इस कदम ने भी तिलक को राष्ट्रीय क्षितिज के सर्वोच्च शिखर पर स्थापित कर दिया | तिलक इस राष्ट्र के निर्विवाद नायक और जन मानस में बिना ताज के महराज बने रहे | इसमें यह बात और कहनी है कि लोकमान्य तिलक ऐसे पहले राष्ट्रीय नेता थे:जिन्होंने राष्ट्रीय – आन्दोलन को जन- आन्दोलन बना दिया |राष्ट्र के जन साधारण को राष्ट्रीय आन्दोलन का सक्रिय भागीदार बना दिया | तिलक द्वारा ब्रिटिश राज की जगह स्वराज की मांग , उस युग के लिए राष्टवादी एवं क्रांतिकारी मांग थी | देश के जनसाधारण के लिए वह मांग आज भी प्रासगिक है | क्योंकि वर्तमान दौर का ‘स्वतंत्र एवं संप्रभुता संपन्न ‘ कहा जाने वाला जनतांत्रिक राष्ट्र – राज देश के जनसाधारण के बुनियादी हितो की खुलेआम उपेक्षा कर रहा है | महगाई , बेकारी आदि के रूप में जन समस्याओं को खुलेआम और निर्ममता पूर्वक बढाता जा रहा है |देश दुनिया के धनाढ्य एवं उच्च वर्गो के निहायत स्वार्थी हितो को बढाने में लगा हुआ है | उदारीकरणवादी , निजीकरणवादी , एवं वैश्वीकरणवादी नीतिया इसकी प्रत्यक्ष सबूत है | यह इस बात का सबूत है कि देश के धनाढ्य एवं उच्च वर्गो का स्वराज तो कब का मिल चुका है ,पर बहुसंख्यक जनसाधारण को अपने हितो वाला स्वराज मिलना बाकी है | इसीलिए तिलक का ‘स्वराज ‘ शासित जनसाधारण के लिए प्रासगिक है | चुनावी भागीदारी के रूप में अत्यंत सीमित भागीदारी वाले वर्तमान राज की जगह संगठित जनसाधारण द्वारा संचालित नियंत्रित जनवादी राज के रूप में प्रासगिक है | )

………. बाल गंगाधर का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रतनागिरी में हुआ था उनका बचपन का नाम केशव बाल गंगाधर तिलक है | राष्ट्र के स्वतंत्रता आन्दोलन के पुरोधा बने तिलक को देशवासियों से मिले अभूतपूर्व सहयोग समर्थन के कारण ही उन्हें ‘लोकमान्य ‘ के विशेषण नाम से जाना जाता है | यह तिलक थे , जिन्होंने स्वराज के नारे के साथ देश के जनसाधारण को राष्ट्रीय आन्दोलन का सक्रिय भागीदार बनाया |1857 केस्वतंत्रता संघर्ष के एक वर्ष पहले जन्मे बाल गंगाधर का बचपन और युवावस्था ब्रिटिश राज के प्रति बढ़ते विरोध और संघर्ष की महान परिस्थिति में बीता | उसी में परिपक्व हुआ और आगे बढा| तिलक को राष्ट्र का महानायक बनाने के आधार में संघर्ष की यही परिस्थितिया विद्यमान थी | विद्यार्थी के रूप में संस्कृत , गणित ,और बाद में अंग्रेजी का गम्भीर अध्ययन करने के साथ – साथ तिलक ने दर्शन , इतिहास और राजनीति को भी अपने अध्ययन का विषय बनाया था | गणित में आनर्स के साथ बी ० ए ० और फिर एल ० एल ० बी ० की परीक्षाये पास की | इन्ही विद्यालयी शिक्षा के साथ तिलक को राष्ट्र व समाज की पराधीनता के बारे में भी गहरा ज्ञान प्राप्त होता रहा | इसी के फलस्वरूप तिलक ने वकालत को नही , बल्कि राष्ट्र सेवा को अपना लक्ष्य बनाया | राष्ट्रीय जन मानस में स्वराज के लिए संघर्ष की भावना जागृत किया | उन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष और स्वराज के लिए जीवन को समर्पित कर दिया | तिलक देश में राष्ट्रीय शिक्षा के प्रसार को अत्यंत आवश्यक मानते रहे | वे राष्ट्र व समाज की पहचान व संस्कृति को हटाकर या उसे उपेक्षित करके शिक्षा देने के पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली के विरोधी थे | इसलिए उन्होंने प्रारंभिक दौर में ही अपने कालेज के साथी गोपाल आगरकर , महादेव जोशी और विष्णु कृष्ण चिप्नुकर के साथ मिलकर आधुनिक राष्ट्रीय शिक्षा की बुनियाद रखी |इसके अंतर्गत नवयुवको को अंग्रेजी व आधुनिक शिक्षा के साथ राष्ट्रवादी विचारों की तथा राष्ट्रीय अस्मिता , राष्ट्रीय गौरव और राष्ट्रीय संस्कृति की भी शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाती थी |राष्ट्रीय शिक्षा के साथ राष्ट्रवाद के प्रति लोगो को सचेत करने के उद्देश्य से तिलक ने अंग्रेजी में ‘ मराठा ‘ और मराठी भाषा में ‘ केसरी ‘ समाचार पत्रों का प्रकाशन आरम्भ किया | तिलक के राष्ट्रवादी विचारों के साथ संपादित इन समाचार पत्रों ने आम जन पर गहरा प्रभाव डाला |समाचार पत्रों का वितरण निरंतर बढ़ता रहा | इसके बावजूद तिलक अपने खर्च के लिए और समाचार – पत्रों में होने वाले घाटे को पूरा करने के लिए ‘प्लीडर आफ हाईकोर्ट ‘ की परीक्षाओं के लिए कानून की क्लास चलाते थे |वे 1890 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए | परन्तु प्रारम्भ में कांग्रेस पार्टी के ब्रिटिश राज से याचना करने के नरमपंथी विचारों , व्यवहारों के विरोधी थे | 1896-97 में महाराष्ट्र में प्लेग के दौरान राहत कार्यो में भूमिका निभाते हुए तिलक ब्रिटिश प्रशासन की उपेक्षा पूर्ण रवैये की सख्त आलोचना भी करते रहे | राहत कार्यो के दौरान लोगो से बदसलूकी के लिए कुख्यात अंग्रेजी अफसर रैंड की हत्या के बाद ‘ केसरी ‘और ‘मराठा ‘ में छपे लेखो और आलोचनाओं के चलते तिलक पर राजद्रोह का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया | उनको एक साल कैद की सज़ा दी गयी |जेल से छूटने के बाद तिलक समाचार पत्रों के प्रकाशन में पुन: लग गए |साथ ही कांग्रेस में भी सक्रिय भूमिका निभाते रहे | उसी दौरान 1905 में वायसराय लार्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन कर दिया | बंगाल विभाजन के विरुद्ध बंगाल से चले ब्रिटिश सरकार विरोधी आन्दोलन ने राष्ट्रव्यापी स्वरूप ग्रहण कर लिया |
बंग – भंग के विरोध में बंगाल से लेकर देश के अन्य हिस्सों में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी के स्वीकार का जबर्दस्त आन्दोलन चल पड़ा |मुम्बई और अहमदाबाद में स्थिति ज्यादातर स्वदेशी कपड़ा मिलो के चलते यंहा स्वदेशी आन्दोलन ने जोर पकड़ा |फिर उसे आगे बढ़ाने में तिलक जैसे नायक तो वंहा थे ही |विदेशी बहिष्कार और स्वदेशी के साथ – साथ राष्ट्रीय शिक्षा और स्वराज की मांग भी जोर पकड़ने लगी | जंहा बंगाल के बटवारे ने देश के राष्ट्रीय आन्दोलन को खड़ा होने का आधार दिया , वंही इन मांगो ने उसे देश के स्वतंत्रता आन्दोलन को एक नये दौर में पहुचा दिया |बाल गंगाधर तिलक , लाला लाजपत राय , विपिन चन्द्र पाल ,और अरविन्द घोष जैसे लोगो ने स्वतंत्रता संघर्ष के इस दौर की अगुवाई की |इसी आन्दोलन में तिलक का यह नारा आम जन का नारा बन गया कि ‘ स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे ‘| इस राष्ट्रवादी आन्दोलन के बढने के साथ कांग्रेस पार्टी में फूट भी बढने लगी थी | इस फूट को ब्रिटिश हुक्मरानों ने भी बढावा दिया |उन्होंने कांग्रेस पार्टी में पहले से स्थापित नरमपंथी व उदारवादी नेतृत्त्व को भी अपने पक्ष में मोड़ना शुरू किया |उस समय के नरमपंथ का नेतृत्व महाराष्ट्र के ही सुप्रसिद्ध नेता गोपाल कृष्ण गोखले कर रहे थे |नरमपंथी राष्ट्रीय नेता शुरू से ही अंग्रेजो के प्रति नरम विरोध व समझौते का व्यवहार अपनाए रहते थे |इसलिए उन्होंने 1907 के सूरत में हुए कांग्रेस अधिवेशन में , एक साल पहले कांग्रेस द्वारा पारित ‘विदेशी बहिष्कार ‘ ‘राष्ट्रीय शिक्षा और स्वराज ‘के मुद्दों की पुष्टि नही होने दी | फलस्वरूप तिलक के नेतृत्त्व में कांग्रेसियों के खासे बड़े हिस्से ने नरमपंथियो के इस रुख का कांग्रेस के पांडाल में ही विरोध किया | नरमपंथियो ने तिलक व उनके साथियो को बाहर करके सूरत का अधिवेशन संपन्न कर लिया | इस घटना ने राष्ट्रीय आन्दोलन को गहरा आघात पहुचाया | लेकिन उपरोक्त चारो मुद्दों को लेकर तिलक और उनके सहयोगियों ने प्राणपण से संघर्ष को आगे बढाया |देश की व्यापक जनता भी बाल गंगाधर तिलक , लाला लाजपत राय , विपिन चन्द्र पाल और अरविन्द घोष जैसे जुझारू राष्ट्रवादी नेताओं के साथ आंदोलनरत थी | पर अंग्रेज हुक्मरानों ने आन्दोलित देशवासियों तथा राष्ट्रवादी नेताओं पर भारी दमन अत्याचार का सिलसिला चला दिया | प्रेस कानूनों को कडा करने के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी भारी अंकुश लगा दिया | अरविन्द घोष द्वारा संपादित ‘ वन्देमातरम ‘ तथा अन्य कई समाचार पत्रों का प्रकाशन रोक दिया गया |उनके सम्पादकों को सजाए दे दी गयी | तिलक ने अपने समाचार पत्रों में बंगाल के दो क्रांतिकारी युवको प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस को हिसात्मक कारवाइयो की तरफ ढकेलने के लिए अंग्रेजी हुकूमत को जिम्मेदार ठहराया | उसी के साथ ऐसी कारवाइयो को खत्म करने के लिए स्वराज की मांग को भी ‘ केशरी’ और ‘मराठा ‘ समाचार पत्रों में जोरदार ढंग से उठाया | तिलक को गिरफ्तार करके उन पर राजद्रोह का मुकदमा चला दिया गया | तिलक ने अपने मुकदमे की पैरवी स्वंय ही की | लेकिन अंग्रेजो द्वारा राष्ट्रीय अशांति व उथल -पुथल के जनक का नाम पाए तिलक को राजद्रोह का दोषी ठहराते हुए 6 साल कैद की सज़ा दे दी गयी |फलस्वरूप उन्हें देश में नही बल्कि वर्मा के मांडले जेल में 1908 से 1914 तक के लिए निष्कासित कैदी का जीवन जीना पडा| कारावास के इसी विशेष काल खंड में उन्होंने ‘गीता -रहस्य ‘जैसे महान ग्रन्थ को लिखा | जुरियो के निर्णय के बाद अदालत में तिलक द्वारा कही गयी बात आज भी बाम्बे हाईकोर्ट के कमरा नम्बर 46 की दीवारों पर लिखी हुई है – “जुरियो के निर्णय के बावजूद , मैं यह बात फिर कहूंगा कि मैं निर्दोष हूँ | हो सकता है कि उस सर्वोच्च शक्ति की, जो मनुष्यों एवं राष्ट्रों की भाग्य विधाता है , यही इच्छा हो कि मेरे द्वारा उठाया गया काम मेरे स्वतंत्र रहने से कंही ज्यादा मेरी सज़ा के फलस्वरूप आगे बढ़े |” 23 जुलाई 1856 को जन्मे तिलक को 22 जुलाई 1908 को यह सज़ा सुनाई गयी | यह सज़ा महान राष्ट्र – नायक , जन -नायक बन चुके बाल गंगा धर तिलक को सुनाई गयी थी |इस सज़ा के विरोध में 23 जुलाई 1908 को यानी तिलक के 52 वें जन्मदिन पर बाम्बे की बहुतेरी मिलो में हडताल के साथ पूरे देश में हडताल व फैसले के विरुद्ध प्रदर्शन की लहर उठ गयी , जो कई दिनों तक चलती रही और जिसे दबाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने भारी दमन और फिर सुधार का सहारा लिया | बहुतेरे लोगो को पुलिस की लाठियों और गोलियों का शिकार होना पडा | इस साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्र नायक का 52 वा जन्मदिन जनता के उग्र विरोध व कुर्बानियों द्वारा मनाया गया | 1914 में जेल से छूटने के बाद तिलक पुन: स्वतंत्रता संघर्ष में जुट गये | 1916 में उन्होंने होमरूल लीग की स्थापना की | ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष में कांग्रेस व मुस्लिम लीग को एक मंच पर लाने और उनमे सहमति व सहयोग खड़ा करने में तिलक ने महत्त्व पूर्ण भूमिका निभाई | 1916 में लखनऊ का कांग्रेस मुस्लिम लीग का सयुक्त सम्मेलन उसी की परिणति था | ब्रिटिश हुक्मरानों ने प्रथम विश्व युद्ध के बाद हिन्दुस्तानियों को अपनी उत्तरदायी सरकार बनाने का भरोसा दिया था |परन्तु 1919 के संवैधानिक सुधारों में इसकी कोई झलक तक नही थी | फलस्वरूप 1919 के सुधारों की घोषणाओं से तिलक को भारी असंतोष हुआ | लेकिन अब लोकमान्य तिलक के संघर्षशील जीवन का शारीरिक क्षरण तेज़ी से होने लगा था | अगस्त 1920 में इस निर्भीक , संघर्षशील , राष्ट्र नायक एवं जननायक के जीवन का सूर्य अस्त हो गया |…
………. तिलक के समय की परिस्थितिया ……..
तिलक को याद करने के साथ – साथ इस दौर कि राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय परिस्थितियों को जरुर देखा जाना चाहिए , क्योंकि तिलक से लेकर उस दौर के अनेक क्रांतिकारी एवं राष्ट्रवादी उन्ही परिस्थितियों की उपज थे | 1857 के स्वतंत्रता संघर्ष की पराजय के साथ – साथ राष्ट्र- स्वतंत्रता की आकाक्षा व भावनाओं का प्रस्फुटन हो चुका था |ब्रिटेन की साम्राज्यी लूट और ब्रिटिश राज की अन्याय , अत्याचार के विरुद्ध राष्ट्र का व्यापक हिस्सा आक्रोशित व आन्दोलित होने लगा था |इसे भापते हुए ही वायसराय लार्ड डफरिन ने यह कहा था – “ब्रिटिश राज समुद्र में पड़ी उस चट्टान की तरह है जिस पर चारो तरफ से लहरे टकरा रही है “….. इसी को जानते हुए अंग्रेज अधिकारी ए0 ओ ० हयूम द्वारा 1885 में कांग्रेस की स्थापना की गयी | राष्ट्र के धनाढ्य सुशिक्षित , गणमान्य नागरिको को लेकर कांग्रेस की नीव डाली गयी , ताकि हिदुस्तानियो कि ब्रिटिश राज के विरुद्ध आक्रोश को कांग्रेस द्वारा प्रकट करके लोगो को शांत किया जा सके |अंग्रेज इस काम में बहुत सफल भी रहे | लेकिन सुशिक्षित लोगो का एक दूसरा हिस्सा ऐसा भी था , जो कांग्रेस की याचनाओ , प्रार्थनाओं की कार्यनीति से सहमत नही था | इसमें विपिनचंद्र पाल ,लाला लाजपत राय , तथा लोकमान्य तिलक जैसे राष्ट्रवादियो से लेकर चापेकर बन्धुओं खुदीराम बोस प्रफुल्ल चन्द्र चाकी जैसे क्रांतिकारी लोग भी शामिल थे | इसी के साथ एक दूसरी अंतराष्ट्रीय परिस्थिति ने भी जगाने – उठाने का काम किया | एशियाई जापान के हाथ से बेहद शक्तिशाली जारशाही की पराजय ने भारत समेत पूरे एशियाई देशो को यह सन्देश भी दे दिया कि एशियाई देश यूरोपीय देशो को पराजित कर सकते है | जापान की विजय के फलस्वरूप उपजे विश्वास ने भी ब्रिटिश राज के विरुद्ध असंतोष , आक्रोश महसूस कर रहे हिदुस्तानियो को बल प्रदान किया | इन अन्तराष्ट्रीय परिस्थितियों में लार्ड कर्ज़न द्वारा बंगाल के विभाजन ने आग में घी डालने का काम किया | इसने बंगाल से महाराष्ट्र तब राष्ट्रीय आन्दोलन की एक बड़ी लहर पैदा कर दी | इन राष्ट्रीय – अन्तराष्ट्रीय परिस्थितियों में बाल गंगाधर तिलक राष्ट्र के महानायक के रूप में उभरे थे | हिद्नुस्तान के स्वतंत्रता संघर्ष पर उनकी अमित छाप पड़ गयी , जो आज भी अमिट है |

……………………………ऐसे जननायक , ‘ लोकमान्य ‘ बाल गंगा धर तिलक को शत – शत नमन !

सुनील दत्ता
पत्रकार

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