‘‘ब्राह्मण-बनिया मेरी जेब में हैं।’’ ये घटिया वक्तव्य जितना नींदनीय है, उतना ही हमारे लिए चिंतनीय। चिंतनीय इसलिए है क्योंकि क्या आज हमारा समाज इस स्तर पर पहुंच गया है कि कोई भी पार्टी का नेता हम पर अधिकार जमा हमारा अपमान करता रहेगा। पिछले दिनों राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष डाटोसरा का भी वैश्य समाज के प्रति अपमान जनक वक्तव्य आया था और अब भाजपा के मध्यप्रदेश प्रभारी पी.मुरलीधर राव का ये घोर आपत्तिजनक ब्यान। ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारे समाज का नेतृत्व शक्तिविहीन हो गया है।
हमारे स्वयंभू नेता अब अपनी नीजि रोटियां सेंकने के चक्कर में इतने चापलूस हो चुके हैं कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। राव की इस टिप्पणी में बनियां बिरादरी के साथ ब्राह्मणों को अपमानित किया है। सोशल मीडिया पर वैश्यजनों व ब्राह्मण समाज के लोगों ने उनकी कड़ी आलोचना की है। लेकिन आप खुद निष्कर्ष देख सकते हैं कि ब्राह्मण संगठनों और नेताओं ने जहां मुरलीधर राव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है तो वहीं दूसरी ओर वैश्य समाज के राष्ट्रीय संगठनों के नाम पर नीजि दुकानदारी चलाने वाले स्वयंभू नेता अपनी अपनी पार्टी का चोला ओढ़कर मुहं बंद करके बैठे हुए है। क्या वो इतने डरपोक हो चुके हैं कि मोर्चा खोलना तो दूर निंदा के दो शब्द तक नहीं बोल सकते? या फिर उनका जमीर इतना मर गया है उन्हें समाज के इस अपमान से अब कोई फर्क तक नहीं पड़ता? आज जब हर समाज मुखर होकर अपने राजनीतिक अधिकारों को मांग रहा है, वहीं वैश्य समाज के नेता राजनीतिक पार्टीयों के पिछलग्गु बने हुए है। ये वक्त किसी का पिछलग्गु बनने का नहीं है बल्कि पार्टी का चोला उतारकर अपने अधिकारों को छिनने व अपने आत्मसम्मान की रक्षा का है। यहां सनद रहे कि आज भाजपा सत्ता में है तो उसे इस मुकाम तक पहुंचाने में सबसे ज्यादा योगदान इसी वैश्य समाज का है। भाजपा ने सत्ता में आने के लिए जितने भी आंदोलन किए है उनमें धन से लेकर बल तक वैश्य समाज का योगदान अविस्मणीय है। ये हमारे समाज की ही निष्क्रियता है कि भाजपा शीर्ष संगठन बिना किसी कार्यवाही मुरलीधर राव को निकल जाने देगा।
हाल ही में देश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा की गई मुख्यमंत्रियों की अदला-बदली के खेल में भी वैश्य समाज हाशिये पर दिखाई दिया क्योंकि जिस वैश्य समाज की उनके संगठनात्मक नेतृत्वों के कारण कभी तुती बोलती थी वो आज उन्हीं संगठनों के नेताओं के मुहं पर ताले लग चुके हैं। राजनीतिक दलों व नेताओं को अब लगने लगा है कि वैश्य समाज का वोट तो उनकी घर की बापौती है जो मुहं उठाकर उनके पीछे चलता रहेगा।
लगता है हमारे स्वयंभू नेता कोई सबक लेना नहीं चाहते। समाज उनके लिए बस एक स्टेज की तरह हो गया है जिस पर जब मन चाहा चढक़र नाचने लगे और अपना स्वार्थ पूरा होते ही छलांग लगाकर चल दिए। ये दुस्साहस जुटाने के लिए बड़बोले महासचिव राव को हम सबने ही वॉकऑवर दिया है। क्योंकि हरियाणा में आठ विधायक होते हुए भी एक भी मंत्री न बनाए तो हम बोलते तक नहीं? हमारी स्वयं की राजनीतिक भागीदारी व संगठनात्मक सोच कमजोर होने के चलते कोई भी किसी भी पार्टी का नेता हमें जेब में रखता है। इसलिए अपनी पहचान व उपस्थित दर्ज करवाओ तभी हम जेब से बाहर हो सकते है? बाकी ब्राह्मण और बनिया को जेब में समेटने का दुस्साहस मत करो। आने वाले चुनावों में इन नेताओं और उनकी पार्टीयों को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है।