आशु भटनागर । महज एक हफ्ते पहले तक गौतमबुद्ध नगर में अजेय नजर आ रही भाजपा अपने जनप्रतिनिधियों की जातिवादी राजनीति की गलती से बैकफुट पर आई दिख रही है, महज 4 दिन बाद एक बार फिर से फिर से गुर्जर समाज द्वारा की जा रही महापंचायत से भाजपा के जनप्रतिधियों को समझ नहीं आ रहा है कि जिले में तीन बड़ी जातियों गुर्जर, क्षत्रिय और ब्राह्मण के नाराज हो रहे मतदाताओं को कैसे विपक्ष की साजिश से भ्रमित होने से रोके । दादरी विधायक तेजपाल नागर पहले ही अपनी जाति के विरोधियों के कारण सोशल मीडिया पर शांत है तो राज्यसभा सांसद सुरेंद्र नागर गुर्जर विद्या सभा के अध्यक्ष की जगह अध्यक्षता करने के कारण निशाने पर है वहीं जेवर विधायक धीरेंद्र सिंह के सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर बताए जाने से क्षत्रिय समाज के अंदर गुस्सा बढ़ रहा है ।
क्षत्रिय समाज ने सूत्रों के अनुसार वह सिर्फ कल होने वाली गुर्जर महापंचायत का इंतजार कर रहे हैं । जिले की भाजपा के संरक्षक माने जाने डा महेश शर्मा भी अपनी उपेक्षा के कारण इस बार नाराज है । ऐसे में सब की निगाहे एक बार फिर जिले में भाजपा के सबसे अनुभवी और इस पूरे मामले में तटस्थ और हमेशा ही संकमोचक बने जिलाध्यक्ष विजय भाटी पर आ कर रुक गई है । प्रदेश नेतृत्व और स्थानीय जनप्रतिनिधियों को इस स्थिति से बचाने की चुनौती से निबटा विजय भाटी के लिए असली चैलेंज है ।
कौन है भाजपा के संकट मोचक विजय भाटी ?
सवाल है कि जिले के संकटमोचक कहे जाने वाले विजय भाटी पर ही सबकी उम्मीद क्यों आ कर रुक गई है तो इसका जबाब बीते 6 साल में लगातार दूसरी बार भाजपा जिलाध्यक्ष की कार्यशैली है । बाते 20 सालो में संगठन में मंडल अध्यक्ष से शुरू होकर जिलाध्यक्ष बनाने वाले विजय भाटी की पार्टी लाइन का सख्ती से पालन, जातिवाद और प्रचार से दूर रहना ही सिर्फ उनकी यूएसपी नहीं है उनके खाते में, 2017 में पहली बार तीनों विधासभा गुर्जर और क्षत्रिय विधायक, 2019 में ब्राह्मण सांसद के स्थानीय विरोध के बाबजूद जितवाना शामिल है तो हाल ही में जिला पंचायत चुनावों में तीन सीट लेकर जाट समुदाय का जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने का कौशल भी शामिल है। गौतमबुद्ध नगर में शांति से राजनीति को पलटने का श्रेय विजय भाटी के कुशल संगठन नेतृत्व को है कहते है उनके संगठनात्मक कौशल के चलते ही भाजपा गौतम बुध नगर में लगातार जीत हासिल की है सत्ता पक्ष के होने के बावजूद संगठन को नियंत्रण में रखना किसी भी राजनीतिक दल और उसके जिलाध्यक्ष के लिए बड़ी चुनौती रहती है जिसमें विजय भाटी हमेशा कामयाब रहे है ।
क्या है विजय भाटी की सबसे बड़ी चुनौती ?
विजय भाटी के सामने सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के अंदर बढ़ी नफरत को बढ़ाने वाले कारकों पर लगाम कसना है तो दूसरी ओर विपक्ष के जातीय प्रहारों को निस्तेज करना भी उनके लिए कठिन रहेगा । दरअसल 6 सालों के विजय भाटी के प्रयास को बीते हफ्ते भर में जिस तरीके से जनप्रतिनिधि में पानी फेरा है उसके बाद एक बार फिर से उनको अपने संगठन के भरोसेमंद सिपाहियों को लेकर एक एक करके इन समस्याओं का हल करना पड़ेगा । उनकी पार्टी के लिए सबसे पहली चुनौती कल होने वाली गुर्जर महापंचायत रहेगी इसके होने के बाद ही पता लगेगा कि वह अपनी जाति के लोगों को किस तरीके से इस मसले पर सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के लिए मना पाएंगे इसके साथ ही विपक्ष के नेताओं द्वारा इस मुद्दे को हवा देने के प्रयास को भी रोकना विजय भाटी के लिए हैं कम बड़ा चैलेंज नहीं रहेगा ।
कैसे निबटेंगे आंतरिक भीतरघात को ?
गौतम बुध नगर दादरी प्रखंड के बाद आए संकट में विजय भाटी के लिए सबसे बड़ा चैलेंज पार्टी के अंदर उत्पन्न हो रहे भितरघात से निपटना है दरअसल पार्टी के दोनों विधानसभा के जनप्रतिनिधि बीते चुनाव से पहले ही भारतीय जनता पार्टी में आए थे ऐसे में संगठन के साथ उनका तालमेल भाजपा में हमेशा सवालों के घेरे में रहा है संगठन में पहले भी और कार्यक्रम के बाद भी तमाम लोगों ने इस बात की शिकायत की कि कार्यक्रम में मंच पर और बाकी जगह संगठन के लोगों को वह सम्मान नहीं मिला जो जनप्रतिनिधियों के साथ घूमने वाले लोगों के पास था और शायद पूरी अव्यवस्था का प्रमुख कारण भी यही रहा
गौतम बुध नगर की राजनीति को समझने वाले लोगों का कहना है कि अपने समर्पण और पार्टी को अजेय बना दिए विजय भाटी से जनप्रतिनिधि उनके कद के बड़ा होने से डरते रहे हैं इसलिए गाहे-बगाहे मौके का फायदा उठा कर उनके खिलाफ तमाम खबरें प्लांट करवाई जाती हैं जिससे पार्टी के अंदर उनका रुतबा कम हो । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यक्रम में भी जहां विजय भाटी संगठन के प्रति समर्पण भाव से कार्यक्रम में लगे हुए थे वही बाकी लोग अपने प्रचार में दिन रात एक किए हुए थे और वही बाद में जाकर जनप्रतिनिधियों के लिए नुकसानदायक भी हो गया मगर विजय भाटी कहीं भी विवाद में नहीं आए । विजय भाटी को लेकर कई बार संगठन के लोगों के मुकदमों को लेकर आरोप लगाए गए हैं लेकिन हर बार उन्होंने संगठन के लोगों के लिए लड़ाई लड़ी है और जीते भी हैं ।
कम मुश्किल नहीं है जातीय अस्मिता को ढाल बनाकर लड़ने वाले विपक्ष को साधना
दादरी प्रकरण के बहाने विजय भाटी के लिए इस बार जातीय अस्मिता की लड़ाई को ढाल बनाकर विपक्ष को न्यूट्रल करना भी कम मुश्किल नहीं है विपक्ष ने पूरी राजनीति को जातीय अस्मिता के नाम पर इस तरीके से बिखेर दिया है जिसके लिए विजय भाटी को अपने संगठन के इन जातियों में महत्व रखने वाले लोगों के जरिए साधना पड़ेगा हालांकि विजय भाटी इस काम में महारत हासिल रखते हैं और उन्होंने पहले भी इस तरीके के कामों को बखूबी किया है जिला पंचायत के समय वार्ड नंबर 1 में जब क्षत्रिय बाहुल्य सीट पर सुरक्षित किए जाने के बाद मतदाता नाराज था तब विजय भाटी ने एक ऐसी महिला प्रत्याशी मोहनी जाटव को वहां खड़ा कर जिता दिया जिसकी शादी क्षत्रिय समाज में हुई थी जिसके कारण दोनों ही जाति के लोग संतुष्ट भी हुए और विजय भाटी के राजनैतिक कौशल के आगे विरोधी नतमस्तक भी हुए। ऐसे में वही दांव इस बार फिर से कैसे चला जाएगा इसको देखना रोचक रहेगा
काम में आ सकता है पूर्वांचलियों पर भरोसा दिखाना
विजय भाटी के संगठनात्मक कौशल में एक ट्रम्पकार्ड ग्रेटर नोएडा वेस्ट और बिसरख मंडल के शहरी और पूर्वांचल समाज के मतदाता भी हैं जिले के 11 मंडलों में सबसे ज्यादा बड़ा मंडल बिसरख मंडल है और यहां जातीय समीकरण ना के बराबर है विजय भाटी अगर बाहर से आकर बसे प्रवासी समाज को भी बैलेंस किया हुआ है इसी को आगे भी बनाए रख कर वह स्थानीय जातियों के दबाव और ब्लैक मेलिंग को न्यूट्रल भी कर सकते हैं
ऐसे में कल होने वाली महापंचायत का असर जो भी हो भाजपा को इस संकट से निकालने के लिए विजय भाटी के समक्ष चुनौतियां बड़ी हैं और उनको पार कर संकटमोचक कहलाने का अवसर भी उतना ही बड़ा है विजय भाटी इस संकट से पार्टी को निकाल पाएंगे या भाजपा इस पूरे संकट के कारण विधानसभा 2022 में नुकसान उठाएगी इसका फैसला आने वाले दिनों में ही हो पाएगा