
आशु भटनागर । बहलोल पर में झुग्गियों में लगी आग ठंडी हो चुकी है इसके साथ ही ठंडी हो गई वहां के लोगो के साथ पहले दिन उमड़ी सहानभूति। लोगो ने आपदा में अवसर तलाशते हुए बड़ी बड़ी घोषणाएं कर दी। समाजसेवियों ने कुछ डब्बे बाल्टी और २ किलो चावल देकर फोटो खिंचाने और उसे सोशल मीडिया पर बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी तो विपक्ष के नेताओं ने भी मदद करने वालो में अपना नाम लिखवा दिया।

प्रशासन भी मृतक बच्चियों के पिता को 4-4 लाख और बाकियों को कुछ हजार रुपए देकर शांत हो गए। ऐसा लगता है कि जिंदगी सबकी पटरी पर आ गई है । और इसी के साथ नोएडा जैसे शहर में झुग्गियों पर होने वाला विमर्श भी समाप्त हो गया । कोई नहीं पूछ रहा उस मदन से जिसके सालो से जमा हुए कुछ लाख रुपए इस आग में जल गए। कोई बात नही कर रहा इन लोगो की जिनके सारे कागज इस आग में जल हुए। प्रशासन और समाजसेवी चुप है कि इनको दुबारा आधार, पहचान पत्र , वोटर आईडी कार्ड कैसे मिलेंगे। और किस आधार पर सरकार इनको सरकारी मदद देगी और सबसे बड़ी बात क्या सामाजिक नेता, सामाजिक नेता और प्रशासन मिलकर इनको पक्के घर( किराए के ही सही) दिलाएगा या फिर इनको फिर किसी दूसरी झुग्गियों की कालोनियों में रहने जाना होगा जहां फिर से कुछ समय बात लगने वाली आग इनका इंतजार करेगी
असल में झुग्गियों पर विमर्श इस हाईटेक सिटी के अधिकारियों की सूची में है ही नही। अधिकारियों की सूची में सबसे प्रमुख काम है शहर को सुंदर बनाना । दीवारों पर पेंटिंग करवाना। क्लीन नोएडा स्वच्छ नोएडा जैसे अभियान चलाना । ऐसे शहर की चमक दमक से दूर इन मैले कुचेलें लोगो के लिए अधिकारियों प्रशासन के पास वक्त नहीं है । किसी ने भी नोएडा अथार्टी की सीईओ ऋतु माहेश्वरी से ये नही पूछा की आखिर शहर में कितने स्थानों पर अवैध झुग्गियां उनकी जानकारी में है । और अगर हैं तो उनके किराए कौन ले रहा है और क्या वो कहीं समाजसेवी के भेष में रोज अधिकारियों के साथ ही तो नही बैठ रहा है। आखिर गांवों में प्रशासनिक दखल कब आरंभ होगा क्योंकि अधिकांश जगह झुग्गियां ऐसी ही जगह है जो या तो आबादी की जमीन पर है या फिर किसी विवादित सरकारी जमीन पर है।
पूछा तो किसी गौतम बुध नगर के जिला अधिकारी सुहास एल वाई और पुलिस कमिश्नर आलोक सिंह से भी नही कि आखिर कौन सी मजबूरी में कानून ने इन अवैध झुग्गियों से अपनी आंखे बंद कर ली है । आखिर कानून मानवता के नाम पर ऐसी अवैध बस्तियों को बसने कैसे देता है
और पूछा तो लोगो ने ट्विटर पर 24×7 रहने वाले नेताओं से भी नही कि आखिर नेताओ ने कब इनके लिए कोई प्लानिंग की। क्या सिर्फ झुगियों के लोग नेताओ के लिए महज वोट है। आखिर एक औधोगिक शहर में झुग्गियों के बसावट में यही सब लोग तो जिम्मेदार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 2024 तक सबको घर देने का सपना इन झुगियो से पूरा होगा क्या ?
और पूछा तो कभी हम मध्यमवर्ग ने खुद से भी नही कि आखिर हमारे घरों में काम करने वाली सहायिकाएं और गार्ड आखिर कैसे इन झुग्गियों में रह रहे है और क्यों रह रहे है।
ऐसे में समस्या वही है कि झुग्गियां भू माफिया, प्रशासन, राजनेता और समाजसेवी सबके लिए कमाई का साधन है ऐसे में इनके जलने के बाद अगर कुछ मुआवजा देना भी पड़े और उसके चलते उसको सोशल मीडिया पर डाल कर नाम चमका लिया जाए तो ऐसे झुग्गियों में आग लगती रहनी चाहिए। यहां सब लाशों की राजनैति के पोस्टर बॉय है और गरीबों को लाशों पर ही इनका समाज और सरोकार चलता है