21 जून को सूर्य ग्रहण के दिन रविवार का पड़ रहा है। यह कंकण सूर्य ग्रहण सुबह 9 बजकर 15 मिनट 58 सेकंड पर शुरू हो जाएगा और दोपहर 3 बजकर 4 मिनट 1 सेकंड पर समाप्त होगा। यानी यह सूर्यग्रहण कुल 5 घंटे 48 मिनट और 3 सेकंड के लिए होगा। लेकिन इस सूर्यग्रहण का आरंभ और समापन का समय भारत के साथ में अलग-अलग भूभागों में स्थानिय समय अनुसार रहेगा।
वलयाकार ग्रहण भी कहा जा रहा है। वलयाकार सूर्य ग्रहण में जब ग्रहण चरम पर होता है तो सूर्य किसी चमकते हुए कंगन, रिंग या अंगूठी की तरह लगने लगता है। ठीक ऐसा ही ग्रहण 25 साल पहले यानी वर्ष 1995 में लगा था।
सूर्यग्रहण इसलिए होगा महत्वपूर्ण क्योंकि अगला ग्रहण 21 मई 2031को लगेगा।
ग्रहण के साथ एक और खगोलीय घटना का संयोग
इस बार सूर्य ग्रहण के साथ एक और संयोग है। यह एक दुर्लभ खगोलीय घटना का निर्माण कर रहा है। यह ग्रहण ऐसे दिन होने जा रहा है जब उसकी किरणें कर्क रेखा पर सीधी पडेंगी। इस दिन उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन और सबसे छोटी रात होती है।
चांद से 400 गुना बड़ा है सूर्य, बावजूद ढंक जाता है
यह सचमुच रोचक बात है कि पृथ्वी का चंद्रमा आकार में सूर्य में बहुत छोटा है। सूर्य इससे 400 गुना बड़ा है। जब ग्रहण घटित होता है तो दोनेां का आकार हमें पृथ्वी से देखने पर समान मालूम पड़ता है। तभी तो सूर्य पूरा ढंक जाता है। हालांकि दोनों का जो आभासीय आकार है, वह मात्र आधी डिग्री का ही है। सच्चाई यह है कि सूर्य चांद से 400 गुना बड़ा है, इसके बाद भी चांद सूर्य की किरणों को पृथ्वी पर आने से रोक देता है।
कितने प्रकार का होता है सूर्य ग्रहण
पूर्ण सूर्य ग्रहण – जब पूर्णत: अंधेरा छाये तो इसका तात्पर्य है कि चंद्रमा ने सूर्य को पूर्ण रूप से ढ़क लिया है इस अवस्था को पूर्ण सूर्यग्रहण कहा जायेगा।
खंड या आंशिक सूर्य ग्रहण – जब चंद्रमा सूर्य को पूर्ण रूप से न ढ़क पाये तो तो इस अवस्था को खंड ग्रहण कहा जाता है। पृथ्वी के अधिकांश हिस्सों में अक्सर खंड सूर्यग्रहण ही देखने को मिलता है।
वलयाकार सूर्य ग्रहण – वहीं यदि चांद सूरज को इस प्रकार ढके की सूर्य वलयाकार दिखाई दे यानि बीच में से ढका हुआ और उसके किनारों से रोशनी का छल्ला बनता हुआ दिखाई दे तो इस प्रकार के ग्रहण को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है। सूर्यग्रहण की अवधि भी कुछ ही मिनटों के लिये होती है। सूर्य ग्रहण का योग हमेशा अमावस्या के दिन ही बनता है।
21 जून, 2020 का सूर्य ग्रहण 26 जून, 2020 का ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। इसका परिमाण 0.99 होगा। यह पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं होगा क्योंकि चन्द्रमा की छाया सूर्य का मात्र 99% भाग ही ढकेगी। आकाशमण्डल में चन्द्रमा की छाया सूर्य के केन्द्र के साथ मिलकर सूर्य के चारों ओर एक वलयाकार आकृति बनायेगी। इस सूर्य ग्रहण की सर्वाधिक लम्बी अवधि 0 मिनट और 38 सेकण्ड की होगी।
21 जून को सूर्य ग्रहण के दिन सूर्य कर्क रेखा के एकदम ठीक ऊपर आएगा।
21 जून का दिन साल का सबसे बड़ा दिन माना जाता है। ऐसा संयोग दूसरी बार बना है जब साल के सबसे बड़े दिन पर सूर्य ग्रहण लग रहा है। इससे पहले 19 साल पहले 2001 में 21 जून को सूर्य ग्रहण लगा था।
21 जून को सूर्य ग्रहण के दिन रविवार का पड़ रहा है और शास्त्रों में रविवार का दिन भगवान सूर्य को समर्पित होता है।
सूर्यग्रहण कैसे होता है
जब भी सूर्य, पृथ्वी व चंद्रमा एक सीधी रेखा में आते हैं, सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण में से कोई एक खगोलीय घटना देखने में आती है। यह इन तीनों की स्थिति पर निर्भर है कि कौन सा ग्रहण होगा। जब चंद्रमा, पृथ्वी व सूर्य के बीच में आता है उसकी छाया पृथ्वी पर पड़ती है, जो कि सूर्य की किरणों को धरती पर सीधे पहुंचने से रोकती है। तीनों खगोलीय पिंडों की स्थिति व दूरी के अनुसार तीन तरह के ग्रहण होते हैं, पूर्ण, आंशिक व वलयाकार। 21 जून को होने वाला सूर्य ग्रहण वलयाकार है।
वलयाकार सूर्यग्रहण कैसे होता है ?
जब चंद्रमा, पृथ्वी से अपनी अधिकतम दूरी के निकट होता है, जिसे हम एपोजी कहते हैं, उसका आकार सूर्य को पूरी तरह ढक नहीं पाता और उसका बाहरी हिस्सा दृश्यमान रह जाता है जो एक छल्ले की आकृति सा प्रतीत होता है। इसे रिंग ऑफ फायर भी बुलाते हैं।
सूर्य ग्रहण के दिन सभी 9 ग्रहों में से 6 ग्रह वक्री चाल में रहेंगे। वक्री चाल को उल्टी चाल कहा जाता है इसमें ग्रह उल्टी दिशा में चलते हैं। यह सयोंग भी रहेगा।
वैदिक , पौराणिक , आध्यात्मिक महत्व
महर्षि वेदव्यासजी कहते हैं : ‘‘रविवार को सूर्यग्रहण अथवा सोमवार को चन्द्रग्रहण हो तो ‘चूड़ामणि योग’ होता है जिसमें सूर्यग्रहण में जो पुण्य होता है ,उससे करोड़ गुना पुण्य कहा गया है ।’’ 21 जून को जो सूर्य ग्रहण है वो रविवार को है इसलिए चूड़ामणि योग बनता है |
स्कंद पुराण के अवंति खंड के अनुसार उज्जैन राहु और केतु की जन्म भूमि है। सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण का दंश देने वाले ये दोनों छाया ग्रह उज्जैन में ही जन्मे थे।
अवंति खंड की कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत का वितरण महाकाल वन में हुआ था। भगवान विष्णु ने यहीं पर मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पान कराया था। इस दौरान एक राक्षस ने देवताओं का रूप धारण कर अमृत पान कर लिया था। तब भगवान विष्णु ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया था। अमृत पान के कारण उसके शरीर के दोनों भाग जीवित रहे और राहु और केतु के रूप में पहचाने गए।
राहु और केतु को ज्योतिष में छाया ग्रह कहा जाता है। ये दोनों ग्रह एक ही राक्षस के शरीर से जन्मे हैं। राक्षस के सिर वाला भाग राहु कहलाता है, जबकि धड़ वाला भाग केतु। कुछ ज्योतिष इन्हें रहस्यवादी ग्रह मानते हैं। यदि किसी की कुंडली में राहु और केतु गलत स्थान पर हों तो उसके जीवन में भू-चाल ला देते हैं। ये इतने प्रभावशाली हैं कि सूर्य और चंद्रमा पर ग्रहण भी इनके कारण ही लगता है।
राहु-केतु के अस्तित्व की असल कहानी : दैत्यों की पंक्ति में स्वर्भानु नाम का दैत्य भी बैठा हुआ था। उसे आभास हुआ कि मोहिनी रूप को दिखाकर दैत्यों को छला जा रहा है। ऐसे में वह देवताओं का रूप धारण कर चुपके से सूर्य और चंद्र देव के आकर बैठ गया, जैसे ही उसे अमृत पान को मिला सूर्य और चंद्र देवता ने उसे पहचान लिया और मोहिनी रूप धारण किए भगवान विष्णु को अवगत कराया। इससे पहले ही स्वर्भानु अमृत को अपने कंठ से नीचे उतारता भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। क्योंकि उसके मुख ने अमृत चख लिया था इसलिए उसका सिर अमर हो गया।
भगवान ब्रह्मा जी ने सिर को एक सर्प के शरीर से जोड़ दिया यह शरीर ही राहु कहलाया और उसके धड़ को सर्प के सिर के जोड़ दिया जो केतु कहलाया। पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य और चंद्र देवता द्वारा स्वर्भानु की पोल खोले जाने के कारण राहु इन दोनों देवों का बैरी हो गए।
मत्स्यपुराण की कथानुसार समुद्र मंथन से अमृत निकला था तो राहु नाम के दैत्य ने देवताओं से छिपकर उसका पान कर लिया था। इस घटना को सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया था और उसके इस अपराध को उन्होंने भगवान विष्णु को बता दिया था। इस पर भगवान क्रोधित हो गए। राहु को इसके लिए दंड देने के लिए सुदर्शन चक्र चलाया लेकिन अमृतपान की वजह से उसकी मृत्यु नहीं हुई। वहीं राहु ने सूर्य और चंद्रमा से प्रतिशोध लेने के लिए दोनों पर ग्रहण लगा दिया। इसे हम सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के नाम से जानते हैं। इसके साथ यह भी कहा जाता है कि एक बार राहू ने सूर्य पर आक्रमण कर उसे अंधकारमय कर दिया था। इस स्थिति से निपटने के लिए महर्षि अत्री ने अपने अर्जित सिद्धियों व शक्तियों के प्रयोग से राहू नाम की छाया का नाश किया तथा सूर्य को फिर से प्रकाशवान हुआ।
सूर्यग्रहण को इससे भी जोड़कर देखते है
गौड़ ने बताया कि महाभारत के तथ्यों के अनुसार जिस दिन पांडवों ने कौरवों के साथ जुए में अपना राजपाट हार दिया था। उस दिन सूर्यग्रहण था। सूर्य ग्रहण के दिन सूर्य का ग्रास होता है। यही कारण है कि जिस देश में एक समय वर्ष में तीन या तीन से अधिक सूर्यग्रहण होते है। वहां पर सता परिवर्तन और प्राकृ्तिक आपदाएं आने की संभावनाएं अधिक होती है। महाभारत के अन्य अध्याय के अनुसार जब महाभारत युद्ध में जिस दिन अर्जुन ने कौरवों के सेनापति जयद्रथ का वध किया था। उस दिन भी सूर्यग्रहण था।
जिस दिन भगवान की नगरी द्वारका जलमग्न हुई थी उस दिन भी सूर्य ग्रहण था। सूर्यग्रहण के दिन सूर्य का ध्यान-मनन करना चाहिए। ग्रहण का शाब्दिक अर्थ ही स्वीकार करनाए। स्वयं में ज्ञान का प्रकाश प्रजज्वलित करने में सूर्य ग्रहण काल विशेष रुप से उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
द्वापर युग में ग्रहण के दौरान भगवान श्रीकृष्ण भी कुरुक्षेत्र पधारे थे। द्वारका के दुर्ग को अनिरुद्ध व कृतवर्मा को सौंपकर भगवान श्रीकृष्ण, अक्रूर, वासुदेव, उग्रसेन, गद, प्रद्युम्न, सामव आदि यदुवंशी व उनकी स्त्रियां भी कुरुक्षेत्र स्नान के लिए आई थीं। तभी बृजभूमि से गोपियां भी स्नान करने पहुंची थी। इस स्नान के दौरान ही उनकी भगवान श्रीकृष्ण से भेंट हुई थी। तब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें रथ में बैठाकर चलाते हुए मथुरा गए थे।
ऋग्वेद के अनुसार यह ज्ञान अत्रिमुनि को था, पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मत्स्यपुराण, देवीभागवत आदि पौराणिक ग्रथों में सूर्य ग्रहण के विषय में दान, जप, स्नान, तथा मानव जीवन में उसके पड़ने वाले प्रभाव के विषय में वर्णित किया गया है।
ग्रहण के दौरान खाद्य पदार्थ (भोजन) के बर्तनों में दर्भ क्यों रखते है?
ग्रहण के समय लोग सडने वाले भोजन के बर्तनों में दर्भ घास (कुशा) रखते हैं और ग्रहण के बाद निकाल देते हैंं। जैसे कि उपर समझाया गया है सुक्ष्म जीवों का अनियंत्रित विकास हो जाता है और दर्भ प्राकृतिक किटाणुनाशक होने की वजह से बर्तनों में रखा जाता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि दर्भ घातक रासायनिक संरक्षको की जगह प्राकृतिक खाद्य संरक्षक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और दर्भ घास की सतह के श्रेणीबद्ध अतिसुक्ष्म स्वरूप की नकल उतारने वाले अप्राकृतिक सतह का स्वास्थ्य के देखभाल में अनुप्रयोग किया जा सकता है जहाँ जीवाणुरहित हालत की आवश्यकता होती होगी।
कुशा नही हो तो तुलसी भी रखी जा सकती हैं।
भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण जनवरी 2020 के बाद तेजी से फैलना शुरू हुआ था। इससे पहले 26 दिसंबर, 2019 को सूर्य ग्रहण लगा था। ज्योतिषीय गणना के अनुसार 2019 का ग्रहण बेहद नकारात्मक परिणाम देने वाला था, इसके चलते ही यह महामारी पनपी। ग्रहण से उपजा यह संकट ग्रहण से ही समाप्त हो सकता है। 21 जून के ग्रहण के एक पखवाड़े के भीतर कोरोना के संक्रमण में कमी आना शुरू हो सकती है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण कब और कहां क्या रहेगा प्रभाव
ये ग्रहण भारत, नेपाल, पाकिस्तान, सऊदी अरब, यूएई, इथियोपिया और कांगो में दिखाई देगा।
संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, दक्षिण-पश्चिम इंग्लैंड, बेल्जियम, इटली, वेल्स, निचला मिस्र और आर्मेनिया मिथुन राशि के प्रभाव में आते हैं, जिस राशि में सूर्य को ग्रहण लगेगा।। जबकि स्पेन, सऊदी अरब और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश धनु राशि के प्रभाव में आते हैं जिस पर ग्रहण के दौरान सूर्य की दृष्टि रहेगी। इसलिए ये देश सूर्य ग्रहण से अधिक प्रभावित होंगे। सूर्य ग्रहण से उत्पन्न नकारात्मक ऊर्जा 21 जून को दोपहर 1 बजे से 2:30 बजे के बीच सबसे अधिक प्रभावी रहेगी, जिसका भारत, चीन, अमेरिका , इंग्लैंड , पाकिस्तान , नेपाल पर विशेष प्रभाव होगा।
भारत में सूर्य ग्रहण आंशिक रूप से नई दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता, चंडीगढ़, बैंगलोर, लखनऊ, चेन्नई जैसे कुछ प्रमुख शहरों में देखा जा सकेगा। इसके अलावा यह नेपाल, पाकिस्तान, सऊदी अरब जैसे देशो में भी दिखाई देगा। साथ-साथ साउथ ईस्ट यूरोप, हिंद महासागर, प्रशांत महासागर, अफ्रीका और अमेरिका के कुछ भागों से भी देखा जा सकता है।
पृथ्वी के भूभागों पर ग्रहण का प्रभाव:-
किसानों को संकट का सामना करना पड़ेगा, ग्रहण के समय मिथुन राशि में सूर्य-चन्द्र-बुध-राहु का चतुग्रही योग एवं मकर के नीचस्थ वक्री गुरु का वक्री शनि के साथ सम्बन्ध प्रतिष्ठित शासकों,सैन्य अधिकारियों तथा देश व विश्व के लिए विकट स्थितियों भरा रहेगा । अफगानिस्तान,चीन, जापान,पाकिस्तान व इण्डोनेशिया के कुछ भागों में जल प्रलय, तूफान ,भूकम्प रोगों आदि से जन -धन हानि की सम्भावनायें हैं । अनेक देशों में तनाव व युद्ध की स्थिति रह सकती है ।
यह ग्रहण मृगशिरा एवं आद्रा नक्षत्र अर्थात् मिथुन राशि में है , मिथुन राशि के लिए यह विशेष प्रतिकूल है ।वृष,मिथुन,कन्या,तुला,धनु व मीन राशि के लिए ग्रहण का फल प्रतिकूल है
अन्य के लिए सामान्यतया ठीक है ।
अमावस्या श्राद्ध निर्णय:- यहाँ अमावस्या तिथि 21 जून की अपेक्षा 20 जून को मध्यान्ह काल को अधिक व्याप्त कर रही है इसलिए अमावस्या तिथि जन्य वार्षिक क्षयाह एकोदिष्ट श्राद्ध 20 जून को किया जाना शास्त्र सम्मत है ।
ग्रहण के समय ये उपाय रहेंगे लाभदायक , मिलेगी सफलता
ग्रहण के दौरान इन मंत्रों का जप करें-
- ॐ गं गणपतये नमः
- ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:
- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं ॐ स्वाहा:
- ॐ ह्लीं दुं दुर्गाय: नम:
- ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ओम् स्वाहा
- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:
- ॐ नमः शिवाय
- ॐ नमो नारायण
- ॐ नमों विचित्राय धर्म लेखकाय यम वाहिकाधिकारिणे म्ल्व्यूं जन्म-सम्पत्-प्रलयं कथय-कथय स्वाहा।
- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।
श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र, आदित्य ह्रदय स्तोत्र ,गुरुमंत्र , नवग्रह मंत्र , इष्ट मंत्र , अन्य पंच देव स्तोत्र , चालीसा , अथर्वशीर्ष , पाठ , सनातन वैदिक धर्म मे ऋषियों द्वारा प्रदत्त शास्त्र ज्ञान से किये गए उपाय अत्यन्तलाभकारी परिणाम प्रदान करेंगे।
सर्वे भवन्तु सुखिनः
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद