आर. के. सिन्हा । भारत-पाकिस्तान के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों की जीवनभर वकालत करते रहे चोटी के शायर अहमद फराज का एक शेर है, ‘ रात नाम लेती नहीं है खत्म होने का, यही तो वक्त है सूरज तेरे निकलने का। भारत-पाकिस्तान संबंधों के हवाले से ये बेहद मौजू शेर है। मास्को से बारास्ता काबुल वापस आते वक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अचानक से लाहौर जाकर प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मुलाकात करना बहुत कुछ कह गया है। लाहौर एयरपोर्ट पर मोदी-शरीफ गर्मजोशी से गले मिले। यानी अब उन ताकतों को सावधान हो जाना चाहिए जो भारत-पाकिस्तान के बीच संबंधों में कभी चाशनी घुलता देखना नहीं चाहतीं।
भारत-पाकिस्तान संबंधों को लेकर हालिया हलचल संदेश दे रही है कि मोदी-शरीफ ख्वाहिश रखते हैं और वाकई दोनों देशों के दशकों से उलझे हुए मसलों को सुलझाने को लेकर गंभीर हैं। गुफ्तुगू के दौर शुरू हो चुके हैं और इसे जारी रखा जाएगा। अब कश्मीर से लेकर आतंकवाद से जुड़े मसलों पर कोई सहमति बनेगी। आपसी व्यापारिक संबंध बेहतर किए जाएँगे।
मोदी अचानक से लाहौर पहुंचे या उनकी यात्रा सुनियोजित थी, इसपर बुद्धिविलास से फर्क ही क्या पड़ता है? नरेन्द्र मोदी ने अपने हालिया लाहौर दौरे से अपने पूर्ववर्ती के ख्वाब को सच साबित करके दिखा दिया। डा. मनमोहन सिंह ने साल 2007 में कहा था कि मेरी चाहत है कि दोनों मुल्कों के लोगों को इस बात की छूट मिले कि वे नाश्ता अमृतसर में करें, लंच लाहौर में और रात की दावत रावलपिंडी में करें।
दरअसल विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की हालिया पाकिस्तान यात्रा संदेश दे गई थी कि भारत- पाकिस्तान संबंधों पर पड़ी बर्फ की चादर जल्द ही पिघलेगी। दोनों मुल्क स्थायी रूप से शत्रु बनकर नहीं रह सकते। बुजुर्गो का पुराना कहना है कि यदि सुख और शान्ति से रहना चाहते हो तो पड़ोसियों को अच्छा मित्र बनाओ कि वे तुम्हारे सुख-दुःख में साथ खड़े नजर आयें। अपने शपथ ग्रहण समारोह में मोदी ने नवाज शरीफ को निमंत्रण देकर एक तरह से अपनी मंशा साफ कर दी थी कि उनकी सरकार पाकिस्तान से सदभावनापूर्ण संबंध चाहती है। अभी तक दोनों मुल्कों के संबंधो में ‘‘कभी खुशी-कभी गम’’ का भाव रहता है। अब कोशिश ये होनी चाहिए दोनों उन अवरोधों को पार करते रहे जो उनके सामने आएंगे संबंधों को सुधारने के रास्ते में। इस लिहाज से पाकिस्तान के सामने बड़ी चुनौती है। वहां पर आर्मी का असर खासा रहा है। आर्मी का मूल चरित्र घोर भारत विरोधी रहा है शुरूआत से ही। पाकिस्तान के आर्मी चीफ राहील शरीफ लगातार भारत विरोधी जहर उगलते रहते हैं। उन्होंने कुछ समय पहले ही जंग की सूरत में भारत को अंजाम भुगतने की चेतावनी दी थी। सुषमा स्वराज के पाकिस्तान दौरे से कुछ समय पहले राहील शरीफ ने कहा था, श्हमारी सेना हर तरह के हमले के लिए तैयार है। अगर भारत ने छोटा या बड़ा किसी तरह का हमला कर जंग छेड़ने की कोशिश की तो हम मुंहतोड़ जवाब देंगे और उन्हें ऐसा नुकसान होगा जिसकी भरपाई मुश्किल होगी। राहील शरीफ कश्मीर के मसले पर भी टिप्पणी करने से बाज नहीं आते। साफ है कि नवाज शरीफ अगर राहील शरीफ को कसे तो दोनों देशों के संबंधों में मिठास घुल सकती हैं। राहील शरीफ बेहद एंटी इंडिया स्टैंड लेते हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह भी है। दरअसल 1971 की जंग में उनके बड़े भाई हिन्दुस्तानी फौज की जवाबी कार्रवाई में मारे गए थे।
हालांकि बीते दिनों ये सुनकर अच्छा लगा था कि नवाज शरीफ ने अपने मंत्रियों और सहयोगियों को भारत के खिलाफ गैर-जिम्मेदराना और भड़काऊ बयान देने से बचने के लिए कहा था। पर बेहतर होगा कि राहील शरीफ की जुबान पर ताला लगाएं नवाज शरीफ। राजमोहन गांधी ने अपनी किताब – पंजाब- ए हिस्ट्री फ्रोम औरंगजेब टू माउंटबेटन में लिखा है कि पाकिस्तान की सेना पर पंजाबियों का वर्चस्व साफ है। उसमें 80 फीसद से ज्यादा पंजाबी हैं। ये घोर भारत विरोधी हैं। इस भावना के मूल में पंजाब में देश के विभाजन के समय हुए खून-खराबे को देखा जा सकता है। शरीफ को पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में भारत विरोधी ताकतों को भी कुचलना होगा। पाकिस्तान का पंजाब इस्लामिक कट्टरपन की प्रयोगशाला है। वहां पर हर इंसान अपने को दूसरे से बड़ा कट्टर मुसलमान साबित करने की होड़ में लगा रहता है। हालांकि ये भी सच है कि अब पाकिस्तान में निर्वाचित सरकार गुजरे दौर की तुलना नें कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। आज के दिन उससे सेना भी पंगा लेने से बचती है। शरीफ नेअपने मंत्रियों को भारत विरोधी बयानबाजी करने से बचने की सलाह देकर परोक्ष रूप से सेना को संदेश दे दिया कि अब उसे अनावश्यक रूप से निवार्चित सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। जो भी हो, नवाज शरीफ को सेना चीफ राहील शरीफ की जुबान पर ताला तो लगाना ही होगा। इधर, भारत में भी पाकिस्तान विरोधी ताकतों को शांत होना होगा।
दरअसल भारत-पाकिस्तान के संबंधों की तुलना किसी अन्य दो देशों से करना बेमानी होगा। एक ही लोग,एक खान-पान,एक पहनावा,पर गिले-शिकवे हजार। दोनों को एक-दूसरे से शिकायतें हैं तमाम। कश्मीर से लेकर करगिल तथा सर क्रीक के अनसुलझे सवाल। मुम्बई में 26ध्11 के लिए जिम्मेदार लोगों का अभी तक कानूनी शंकजे से बचे रहना। पर इन गिले-शिकवों के बीच दोनों देशों के अवाम में एक दूसरे को लेकर प्रेम है। गुजरे दौर की कड़वी यादें खत्म हो रही है। एक-दूसरे के साथ मिलने की ख्वाहिश बढ़ रही है। मोदी की पाकिस्तान यात्रा से दोनों पड़ोसी मुल्कों की फिजाओं में मैत्री का रंग और गाढ़ा हुआ है। आम राय यह बन रही है यहां-वहां के कश्मीर को छोड़कर सियाचीन और सरक्रीक जैसे समाधान योग्य मुद्दों पर आगे बढ़ना चाहिए और द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना चाहिए।
एक बात और। मोदी ने काबुल के बाद लाहौर जाकर मानो पाकिस्तान को भरोसा दिला दिया कि उनका देश काबुल को इस्लामाबाद के खिलाफ इस्तेमाल नहीं करेगा। भारत के इस कदम का स्वागत होगा, क्योंकि, पूरी दुनिया अफगानिस्तान में तालिबान का सफाया चाहती है।
इसके साथ ही अब भारत-पाकिस्तान के व्यापारिक संबंधों में भी नई जान फूंकने की आवश्यकता है। भारत-चीन के बीच जटिल सीमा विवाद के बाद भी व्यापारिक रिश्ते जिस तेजी से कदमताल कर रहे हैं,उसी तरह से भारत-पाकिस्तान के व्यापारिक संबंध भी आगे बढ़ने चाहिए।
भारत के साथ चालू वित्त वर्ष के अप्रैल-दिसम्बर के 9 माह में 49.5 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ चीनभारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सांझीदार देश बन गया है।ये आंकड़े बहुत कुछ कहते हैं। भारत-चीन के व्यापारिक रिश्ते जिस तरह से छलांगे लगा रहे हैं,वे उन तमाम देशों के लिए उदाहरण हो सकते हैं जो सीमा विवाद में उलझने के कारण आगे नहीं बढ़ रहे। दरअसल भारत-चीन की लीडरशिप जन्नत की हकीकत से वाकिफ है। उसे आपसी सहयोग के महत्व और लाभ की जानकारी है। क्या अब भारत-चीन की तरह से भारत-पाकिस्तान संबंध भी मजबूत होंगें? भारत ने पाकिस्तान के साथ व्यापार समझौता करने का प्रस्ताव रखा था और 2016 तक सभी वस्तुओं से शुल्क हटाने का वादा किया था। भारत ने पाकिस्तान को 1996 में ही सर्वाधिक वरीयता प्राप्त देश का दर्जा दे दिया है यह विश्व व्यापार संगठन का नियम है जिसके तहत देशों को व्यापार में समान नियम लगाना जरूरी है। अब पाकिस्तान को तिजारती संबंधों को गति देने के लिए अलग से ठोस पहल करनी होगी।
मोदी उस राज्य से आते हैं जहां के लोग दुनिया भर में अपने कारोबारी मिजाज के लिए जाने जाते हैं। उधर, शरीफ भी मूलतः व्यापारी ही हैं। दोनों नेताओं को मालूम है कि अगर वे पुराने जटिल मसलों को हल करने के रास्ते ही तलाशते रहे तो बात नहीं बढ़ेगी। वक्त आगे बढ़ रहा है। दुनिया आगे बढ़ रही है। आर्थिक सवाल अब ज्यादा खास हो गए हैं। इसलिए, वक्त का ताकाजा है कि उन्हीं सवालों में से संभावनाओं को तलाशा जाए जिससे कि सरहद के आरपार रहने वालों की जिंदगी बेहतर हो सके। पाकिस्तानी नेतृत्व समझ रहा है कि सिर्फ कश्मीर तक संवाद को सीमित रखने से देश के सामने खड़े बड़े सवालों के जवाब नहीं खोजे जा सकेंगे।
निर्विवाद रूप से दोनों देशों में अमन की राह पर चलने वालों की संख्या बढ़ी है। यह अहसास जोर पकड़ रहा कि इस उपमहाद्धीप में खुशहाली के लिये शांतिपूर्ण माहौल बेहद जरूरी है। जब सैकड़ों साल लड़ाई लड़ने के बाद सारा यूरोप एक हो सकता है, यूरोपीय संघ एक करेंसी और एक झंडे का इस्तेमाल करने लगा है, तो यह सवाल उठने लगा है कि भारत और पाक अपनी अदावत क्यों नहीं भूल सकते हैं।
यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि महान समाजवादी चिन्तक डा0 राममनोहर लोहिया और भारतीय जनसंघ के महामंत्री दीनदयाल उपाध्याय ने 1966 में भारत-पाक संघ का प्रस्ताव रखा था जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने मजाक उड़ाकर अस्वीकार कर दिया था। क्या अब दीनदयाल-लोहिया के सपने को पूरा होने का वक्त आ गया है?
पाक में बेरोजगारी व महंगाई ने भी सिर उठाया हुआ है। बिजली की सख्त कमी व लोडशेडिंग से जनता वेतरह परेशान है। अगर आप पाकिस्तान के अखबार पढ़े तो पाएंगे कि वहां पर बिजली की किल्लत दंगों का कारण बन रही है। देश की आर्थिक दशा बिल्कुल चरमरा गई है। इस परिप्रेक्ष्य में माना जा सकता है कि दोनों मुल्क आर्थिक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाएँगे तो मामला कुछ हद तक पटरी पर वापस तो जरूर ही आएगा।
इसमें कोई बहस की गुंजाइश नहीं है कि भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार में बढ़ोतरी से वह ताकतें मजबूत होंगी जो शांति चाहती हैं और उनको नुकसान होगा जो चरमपंथ के रास्ते पर हैं। बेशक, यह भारत-पाकिस्तान के संबंधों की नई इबारत लिखे जाने का वक्त है। दुआ कीजिए कि इस पर किसी काली नजर न पड़े।
मशहूर शायर निदा फाजली का दोनों पड़ोसी मुल्कों के अटूट रिश्तों पर एक शेर बहुत मौजूं हैर,
‘ये काटे से नहीं कटते, ये बाँटे से नहीं बँटते,
नदियों के पानी के सामने आरी क्या कटारी क्या?
( लेखक राज्यसभा सांसद हैं)
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