आमिर और कर्नल संतोष महादिक के फर्क को समझिए – आर.के.सिन्हा

आर.के.सिन्हा (राज्य सभा सांसद )। भारत अगर असहिष्णु है तो इनक्रेडिब्लइँडिया का ऐड क्यों करते रहे होआमिर खान। इसका मतलब है आप सच्चे इंसान नहीं है। हालांकि आप अपने को सच्चा-अच्छा इँसान बनने का नाटक जरूर कर लेते हो। आमिर खान लगता है कि सो रहे थे जब देश में कथित रूप से घटती टोलरेंस की बहस गर्म थी। बिहार विधानसभा के नतीजे आने के बाद जब इस सवाल पर बहस ठंडी पड़ने लगी थी तो उन्होंने भी कह दिया कि भारत में सहिष्णुता घट रही है। वे कहते हैं कि मेरी पत्नी किरण राव मुझ से कहती है कि क्या हमें किसी दूसरे देश में जाकर बस जाना चाहिए अपने बच्चों के लिए। अब ये उनको तय करना चाहिए कि वे भारत में रहना चाहते हैं या नहीं। एक तरफ वे और उनकी पत्नी भारत से बाहर जाने की बातें कर रहे हैं, उधर कश्मीर में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुए कर्नल संतोष महादिक की पत्नी कहती है कि वह अपने दोनों बच्चों को देश सेवा के लिए सेना में भेजेगी। जरा इन दोनों बातों के फर्क को समझिए।

आमिर खान ने देश में घटती टोलरेंस के सवाल पर जो राय रखी उससे देश के करोड़ों लोग आहत हुए हैं। अगर आमिर खान को भी भारत में सहिष्णुता की कमी नजर आ रही है तो फिर कोई क्या कहेगा। आमिर को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसे इसी असहिष्णु देश की जनता ने अपना हीरो बनाया है। अब वह कह रहे हैं कि भारत में टोलरेंस कम होती जा रही है। उनकी टिप्पणी से देश को बहुत कष्ट हुआ है। आमिर ने कहा कि उनकी पत्नी किरण राव ने उन्हें सुझाव दिया कि उन्हें संभवत: देश छोड़ देना चाहिए। क्योंकि देश में बीते 6-8 महीनों से टोलरेंस लगातार घट रही है। आमिर खान की टिप्पणी अपने आप में भय का वातावरण पैदा करने वाली है। आमिर खान देश नहीं छोड़ेंगे।

लेकिन राजनैतिक मकसद से चलाए जा रहे अभियानों से प्रभावित होकर दिया गया उनका बयान उन भारतीयों का अपमान है, जिन्होंने आमिर को बेहद सम्मान दिया। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि आमिर खान का यह प्रोमोशनल स्टंट है उनकी आने वाली फिल्म दंगल के लिए। दरअसल आमिर खान की होम प्रोडक्शन फिल्म दंगल 24 दिसंबर 2016 को रिलीज होगी। वे असहिष्णुता और असहनशीलता के दंगल के दलदल में फंसा कर ध्यान बांट रहे हैं। हालांकि मैं इस बहस में नहीं जाना चाहता।

आमिर से पहले कुछ लेखक, वैज्ञानिक और कलाकार कह रहे हैं कि देश में तेजी से बढ़ती-फैलती जा रही है असहिष्णुता। सोशल मीडिया पर भी इस सारे मसले पर स्यापा मचाया जा रहा है। हैरानी हो रही है कि मीडिया का एक वर्ग सरकारी सम्मान वापस करने वाले लेखकों को खास तवज्जों दे रहा है। लेकिन जो सम्मान वापस करने वालों से हटकर राय रखते हैं, उन्हें हेय दृष्टि से देखा जा रहा है। अगर आमिर खान कहते हैं कि असहिष्णुता बढ़ रही है तो ये बड़ी खबर है। लेकिन कमल हासन सरीखा बेहतरीन कलाकार जब कहता है कि सम्मान वापस करने से कोई लाभ नहीं होगा तो उन्हें मीडिया खास जगह देने के लिए तैयार नहीं है।

अब इस मसले पर बहस हो जानी चाहिए कि भारत कितना टोलरेंट देश है? भारतीय समाज मूलत: और अंतत: टोलरेंट है। क्योंकि इस पर हिन्दू धर्म का प्रभाव है। आमिर खान और अपने सरकारी सम्मान वापस करने वाले तमाम लेखकों को इस बात को याद रखने की जरूरत है कि भारत के खून में टोलरेंस का भाव दौड़ता है।बीते कुछ समय के दौरान मुसलमान और ईसाई कहने लगे हैं कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है। कायदे से देखा जाए तो भारत में करीब 24 करोड़ मुसलमान और ईसाइयों के साथ कतई भेदभाव नहीं होता। सिख,बौद्ध और जैन कभी नहीं कहते है कि उन्हें प्रताडित किया जा रहा है। पारसी और यहुदी तो भारत में सदियों से बेहतर स्थिति में हैं।

बीते कुछ समय के दौरान कई गिरिजाघरों पर हमले हुए। उन्हें सांप्रदायिकता का चश्मा पहनकर देखने की कोशिश हुई। पर जांच के बाद मालूम चला कि वे सब सामान्य आपराधिक मामले थे। तो फिर क्यों भारत की सैकड़ों साल पुरानी सहिष्णुता की परम्परा को निशाना बनाया जा रहा है?

आमिर खान ने भी नोटिस किय़ा होगा कि हमारे बुद्धिजीवियों का एक धड़ा दादरी हिंसा पर तो घडि़यालू आंसू बहाता है लेकिन देश के अन्य राज्यों में हो रहीं साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर वे चुप्पी साध लेते हैं। पश्चिम बंगाल और केरल में आए दिन जिहादियों द्वारा हिन्दुओं पर अत्याचार किए जाते हैं लेकिन इन पर बुद्धिजीवियों कुछ भी बोलना पसंद नहीं करते।क्या आमिर खान कश्मीर घाटी से विस्थापित हो गए पंडितों के दर्द को नहीं जानते। क्या कभी आमिर खान ने उनके दर्द को जानने की कोशिश की? करीब साढ़े तीन लाख कश्मीरी पंडित अपनी आबरू और जान बचाने की खातिर घाटी छोड़ने को मजबूर हुए। उनका वहां पर इस्लामिक चरमपंथी कत्लेआम कर रहे थे। पर तब आमिर खान की जुबान सिल गई थी। उन्होंने उन पंडितों के हक में एक बार भी आवाज बुलंद नहीं की। आमिर खान और जो लेखक आजकल अपने सरकारी सम्मान वापस करने का नाटक कर रहे हैं, देश उनसे जानना चाहता है कि कशमीर घाटी के हिन्दुओं की दुर्दशा और कत्लेआम पर इन्होंने कभी अपने पुरस्कार क्यों नहीं लौटाए। पंडित नेहरु की भांजी नयनतारा सहगल की भी आंखें कश्मीरी पंडितों के दमन पर कभी नम नहीं हुईं। वह तो मूल रूप से कश्मीरी पंडित ही हैं। अफसोस होता है कि देश को अकारण संकट में धकेल दिया गया है।

अब कायदे से सरकार को एक स्कीम लानी चाहिये आमिर खान सरीखे लोगों के लिए जो देश में रहने में दिक़्क़त महसूस कर रहे हैं। इस स्कीम के तहत वे एक निर्धारित समय सीमा में देश से बाहर जा सकते है। अब तो दुनिया भर के आप्शन हैं आमिर खान के लिए। आमिर खान, अब बन्दर घुड़की से काम नहीं चलेगा, अपनी बेगम से पूछ के बताइयेगा कौन से मुल्क़ की वतन परस्ती उन्हें कबूल है।

भारत मेँ लोग हॉलीवुड फिल्म छोड़कर आपका कचरा देख लेते हैं, अब कितना टॉलरेंस चाहिए सर जी। इसलिए सिर्फ उनसे इतना पूछने की गुस्ताखी तो की जा सकती है कि क्या वे बताने का कष्ट करेंगे की कौन सा देश उन्हें भारत से ज्यादा टोलरेंट समझ आ रहा है?

इस भारत ने उन्हें अपना सुपर स्टार माना। उन्हें और उनकी फिल्मों को दिल खोलकर इज्जत दी । अब आप कह रहे हैं कि देश असहिष्णु हो गया है! यहाँ रहने में आपके बीवी, बच्चे को डर लगता है। आप देश छोड़कर जाने की बात कर रहे हो। अब आप ही बताओ! असहिष्णुता कौन फैला रहा है। आप कह रहे हो कि असहिष्णुता बढ़ रही है। लेकिन कमल हासन सरीखा बेहतरीन कलाकार कहता है कि इस तरह की कोई बात नहीं है। मौजूदा हालातों के आलोक में इस बात का भी मूल्यांकन कर लिया जाना चाहिए कि भारत कितना सेक्युलर देश है और सहिष्णुता में कितना यकीन रखता है। दरअसल सदियों पुरानी भारतीय सभ्यता आज भी इसलिए जीवित है क्योंकि सहिष्णुता इस सभ्यता का स्वभाव ही नहीं सांस भी है। हिन्दू संस्कृति की छांव में बौद्ध,जैन,सिख के साथ साथ अरब से आए इस्लाम जैसे धर्म ने भी अपने को खूब पोषित किया। यह अलग बात है कि इस सहिष्णुता की सांस की कीमत भी 1947 में भारत ने चुकायी है। कभी-कभी लगता है कि जब से सरकार ने विदेशी चंदे से पलने वाले एनजीओ को कसना शुरू किया है,तब से कुछ कथित कथित प्रमुद्ध लोगों को देश में असहिष्णुता बढ़ती दिखने लगी है। क्या है सारा माजरा, इसकी जांच होनी चाहिए।