नयनतारा और वाजपेयी ने लौटाया साहित्य अकादेमी

प्रख्यात लेखिका और पंडित जवाहरलाल नेहरू की भानजी नयनतारा सहगल ने देश में असहमति के अधिकार पर बढ़ती असहनशीलता और ‘आतंक के राज’ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘चुप्पी’ के विरोध में मंगलवार को साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटा दिया। इसी मसले पर हिंदी कवि और ललित कला अकादेमी के पूर्व अध्यक्ष अशोक वाजपेयी ने भी सहित्य अकादेमी सम्मान वापस कर दिया है। वाजपेयी ने कहा है कि यही वह समय है जब कट्टरता के खिलाफ लेखकों को एकजुट होकर आवाज उठानी चाहिए। इससे पहले देश में बढ़ती कट्टरता और संकीर्णता के खिलाफ कथाकार उदय प्रकाश साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटा चुके हैं। अपने अंग्रेजी उपन्यास ‘रिच लाइक अस’ (1985) के लिए 1986 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित सहगल ने कहा, ‘आज की सत्ताधारी विचारधारा एक फासीवादी विचारधारा है और यही बात मुझे चिंतित कर रही है। अब तक हमारे यहां कोई फासीवादी सरकार नहीं रही…मुझे जिस चीज पर विश्वास है, मैं वह कर रही हूं।’ एमएम कलबुर्गी और गोविंद पानसरे सहित कई लेखकों और अंधविश्वास के खिलाफ लोगों को जागरूक करने वाले लोगों की हत्या की वारदातों का हवाला देते हुए सहगल ने आरोप लगाया, ‘अंधविश्वास पर सवाल उठाने वाले तर्कशास्त्रियों, हिंदुत्व के नाम से विख्यात हिंदूवाद से खतरनाक तरीके से छेड़छाड़ करने पर सवाल उठाने वाले को – चाहे वह बुद्धिजीवी हो या कला क्षेत्र से हो-हाशिए पर डाला जा रहा है, उन पर अत्याचार किया जा रहा है और उनकी हत्या तक कर दी जा रही है।’ 88 साल की सहगल ने कहा कि हाल ही में दिल्ली के नजदीक बिसहड़ा गांव में मोहम्मद अखलाक नाम के एक शख्स की इस वजह से पीट-पीट कर हत्या कर दी गई कि उस पर ‘संदेह था’ कि उसके घर में गोमांस पकाया गया है। सहगल ने कहा, ‘इन सभी मामलों में न्याय अपना पांव खींच ले रहा है। प्रधानमंत्री आतंक के इस राज पर चुप हैं। हमें यह मान लेना चाहिए कि वह बुरे काम करने वाले ऐसे लोगों को आंखें नहीं दिखा सकते जो उनकी विचारधारा का समर्थन करते हैं। यह दुख की बात है कि साहित्य अकादेमी भी चुप्पी साधे हुए है….।’ अपनी ममेरी बहन और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में आपातकाल लागू किए जाने का कड़ा विरोध करने वाली सहगल ने कहा, ‘जिन लोगों की हत्या की गई है उन भारतीयों की याद में, असहमति के अधिकार को बनाए रखने वाले सभी भारतीयों के समर्थन में और असहमति रखने वाले उन लोगों के समर्थन में जो खौफ और अनिश्चितता में जी रहे हैं, मैं अपना साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटा रही हूं।’ सहगल ने बताया, ‘मोदी ऐसे नेता हैं जो जानते हैं कि कैसे बोलना है। उन्होंने लंबे-लंबे भाषण दिए हैं। ट्विटर और सोशल मीडिया पर वह बहुत ही मुखर हैं। देश में जो कुछ भी हो रहा है, उन्हें इस सबके लिए जिम्मेदार होना चाहिए।’ ‘विचारों, अभिव्यक्ति, आस्था, विश्वास एवं पूजा की स्वतंत्रता’ के संवैधानिक वादों के बारे में लोगों को याद दिलाने वाले उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के हालिया भाषणों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘उन्हें ऐसा करना जरूरी लगा क्योंकि विविधता और वाद-विवाद की भारत की संस्कृति पर तीखे हमले हो रहे हैं।’ सहगल ने कहा, ‘भारत पीछे जा रहा है। यह सांस्कृतिक विविधता और वाद-विवाद के हमारे महान विचार को खारिज कर रही है और इसे हिंदुत्व नाम की एक खोज तक संकीर्ण कर रहा है ।’ ‘दि अनमेकिंग ऑफ इंडिया’’ नाम के अपने खुले पत्र में सहगल ने लिखा कि यह ‘दुख की बात’ है कि साहित्य अकादेमी इन मुद्दे पर चुप है। उन्होंने लिखा, ‘कलबुर्गी की हत्या के विरोध में हिंदी लेखक उदय प्रकाश ने साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटा दिया है। छह कन्नड़ लेखकों ने कन्नड़ साहित्य परिषद को अपने पुरस्कार लौटा दिए हैं।’ असहमति के अधिकार को संवैधानिक गारंटी का अभिन्न हिस्सा करार देते हुए सहगल ने लिखा, ‘कई लोगों को हाशिए पर डाल दिया गया है और कई भारतीय इस डर में जी रहे हैं कि पता नहीं उनके साथ क्या हो जाए…देश में हालात बिगड़ते ही जा रहे हैं और प्रधानमंत्री को बयान देना चाहिए।’ यह पूछे जाने पर कि क्या वह चाहती हैं कि अन्य लेखक भी यह कदम उठाएं, इस पर सहगल ने कहा, ‘मैं नहीं जानती कि अन्य लोग क्या करने जा रहे हैं। मैं वह कर रही हूं जिसमें विश्वास रखती हूं।’