12 साल तक देशद्रोही होने का दंश झेलने वाला मकसूद अब आरोपों से रिहा होने के बाद अपनी जिंदगी के वो सुनहरे पल लौटाने की मांग कर रहा है, जो उसने जेल की सलाखों के पीछे पुलिस की चूक के चलते ही गुजार डाले।
पोटा कोर्ट से सभी आरोपों से रिहा होने के बाद मकसूद ने सीएम से लेकर राष्ट्रपति से उन पलों का हिसाब किताब मांग रहा है। उसने सरकार से 50 लाख का मुआवजा तो मांगा ही है, साथ ही सरकारी नौकरी भी मांगी है। मांगों के पूरा न होने पर आत्मदाह की चेतावनी दे डाली है।
2002 में एसटीएफ और स्थानीय पुलिस ने कुछ युवकों को पकड़ा था। पुलिस ने उन पर देशद्रोह समेत तमाम धाराओं में मुकदमा दर्ज करते हुए जेल भेज दिया था। पुलिस का कहना था कि इन युवकों के संबंध पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से है।पुलिस ने काल डिटेल और अन्य सुबूत एकत्र कर उन पर देशद्रोही होने का आरोप लगाया था। आरोप में मकसूद समेत चार लोग पकड़े गए थे। 12 साल तक वह जेल की सलाखों के पीछे रहे। 18 जनवरी 2014 को मुरादाबाद की पोटा कोर्ट ने मकसूद, जावेद और ताज मोहम्मद को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
आरोपों से बरी होने के एक साल बाद मोहल्ला नालापार के टंकी खेतों वाली मस्जिद निवासी मोहम्मद मकसूद ने इंसाफ की लड़ाई शुरू कर दी है। मकसूद ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के साथ ही मुख्यमंत्री और उच्चाधिकारियों के साथ ही तमाम मंत्रियों को पत्र भेजकर गुहार लगाई है। कहा कि पुलिस की मनमानी के चलते उसके जिदंगी के 12 साल जेल में ही बीत गए।
हिंदू कालेज मुरादाबाद से बीएससी के छात्र रह चुके मकसूद का कहना है कि 12 साल के दौरान उसकी पढ़ाई ही चौपट नहीं हुई, बल्कि उसकी जिंदीं ही बर्बाद हो गई।उसने अपनी कहानी सभी विधायकों व सांसदों तक भेजने की कोशिश की है। उसकी मांग है कि उसके 12 साल तो वापस नहीं लौट सकते, लेकिन उसे यदि सरकारी नौकरी मिल जाए या 50 लाख का मुआवजा दिलाया जाए तो बेहतर होगा।
12 साल की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते मकसूद की मां की आंखों की रोशनी तक जा चुकी है। मकसूद का कहना है कि वह पूरी तरह टूट चुकी है। न जाने कब उसकी जिदंगी का चिराग बुझ जाए। उसने कहा कि उसे देश प्रेमी होने का सर्टिफिकेट दिया जाए क्योंकि उस पर देशद्रोह का आरोप लगा है।