सियासी जंग की जड़ बने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मंजूरी दे दी है। राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही अध्यादेश दोबारा जारी कर दिया गया है।
भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में बदलाव को अपनी नाक का सवाल बना चुकी मोदी सरकार ने दोबारा अध्यादेश लाकर संशोधन का विरोध कर रहे विपक्षी दलों को इसे रोकने की खुली चुनौती दे दी है।
राज्यसभा में एनडीए सरकार का बहुमत नहीं होने के बावजूद दोबारा अध्यादेश जारी करने के फैसले से साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब राज्यसभा में विपक्ष से आर-पार की जंग लड़ने को पूरी तरह तैयार हैं। पुन: लाए गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश में लोकसभा से पारित सभी नौ संशोधनों को भी शामिल किया गया है।भूमि अधिग्रहण अध्यादेश संशोधन बिल लोकसभा से पारित होने के बाद संसद के बजट सत्र के पहले चरण में सरकार ने विपक्ष के एकजुट विरोध को देखते हुए राज्यसभा में इसे पेश नहीं किया।
कानून में बदलाव के लिए पहले जारी अध्यादेश की समयसीमा 5 अप्रैल को खत्म हो रही थी इसीलिए सरकार ने दोबारा अध्यादेश जारी करने से पहले राज्यसभा के सत्र का सत्रावसान कर दिया, ताकि यह अध्यादेश लाने की राह खुल सके।
वैसे राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की अध्यादेश को लेकर पूर्व में जाहिर की गई चिंता भी सरकार के जेहन में थी। इसके बावजूद कैबिनेट ने बुधवार को दोबारा अध्यादेश जारी करने के प्रस्ताव को मुहर लगाकर राष्ट्रपति के पास भेज दिया।
राष्ट्रपति ने इस बार बिना किसी स्पष्टीकरण के अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए। पिछली बार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का प्रस्ताव जब सरकार ने भेजा था तो प्रणब मुखर्जी ने अरुण जेटली और नितिन गडकरी समेत सरकार के तीन मंत्रियों को बुलाकर इसे लाने की जल्दबाजी पर चर्चा की थी। इतना ही नहीं दो मौकों पर राष्ट्रपति ने अध्यादेश जारी करने की प्रवृत्ति को लेकर चिंता जाहिर की थी।अध्यादेश पर राष्ट्रपति की मंजूरी भले ही सरकार के लिए राहत की बात हो, मगर भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल को राज्यसभा में पारित कराने की उसकी चुनौती और बढ़ गई है। संसद से सड़क तक पहले से ही मुखर विपक्ष इस मुद्दे पर राज्यसभा में सरकार को मात देने की हर कोशिश करेगा।
खान एवं खनन तथा कोयला अध्यादेश बिल पर राज्यसभा में विपक्ष के एकजुट कुनबे को तोड़ने में कामयाब रही सरकार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर भी कुछ ऐसी ही उम्मीद लगा रही है, लेकिन सरकार की मुसीबत यह है कि तृणमूल कांग्रेस और बीजद भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव के सख्त खिलाफ हैं।
समाजवादी पार्टी, बसपा, जनता दल परिवार और वामपंथी पार्टियां भी विरोध कर रही हैं। कांग्रेस ने तो बाकायदा 19 अप्रैल को दिल्ली में अध्यादेश के खिलाफ किसान रैली करने का ऐलान कर रखा है।
विपक्षी दलों का कहना है कि भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव किसानों के हित से खिलवाड़ और उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया है। तो प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष के आरोपों को सिरे से नकाराते हुए विकास योजनाओं के लिए कानून में संशोधन को जरूरी ठहरा रहे हैं।
पीएम लगातार अपनी बातों के समर्थन में कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के उन पत्रों का उल्लेख कर रहे हैं, जिसमें 2013 के भूमि कानून में बदलाव की वकालत की गई थी।