Yogendra Yadav जिन सिद्धांतों पर अड़े हैं, उसपर न अड़ें, तो वह राजनीति में हों ही क्यों .. एक पार्टी बने, वह पार्टी सत्ता में आ जाए, वह पार्टी बहुत अच्छा शासन भी दे दे, योगेंद्र यादव का विजन यहीं पर जाकर खत्म नहीं हो सकता ..
… कुछ लोग उस मिट्टी के बने होते हैं जिनकी जिंदगी का सारा डायनामिक्स उनके नैतिक विश्वास से चालित होता है .. बौद्धिकता के तेज के पीछे वह मानवीय करूणा होती है .. दुनियावी मानदंडों पर यह आदमी पिछड़ जाएगा, इसे अपना बोया काटने को नहीं मिलेगा, पर यह अपने उसूल पर बना रहेगा ..
.. योगेंद्र उस वि़जन के निर्माताओं में केंद्रीय हैं जिसे केजरीवाल ने बेचा .. योगेंद्र और उन जैसे सैकड़ों विद्वानों और सिविल राईट व नव आंदोलनों के नेताओं अध्येताओं ने केजरीवाल की उर्जा देखकर उनपर बाजी लगाई .. जनता ने ख्ाूब खूब खरीदा क्योंकि जनता को अभी परिवर्तन की तगड़ी भूख है .. केजरीवाल को अब राजनीति की व्यावहारिकताएं दिख रही हैं, उनके करीब के लोगों को नई- पुरानी लॉबियों से मिलने वाले संभावित लाभ और सत्ताएं दिख रही हैं .. पर योगेंद्र को यह दिख रहा है कि इस ‘नई’ राजनीति को जमीनी अधिकार- आंदोलनों और संगठनों से अपनी सापेक्षताएं बनाए रखनी चाहिए और पार्टी की वह लोकतांत्रिकता बनाए रखनी चाहिए जिससे पार्टी और गवर्नेंस नए- नए लोगों और नए उभरे हित- समूहों को इस नई राजनति में ऊपर खींचने का माध्यम बनी रहे .. यही परिवर्तन की राजनीति है ..
.. सिविल संगठनों से निरपेक्ष होकर पार्टियां व्यक्ति- केंद्रित हो जाती है, और व्यक्ति- केंद्रित होकर सिविल संगठनों से निरपेक्ष हो जाती है .. मध्यमार्ग की सभी पार्टियां ऐसी ही हैं .. दक्षिणपंथी कही जाने वाली भाजपा के तार आरएसएस जैसे सिविल संगठन से तो कम्यूनिस्ट पार्टियों के तार मजदूर और किसान संगठनों से जुड़ते हैं इसलिए ये पार्टियां करिश्माई नेतृत्व पैदा करने वाली होते हुए भी व्यक्ति पूजक नहीं हैं .. मध्यमार्गी पार्टियां व्यक्ति- पूजक, और कालांतर में परिवारवादी, वंशवादी, जातिवादी और क्रोनी कैपिटलिजम से आर्थिक- सुरक्षा प्राप्त करने वाली होकर रह जा रही हैं ..
.. योगेंद्र यादव उस राजनीति के प्रतीक हैं जो मध्यमार्गी राजनीति को नव सृजित और विकेंद्रित हजारों सिविल संगठनों से जोड़कर नई उर्जा की राजनीति बनाना चाहता है .. इस राजनीति की जमीन तैयार है, फसल पकी है .. इसके लिए आम आदमी पार्टी को आंतरिक लोकतंत्र से पूर्ण प्रतिबद्धता दिखानी होगी जिससे कोई समझौता नहीं हो सकता .. इसी बिंदु पर योगेंद्र यादव की जिद को समझा जा सकता है ..
.. केजरीवाल की सफलता सिर्फ केजरीवाल की सफलता नहीं है .. यह उस विजन और जनता में परिवर्तन की गहरी इच्छा की सफलता थी .. कुछ लोग उस सफलता को ले उड़ें, पर योगेंद्र अपने विश्वास अपनी जिद पर बने रहेंगे ..
राकेश श्रीवास्तव