
लंबे इंतजार के बाद आखिरकार सरकार ने डीजल मूल्यों के बाजार के हवाले कर दिया। मोदी सरकार के इस फैसले से डीजल शुक्रवार आधी रात से 3.37 रुपये प्रति लीटर सस्ता हो गया।
चूंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें घट गई हैं इसलिए नियंत्रण घटने से घरेलू बाजार में भी डीजल के दाम घट गए। शुक्रवार को कैबिनेट ने डीजल कीमतों से सरकार का नियंत्रण खत्म करने का फैसला किया।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकार के इस कदम की जानकारी दी। पिछले पांच साल में यह पहली बार है, जब डीजल की कीमत में कटौती की गई है। इससे पहले इसकी कीमत में आखिरी कटौती 29 जनवरी, 2009 को हुई थी।
उस वक्त दो रुपये प्रति लीटर की कटौती से डीजल की कीमत घट कर 30.86 रुपये हो गई थी। डीजल की कीमत में आखिरी बढ़ोतरी इस साल एक सितंबर को 50 पैसे की हुई थी।
दरअसल चालू खाते के बढ़ते घाटे और अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार की वजह से पिछली यूपीए सरकार ने हर महीने डीजल की कीमत 50 पैसे प्रति लीटर बढ़ाने का फैसला किया था। मोदी सरकार ने यह सिलसिला जारी रखा।
जनवरी, 2013 से सितंबर, 2014 तक डीजल की कीमत 19 बार बढ़ाई जा चुकी थीं। इस बीच, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कम हो गई और मोदी सरकार को डीजल के दाम बाजार से जोड़ने का मौका मिल गया।
दरअसल डीजल सब्सिडी का मुद्दा राजनीतिक तौर पर संवेदनशील रहा है इसलिए सरकारें इसे खत्म करने का साहस नहीं करती। अब जबकि मोदी सरकार ने डीजल कीमतों को बाजार से जोड़ दिया है तो भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल सस्ता होने की वजह से यह उपभोक्ताओं पर बोझ नहीं बनेगी।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल सस्ता होने की वजह से तेल मार्केटिंग कंपनियों का घाटा कम हो गया है और ये मुनाफा कमाने लगी हैं। इस समय तेल बेचने वाली कंपनियों को एक लीटर डीजल पर 3.56 रुपये का फायदा हो रहा है।