बैरागी की नेकदृष्टि : ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर किसानो का धरना और सेंटा क्लॉज के उपहारों की कथा

राजेश बैरागी । हालांकि यह मनमोहिनी कथा यूरोप के किसी देश की है परंतु भारत की राजनीति ने इसे बखूबी अपनाया है। समाजवादी पार्टी के सोलह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के आने से ठीक पहली संध्या को स्थानीय विधायक तेजपाल नागर ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर 52 दिनों से धरने पर बैठे किसानों को न्याय दिलाने का प्रयास किया। यह पहला अवसर था जबकि सत्ता पक्ष के किसी जनप्रतिनिधि ने किसानों को उनकी मांगे पूरी करने में सक्षम और वास्तविक जिम्मेदार प्राधिकरण की मुख्य कार्यपालक अधिकारी से वार्ता कराई। वार्ता आधी रात तक चली। कुछ मांगों पर सहमति बनी, कुछ मांगों को शासन स्तर पर सुलझाने का आश्वासन दिया गया।

मैं बताना भूल न जाऊं, इससे एक दिन पहले प्राधिकरण की ओर से सात ज्ञात और साठ अज्ञात किसानों के विरुद्ध एक और एफआईआर दर्ज कराई जा चुकी थी। उन्हीं सात किसानों के साथ यह समझौता वार्ता चल रही थी। लोकतंत्र की यही सुंदरता है कि अभियुक्तों के साथ भी संवाद जारी रहता है।

रामचरितमानस में लिखा है,
‘सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ।। ‘

आखिरकार वार्ता असफल साबित हुई और विधायक को धरना समाप्त कराने का श्रेय नहीं मिल सका। धरना नहीं उठा तो धरना आज 53 वें दिन भी जारी रहा।

कल कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल आया था, आज समाजवादी पार्टी का आया।हो न हो कल प्रियंका-राहुल आ जाएं और अगले किसी दिन अखिलेश यादव।कंबल जितना भीगता है उतना भारी होता जाता है। क्या किसानों की मांगें अनुचित हैं? क्या उन मांगों को पूरा करने में प्राधिकरण असमर्थ है? और क्या उन मांगों को पूरा करने के लिए शासन के साथ वार्ता की नौटंकी कराने की आवश्यकता है?

यूरोप से आए सेंटा क्लॉज की कहानी अभी बाकी है।वह आधी रात को आता है। उसकी झोली उपहारों से भरी होती है।उन उपहारों को पाकर बच्चे प्रसन्न हो जाते हैं।उन उपहारों से किसानों,क्षमा करें, किसी का जीवनयापन नहीं होता।