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स्वच्छता पर किसी JNU मार्का प्रगतिशील बुद्धिजीवी की लघु एवं दीर्घशंकाएं– डी के वाजपेयी

“मुझे तो यह साफ़-सफाई परियोजना एक पूँजीवादी साम्राज्यवादी साजिश लगती है… यह सब पूंजीपतियों के पूंजीवादी दबाव में किया जा रहा है… अब यूंकि इसी बहाने लाखों झाड़ू-पंजे-डण्डे बिकेंगे, रंग-रोगन का सामान, पेंट, ब्रश, डस्टर वगैरह बिकेंगे… अब इससे पूंजीपति और उद्योगपति अरबों का भारी मुनाफ़ा कमाएंगे… और अग़र देश के लोगों को एक बार साफ़-सफाई की आदत पड़ गई तो भविष्य में झाड़ू-पंजा-डस्टर वग़ैरह की जमाख़ोरी और कालाबाज़ारी करके आगे भी व्यापारी और उद्योगपति भारी मुनाफ़ा कमाते ही रहेंगे…

 

125 करोड़ लोगों की साफ़-सफाई की आदत पड़ने पर साबुन-सोडा-शैम्पू-तौलिया की बिक्री बढ़ने से ये पूंजीवादी अरबों रुपये कमाएंगे… सफाई-सेवाओं, सफाई-सामग्री और सफाई-उपकरणों के क्षेत्र में सरकार 100% FDI ले आएगी और देश का झाड़ू-पंजा-डस्टर-साबुन-सोडा उद्योग बंद हो जाएगा… हम विदेशी कंपनियों के एक साफ़-सुथरे गुलाम हो जाएंगे… राष्ट्रव्यापी सफाई अभियान की आड़ में लाखों-करोड़ के घोटाले भी होंगे…

 

सफाई के बहाने सरकार की साज़िश का अगला लक्ष्य पान, पान-मसाला, खैनी इत्यादि सामाजिक एकीकरण बढ़ाने वाले पदार्थों के प्रतिबन्ध का होगा… कार्यालयों में पान की कलात्मक पीकेँ अफ़सरशाही और प्रबन्धतंत्र के खिलाफ शोषित वर्गकी चुनौती को प्रदर्शित करती हैं… साफ़-सुथरा कार्यालय प्रबंधतंत्र की तानाशाही तथा एकाधिकार का द्योतक होता है…  किसी अनपढ़ अकुशल बेरोज़गार के लिए भी पान की दुकान न्यूनतम पूंजी लगाकर जीविकोपार्जन का उत्तम साधन है… पान की दुकान सामाजिक समरसता और सर्वहारा का सभा-स्थल होता है…  पान एवं पान मसाला बंद होने से लाखों सर्वहारा किसानों, मज़दूरों, दुकानदारों के लिए आजीविका का संकट होगा…

 

और फिर जब लोग साफ़ सुथरे रहेंगे तो हो सकता है कि स्वच्छ तन-मन से मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे जाने वालों की संख्या बढ़ जाए… अत्यधिक साफ़-सफाई-स्वच्छता मनुवादियों और ब्राह्मणवादियों की गम्भीर साजिश भी हो सकती है… इससे देश में साम्प्रदायिकता बढ़ने और साम्प्रदायिक ताकतों के मज़बूत होने का खतरा है… दलित और मलिन बस्तियां साफ़ रहने से वहाँ के नागरिक पूंजीवाद की ओर आकर्षित होकर हमारे वोट-बैंक से सटक जाएंगे… अधिक साफ़-सफाई रखने से ना केवल उपभोक्तावाद बढ़ेगा बल्कि ग़रीब जनता पूंजीवादियों के चंगुल में फंसेगी…

 

गन्दगी फ़ैली रहने से कूड़ा-करकट तो समानता के सिद्धांत के तहत चतुर्दिक व्याप्त रहता है… साफ़-सफाई रखने से कूड़े का क्षेत्रीय ध्रुवीकरण बढ़ेगा, जो क्षेत्र विशेष के लिए घातक होगा… कूड़ा और गन्दगी के फलस्वरूप उत्पन्न और प्रसारित बीमारियों से चिकित्सा-स्वास्थ्य सेवाओं, औषधियों के शोध, निर्माण और बिक्री में लाखों बेरोज़गारों को रोज़गार मिलता है…  साफ़-सफाई होने पर तमाम आवारा पशुओं को आहार ना मिलने से पशुप्रेमियों के समक्ष उनके अस्तित्व का गंभीर संकट होगा… आइये इस सफाई अभियान का पूरी सफाई से पर्दाफ़ाश करें और इस सफ़ाई अभियान की ही सफ़ाई कर दें… दुनिया के मलिच्छों एक हो, पूंजीवाद के खिलाफ एक हो… ख़बरदार…! होशियार…! सफाई बुर्जुवावाद का सौम्य स्वरुप है…”  #

डी के वाजपेयी 

NCR Khabar Internet Desk

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