दोस्तों , भाइयों , बहनों , माताओं व मेरे साथियों , महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के बारे मैं हम सब रोज़ अलग -अलग माध्यमों से सुनते ,देखते व पड़ते रहते हैं ! परंतु हास्यपाद बात की हम सब इस विषय पर चर्चा भी करते हैं पर समाधान या इस समस्या की जड़ अथवा मूल कारण क्या है कभी पता लगाने की कोशिश नहीं करते ! मेंने विगत 2 महीनो में अनेकों अनेक महिलाओं से इस पर बात की तो एक या शायद पहला कारण मुझे मिला जो आप सब को बता रहा हूँ :- जैसा की मैंने पहले भी अपने कई लेखो में कहा की , समस्या घर – परिवार से शुरू हो कर समाज तक जाती ही और उन संस्कारो का असर आने वाली पीड़ी पर पड़ता है ! आम तौर पर देखने में आता है कि , महिलायें घरों से ही हिंसा का शिकार होती हैं और महिला ही महिला का शोषण या उसके अधिकारों का हनन करती है ! याद रहे जब एक महिला घर पर दूसरी महिला का शोषण करती है और पुरुषों के सामने ऐसा होता है तब उन पुरुषों को भी महिलाओं का शोषण करने का बल मिलता है ! उदाहरण के लिए :- विवाहित स्त्री जब ससुराल आती है , तो उसको बहन के बदले ननद , भाई के बदले देवर , माँ – बाप की जगह सास -ससुर मिलते है और जीवन साथी के रूप में पति ! परंतु उसकी ( विवाहित स्त्री ) की उम्मीदों पर तब पानी फिर जाता है , जब माँ रूपी सास बहू को पहेनने -ओड़ने , घूमने -फिरने , खाने -पीने , आने – जाने , मिलने – जुलने व काम करने की पूर्ण आज़ादी नहीं देती !
इसके विपरीत अपनी बेटी यानि के बहू की ननंद को इन्ही बातों के लिए पूर्ण रूप से आज़ादी दे जाती है ! मसलन , ननंद जींस पहन के हर जगह जा सकती है अकेले या दोस्तो के साथ पर , अगर बहू अपने पति के साथ भी जींस पहन के गयी तो समझो बहू के साथ – साथ जींस बनाने वाली कंपनी की भी शामत आ गयी है उस दिन ! बेटी ( चाहे विवाहित हो या अविवाहित ) उसके दोस्त घर आ सकते हैं लेकिन बहू का कोई जानने वाला बाज़ार में भी मिला तो शक की निगाहों से ताने मार-मार के बहू का अन्तर्मन घायल कर देती हैं ! बेटी ( चाहे विवाहित हो या अविवाहित ) यदि कामकाजी है तो वह केवल दफ्तर का ही काम करेगी , लेकिन अगर बहू भी कामकाजी है तो वह , घर और दफ्तर दोनों का काम करेगी ! बेटी ( विवाहित है ) तो उसके ससुराल वाले साल में 20 बार भी आयें तो खातिर – तवाज़ों पूरी शान- ओ- शोकत से बहू को करनी होगी , लेकिन अगर बहू के मायके से कोई आया और उसने उनकी आओ भगत की तो आवाज़ आएगी ” देखो कैसे भाग – भाग के काम कर रही है , ऐसे तो इसके हाथ – पाओं टूट जाते हैं !” इसी तरह माँ रूपी सास , बहन रूपी ननंद अपनी बहू या भाभी को अपने ही भाई के सामने या उसके पीछे से ताने मारने या फिर नीचा दिखाने से नहीं चुकती और भाई साहब भी शेर हो जाते हैं , औरतों पर लगाम लगाने की बात करते हैं ! और अगर भाई साहब ऐसा नहीं करते तो जोरू का गुलाम कहे जाते हैं ! इस बात का बड़ा ही दिलचस्प किस्सा मैं अपना व्यक्तिगत सुनता हूँ ! एक बार कुछ दिन पहले किसी विषय पर एक ही वाक्य या लाइन या यूं कहिए की उस बात को मेरी पत्नी , मेरी बहन व मेरी भांजी ने एक ही तरीके के कहा परंतु अलग -अलग समय पर ! इस बात पर जब मेरी चर्चा मेरी पूजनिए माता जी से हुई , तो मेरी पत्नी के लिए उनका माप दंड अलग तथा मेरी बहन व भांजी के लिए अलग था ! मैं इतना हैरान था की मेरे अपने घर मैं भी दोहरी मानसिकता या मापदंड को अपनाया जाता है ! उस दिन मुझे समझ आया के सब को अपने घरों से ही नारी को सम्मान देने की शुरुवात करनी होगी ! और मेंने ऐसा किया भी मेंने अपनी पूजनिए माता जी को शांत मन से विचार करने को कहा और फिर से राय कायम करने के लिए उचित उदाहरण दे कर समझाया तब उनको अपनी बात का पछतावा हुआ ! हालांकि इस बात का किसी को पता नहीं था क्योंकि यह चर्चा मेरी माता जी एवं मेरे बीच मेँ हुई थी ! पर देश की सभी माँ रूपी सासों को और बहन रूपी ननंदों को बात समझने के लिए मैंने एक सच्चा उदाहरण दिया है ! मेरी आप सब से हाथ जोड़ के विनती है की एक दूसरे के सम्मान से ही नारी , नारी शक्ति और उसके अधिकारों की रक्षा कर सकती वरना आपकी आपसी लड़ाई या मनमुटाव से पुरुषों को शोषण करने का बल मिलता रहेगा जैसा के आज तक भारतवर्ष मेँ होता आया है !
यह वक्तव्य मेरा निजी वक्तव्य है इसका समाज के किसी वर्ग , जाती , धर्म , संप्रदाय या वयक्ति विशेष से नहीं है ! सभी महिलाए ऐसा करती हैं मैं ये भी नहीं कहता किसी भी महिला ( सास ) , बहन ( ननंद ) के प्रति मेरे हृदय मेँ किसी तरह का कोई बुरा विचार नहीं ही और मैं इन सब का पूरा सम्मान करता हूँ ! लेकिन बहुत सारे घरों मैं ये समस्या देखने मेँ सामने आई है तो उसको खतम करने का और प्यार विश्वास तथा सोहार्द भरा वातावरण देश के प्रतेक घर मेँ बनाने का मेरा ये छोटा सा प्रयास है !
आपका अपना
रवीन्द्र सिंह डोगरा