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सत्यम शिवम् सुन्दरम : एक दांव में गिरे हैं कुछ लोग लड़खड़ा के, सोशल मीडिया पर बीएन सिंह का खुला विरोध करवा कर डा महेश शर्मा फंसे चक्रव्यूह में!

गौतम बुध नगर के तथाकथित लोकप्रिय सांसद डा महेश शर्मा आजकल फिर से चर्चा में है । वैसे तो वो पिछले दो दशकों से जिले की राजनीति में चर्चा में किसी ना किसी कारण से बने रहे हैं। इस बार वजह थोड़ी अलग है । इस बार वो एक पत्रकार के कपोल कल्पित समाचार पर अपने आईटी सेल के साथ साथ कुछ साथी समाचार पत्रों से भी हमला करवाकर चर्चा में है । पत्रकारों में चर्चा है कि अब कैलाश पर्वत से प्रायोजित समाचार लिखवाये जा रहे है, विडियो बनाये जा रहे है । उनके समर्थक उस पत्रकार के साथ साथ लगातार चुनावी मीटिंग कर रहे एक प्रशासनिक अधिकारी बी एन सिंह, अपनी ही पार्टी के एक क्षेत्रीय विधायक और सांसद तक पर बलो द बेल्ट हमलावर हो गए । कारण और परिणाम हम आगे समझेंगे ।

पहली बार नॉएडा में जनता ने एक ही दल के दो नेताओं के बीच इस स्तर का आरोप प्रत्यारोप देखा है । नेताओ की इस लड़ाई में दोनों के समर्थक और समर्थक समाचार समूह एचएमवी (HMV) की तरह अपने अपने नेता के लिए दुसरे को भला बुरा कह रहे है । नेताओ के लिए दो समाचार समूह के टकराव पर मुझे गोविंदा रानी मुखर्जी अभिनीत “हद कर दी आपने” फिल्म के वकील बाप,बेटे जानी लीवर की याद आ गई है । किसी का घर या पार्टी टूटे अपना घर (विज्ञापन) चलना चाहिए ।

  • इससे पहले 2022 वो नोएडा में ही श्रीक्रांत त्यागी प्रकरण पर अपने हाथ जलाते देखे गए थे । तब सोसाइटी की आंतरिक राजनीति में उलझ कर केंद्र सरकार में गृहमंत्री अमित शाह से नजदीकी बताने के फेर में इतना तक बोल दिए थे कि उन्हें अपनी ही पार्टी की प्रदेश में योगी सरकार पर शर्म आती है । इसी प्रकरण में तत्कालीन कमिशनर से उनकी कटुतासार्वजानिक तोर पर देखी गयी l साल भर बाद कमिश्नर आलोक सिंह के स्थान्तरण पर उनके समर्थको ने जिस तरह जश्न मनाया था उससे भी उनके उपर कई प्रश्न उठे थे ।
  • 2020 में कोरोना काल में उनका अस्पताल पहले डीएम द्वारा छापे के दौरान पाए कुछ आरक्षित बेड प्रकरण में, फिर आक्सीजन समाप्त होने के सबसे पहले शोर मचाने की चर्चा में आया था । स्वयं डा महेश शर्मा को तब नोएडा में मुख्य्मंत्री के साथ हुई बैठक में अस्पतालों पर आक्सीजन और बेड की जांच पर मुख्यमंत्री की नाराजगी में झेलनी पड़ी थी । तब मुख्यमंत्री ने उनसे कहा था कि हमको पता है अस्पताल क्या कर रहे है ।
  • 2019 में भी टिकट कटने की चर्चा के दौरान वह कई सभाओं में अपशब्द तक बोल गए थे। एक सभा में उन्होंने सैलरी ना देने वाले एच आर (मानव संसाधन अधिकारी )को पीटने तक की बात कह दी थी । लोग कहते हैं जब-जब महेश शर्मा को टिकट कटने का डर लगता है वे ऐसे ही विवाद खड़े करते हैं।

किंतु उससे पहले पूरा गौतम बुध नगर बोलता था कि दो ही चीजें यहां भाजपा हैं, एक कैलाश हॉस्पिटल और दूसरे डाक्टर साहब यानी डा महेश शर्मा । यह बात पहले दूसरे बोलते थे। फिर डा महेश शर्मा को भी इस पर यकीन हो गया । समस्या की जड़ें इसी यकीन में हैं।

इतिहास गवाह है कि शीर्ष पर आज तक कोई स्थाई नहीं रहा है । वक्त बदलता है तो चेहरे बदल जाते है । कभी भाजपा में सब कुछ रहे आडवाणी कब मार्गदर्शक मंडल में आ गए थे स्वयं वो नही समझ पाए थे । ऐसे में डा महेश शर्मा कैसे अपवाद हो सकते है । स्वयं डॉ महेश शर्मा पर अपना समय आने पर उनसे पूर्ववर्ती भाजपा विधायक नवाब सिंह नागर को आगे ना बढ़ने देने के तमाम किस्से प्रचलित है ।

गौतम बुध नगर में भाजपा की राजनीति अशोक प्रधान से आरंभ होती है । इसके बाद नबाब सिंह नागर ने यहां अपना दावा ठोका और फिर नोएडा विधान सभा बनने पर यहां के भाजपा समर्थित व्यापारियों ने स्थानीय दबंगई को रोकने के लिए डॉक्टर महेश शर्मा को आगे कर जितवा दिया और ऐसी रेखा खींच दी कि शहर में डॉ महेश शर्मा ही भाजपा का पर्याय बन गए । मात्र 2 वर्ष बाद ही 2014 के लोकसभा चुनाव में विधायक से सांसद में पदोन्नत भी हो गए । उत्तर प्रदेश के शो विंडो से सांसद होने का प्रभाव, व्यापारियों की मदद, अरुण जेटली के साथ मधुर संबंध और संघ के आशीर्वाद ने उन्हें केंद्रीय मंत्री तक बना दिया । अब गौतम बुध नगर में भाजपा मतलब डा महेश शर्मा ही हो गए और उनका कैलाश पर्वत यानी हॉस्पिटल भाजपा कार्यालय हो गया । जिले के अध्यक्ष से लेकर बूथ अध्यक्ष और पांचों विधायकों के टिकट भी डॉक्टर महेश शर्मा ही तय करने लगे । आज भी डा महेश शर्मा नॉएडा , ग्रेटर नॉएडा और जेवर के अपने तीनो अस्पतालों में ही भाजपा कार्यकर्ताओं और आम लोगो से मिलते है।

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शीर्ष पर पहुंचने के बाद उसको वहीं पर बनाए रखना आसान नहीं होता । सफलता के जिस पहाड़ पर आप चढ़ते हैं उसके दूसरी साइड ढलान होता है। पहाड़ के शीर्ष पर पहुंच कर आपको लगने लगता है पूरी दुनिया आपके नीचे है । एक मिथ्या अभिमान भी होने लगता है कि अपुन इच ही भगवान है । सफलता के शीर्ष पर अक्सर लोग अपने रिटायरमेंट को अच्छे तरीके से प्लान करते हैं किंतु कुछ लोग वहीं जमे रहने की जिद में अनियंत्रित होकर ढलान से लुढ़कने लगते है । सचिन और धोनी सही समय पर सम्मान के साथ संन्यास लेते हैं किन्तु कपिल देव अपमान के साथ खेल से हटाये जाते है । राजनीती में भी अक्सर लोग संन्यास तो नहीं किन्तु अपनी दिशा बदल लेते है l उतरार्ध में वो राज्यपाल या फिर संगठन में अपना स्थान बनाते है ।

किन्तु डा महेश शर्मा पहाड़ पर चढ़ने, सफलता को दिशा बदल कर बनाये रखने के दर्शन को समझ नहीं सके है । 2019 में भी जब वो इस बात पर यकीन कर रहे थे कि डा महेश शर्मा ही भाजपा है तब भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व (मोदी – शाह) ने उन्हें पुन: मंत्री ना बना कर ये बताया कि उनको 2019 में टिकट देना पार्टी की मज़बूरी थी क्योंकि पहले चरण के चुनाव के समय किसी भी केन्द्रीय मंत्री का टिकट काटना भाजपा के विरोधियो को मजबूती दे सकता था और भाजपा तब कोई भी नुकसान उठाने की स्थिति में नहीं थी ।

इसी बीच जेवर विधायक धीरेन्द्र सिंह की राजनैतिक महत्वाकांक्षा ने भी जिले में एक नया व्याकरण रचना शुरू कर दिया था, ऐसा नहीं था डा महेश शर्मा इससे अनभिज्ञ थे । नॉएडा में 2017 के विधान सभा चुनाव में कद्दावर भाजपा नेता राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह का नॉएडा से विधायक प्रत्याशी बनने के साथ ही उन्हें संभावित खतरे का अहसास हो गया था । उन्होंने तब असहयोग करने की असफल कोशिश भी की थी किंतु अमित शाह के एक आदेश मात्र से वो अपनी टीम के साथ मैदान में उतरने को मजबूर थे । पंकज सिंह को साधने के लिए उन्होंने 2017 में ही भाजपा से अलग दादरी में बसपा से तेजपाल नागर और जेवर में कांग्रेस से धीरेंद्र सिंह लाकर भाजपा में टिकट दिलवाया ताकि उनकी सत्ता जिले में स्थिर रहे ।

संयोग देखिए यही वो धीरेंद्र सिंह है जिन्हे आज डा शर्मा के समर्थक कांग्रेसी बता रहे है, राहुल गांधी को मोटर साइकिल पर बैठाने वाले फोटो प्रसारित कर ट्रोलिंग कर रहे है । मुझे मेंहदी हसन की गाई एक गजल याद आती है
अर्ज ए-नियाज़-ए-इश्क के काबिल नही रहा
जिस दिल पे नाज़ था वो दिल नही रहा

ऐसे में जब 2019 का चुनाव जीत कर डा महेश शर्मा जिले में राजनीती शीर्ष पर अपना झंडा फहरा रहे थे तब जेवर विधायक उन्ही के स्थान लेने की अपनी योजना को मूर्त रूप दे रहे थे । वो लगातार जिले की राजनीती में एक नयी परिपाटी विकसित कर रहे थे । अब खेल बदल रहा था ।कल तक अनुज रहे साथी अब उनका स्थान लेने के लिए राजनीती करने लगे । फलस्वरूप पहले दोनों के मध्य अनबन के समाचार आने लगे । और फिर दोनों मंच पर साथ आने से कतराने लगे और अगर आये तो एक दुसरे से मुह फेर कर बैठने लगे ।

डा महेश शर्मा का ब्रांड एक समय इतना लोकप्रिय था कि जिले में विपक्ष के नेता तो छोडिये, मीडिया तक को कुछ लिखने में डर होता था। किन्तु बीते ३ वर्षो में ऐसा होना आम हो गया । कोरोना में निजी अस्पतालों में आये कडवे अनुभव के बाद जनता लगातार डा महेश शर्मा से उनके १५ वर्षो की राजनीती में उनके द्वारा जिले में और लोगो के किये हुए काम पूछने लगी है । लोग अपने सांसद से क्षेत्र में सरकारी अस्पताल , सरकारी स्कुलो के बारे मांग कर रहे थे और तब डा महेश शर्मा पर राजनीती के जरिये सिर्फ अपने अस्पतालों की चेन बढ़ाने के आरोप लग रहे थे । लोगों को अब सांसद जी से राजनीति के नाम पर बीमार होने पर उनके अस्पतालों में बिलों पर 10% छूट पाना मंजूर नहीं रहे गया है । यद्धपि उनके समर्थकों का कहना है कि इन सब के पीछे कई बार सही तो कई बार कुछ राजनैतिक प्रपंच भी हैं । सांसद पर अपने यहां या फिर साथ काम करने वाले जाति विशेष के लोगो को ही भाजपा संगठन में स्थान देने की चाहत के भी आरोप लग रहे है और अब इसी जातीय प्रेम पर उनका विरोध है । नोएडा में उनको अजेय बनाने वाले भी अब उन पर जिले में जातीय घृणा को बढ़ाने के आरोप लगा रहे हैं।

इसके बाद श्रीकांत त्यागी प्रकरण ने डा महेश शर्मा के ब्रांड वैल्यू को बिलकुल तोड़ दिया है । अभी तक अजेय नज़र आने वाले डा महेश शर्मा पहली बार त्यागी समाज के नेताओं से फोन पर घबराते हुए बात करते रहे और उन नेताओं ने उन फोन रेकार्डिंग को सार्वजानिक कर दिया । ऐसे में अब एक मीडिया पोर्टल में उनके कहीं और से चुनाव लड़ने के समाचार पर जिस तेजी से डा महेश शर्मा कैम्प ने प्रतिक्रिया दी उससे ऐसा लगता है कि रिपोर्ट भले ही मीडिया की थी किन्तु खेल कहीं और से चल रहा था और इस खेल में डा महेश शर्मा कैम्प पूरी तरह से विफल हो कर सामने आ गया है । उनकी हताशा ने उनके खेल को कमजोर ही किया है जिसके दूरगामी परिणाम होंगे ।

डा महेश शर्मा को ये भी समझना होगा कि जिन लोगो से सांसद के टिकट के नाम पर वो और उनके समर्थक उलझ रहे है उनको भाजपा से टिकट मिलना उतना ही मुश्किल है जितना पाकिस्तान को आज के दौर में किसी भी देश से लोन मिलना है । फिर भी अगर वो हताश दिखते है तो उनका विकल्प पार्टी और जनता स्वयं ढूंढ लेगी ।

राजनीती में डा महेश शर्मा को ये भ्रम हो सकता है कि जिस शीर्ष पर वो आज है वहां अभी कोई नहीं पहुंचा है । किन्तु उन्हें ये समझना पड़ेगा कि अयोध्या अपना राम स्वयं चुनती है । इस विवादित प्रकरण के बाद दुनिया देख रही है कि डा महेश शर्मा का जादुई व्यक्तित्व अब भरभरा रहा है । वो अब ढलान पर हैं । उनके किसी भी विरोधी को ट्रोल करवाने से उसकी प्रतिष्ठा बढ़ नहीं रही है । जिस प्रशासनिक अधिकारी के खिलाफ उन्होंने अपनी हताशा में ट्रोलिंग कराई है वो शायद ही चुनाव लडे क्योंकि उन्हें दिखाई देने वाले सभी नाम सिर्फ मोहरे है । असली खिलाड़ी कोई और भी हो सकता है और उस अनाम खिलाड़ी के दांव में फिलहाल कई लोग लड़खड़ा गए है । अनाम खिलाड़ी समय आने पर ही अपने पत्ते खोलेगा और तब यु टू ब्रूटस (You too Brutus/et tu, brute) कहने के लिए शायद देर हो चुकी होगी l

अपने प्रिय नेता को इस तरह से ढलान पर जाते देखना किसे अच्छा लगेगा ? ये भी सच है उनके प्रशंसक उन्हें थाम नहीं सकते किन्तु हमेशा उनके साथ रहेंगे । एक पंखे के विज्ञापन में राजेश खन्ना ने एक बार कहा था बाबू मोशाय! मेरे फैन्स मुझसे कोई नहीं छीन सकता ।

इस सच को डा महेश शर्मा जितना जल्दी समझ ले उनके और उनकी दूसरे चरण की राजनीती के लिए उतना ही अच्छा होगा । गौतम बुध नगर से इस बार लोकसभा का टिकट मिले ना मिले उनके प्रशंसक उनके अच्छे रूप के साथ हमेशा जुड़े रहेंगे ।

आशु भटनागर

आशु भटनागर बीते दशक भर से राजनतिक विश्लेषक के तोर पर सक्रिय हैं साथ ही दिल्ली एनसीआर की स्थानीय राजनीति को कवर करते रहे है I वर्तमान मे एनसीआर खबर के संपादक है I उनको आप एनसीआर खबर के prime time पर भी चर्चा मे सुन सकते है I Twitter : https://twitter.com/ashubhatnaagar हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I एनसीआर खबर पर समाचार और विज्ञापन के लिए हमे संपर्क करे । हमारे लेख/समाचार ऐसे ही सीधे आपके व्हाट्सएप पर प्राप्त करने के लिए वार्षिक मूल्य(501) हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : ashu.319@oksbi के जरिये देकर उसकी डिटेल हमे व्हाट्सएप अवश्य करे

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