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सत्यम शिवम सुंदरम : बेबफा एसडीएम बनी पत्नी हुई या चपरासी होकर भी एसडीएम पति कहलाने की चाहत रखने वाली मानसिकता

आशु भटनागर । हमारी संस्कृति में पति के साथ सक्षम पत्नियों ने किस तरीके से उनके जीवन में योगदान दिया इसकी बहुत कहानिया हैं हम सती अनुसूया की कहानी सुनते हैं जिसमें वह अपने अपंग पति को लेकर जीवन के संघर्ष को जीती हैं । हम राजा दशरथ और कैकई के संघर्ष को देखते हैं यहां केकई दशरथ के साथ कुशल योद्धा की तरह युद्ध करने जाती हैं और उनके साथ ही बनकर साथ देती हैं । हम भगवान राम और माता सीता की कहानियां पढ़ते हैं जहां महिलाओं ने पुरुषों के साथ उनके संघर्षों में साथ दिया है ।

हम दुर्गा सप्तशती में मां दुर्गा के सामने राक्षसों द्वारा विवाह प्रस्ताव भेजने पर उनकी कही बातों को भी सुनते हैं जहां वह कहती हैं कि मैंने एक प्रतिज्ञा कर रखी है कि जो भी मुझे युद्ध में जीत कर मेरा अभिमान तोड़ देगा वही मेरा पति होगा । शुंभ और निशुंभ आए और मुझे हरा कर मेरा परिग्रहण करें ।

किंतु एक एसडीएम पत्नी ने अपने चपरासी पति को धोखा क्या दिया, पूरे भारत के पतियों ने पत्नियों को पढ़ाने की जिम्मेदारी ना लेने की दुहाई शुरु कर दी है। ऐसा लग रहा है जैसे भारत में अभी तक पत्नियों को पढ़ाने की कोई प्रतियोगिता चल रही थी और अचानक से कोई नई बात हो गई । सोशल मीडिया पर लंबे-लंबे लेख लिखे जा रहे हैं । सोशल मीडिया पर ऐसे भी पोस्ट आए जिसमे कुछ पतियों ने तो बाकायदा एफिडेविट पर हस्ताक्षर कराने शुरू कर दिए हैं कि पत्नी एसडीएम बनने के बाद अगर उसे छोड़ेगी तो 2 करोड रुपए देने होंगे ।

भारत में शादी के बाद लड़कियों के पढ़ाने को बीते 35 वर्षों में बुरा नहीं माना गया । महिलाओं को बी एड करा कर अध्यापिका की सरकारी नौकरी मिल जाती थी । जिसके बाद परिवार को आर्थिक संभल के साथ-साथ एक सरकारी नौकरी का सहारा भी मिल जाता था । महिलाएं शिक्षित हुई तो आने वाली पीढ़ी में लड़कियों को उच्च शिक्षा पाना आसान हो गया । वैश्वीकरण के बाद निजी कंपनियों में भी उच्च पदों महिलाओं के लिए जहा नौकरी के द्वार खुले तो इसके बाद धीरे-धीरे IPS IAS ओर राजनीति के लिए भी महिलाओं ने कोशिश करी और सफल होने लगी । और जहां महिलाएं किसी वजह से नहीं पढ़ पाई वो शादी के बाद पढ़ाई पूरी करने लगी ।

ऐसे पोस्ट और पोस्ट करने वालो के विचारो से मुझे आधी आबादी की स्वतंत्रता और उसके अधिकारों की बात करने वालों के चेहरे पर चढ़ा दोगलापन साफ नजर आ रहा है । क्या पति पत्नी के बीच अलगाव या बेवफाई सिर्फ उसकी नौकरी को लेकर होती है? क्या एसडीएम का पति यह सपने नहीं देख रहा होगा कि वह भी प्रधान पतियो की तरह चपरासी होते हुए एसडीएम पति का दर्जा प्राप्त करें और अपनी एसडीएम पत्नी को बुरखे में रखकर उसके नाम पर एसडीम बन कर बैठे? क्या यह तथाकथित पति अपनी पत्नियों को पढ़ाकर कोई इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं जिससे आगे जाकर पावर और पैसा दोनों उनके घर में बरसेंगे

महिलाओं की महत्वाकांक्षा या फिर यूं कहूं कि उनकी अपनी स्वतंत्र जिंदगी की चाहत को लेकर बीते दिनों एक और फिल्म आई थी “शादी में जरूर आना” जिसमें नायिका अपनी शादी के दिन इसलिए भाग जाती है क्योंकि उसका नंबर पीसीएस में आ जाता है जिसके बाद कहानी मोड़ लेती है और क्लर्क लड़का आईएएस की तैयारी करके डीएम बन के आ जाता है हालांकि फिल्म संदेश इस मुद्दे पर ना देकर संदेश भरोसे पर देती है और अंत में दोनों की शादी होती है क्योंकि बाद में ऐसे ही अधिकार वाली सोच से ग्रसित पुरुष को यह एहसास होता है कि वह लड़की उस दिन सही थी

फिर भी मैं शुक्र मना रहा हूं कि मामला अभी पत्नी को पढ़ाने तक सीमित है किंतु एसडीएम के बाद गांव के प्रधान पति सचिव पति, नगरपालिका पति या नगर पंचायत पतियों मैं किसी को ऐसा झटका लग गया तो कल को महिला आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए महिलाएं नहीं मिलेंगी । या फिर प्रधानी पंचायत और नगर पालिका में भी पति अपनी पत्नियों से यह लिखना शुरू कर देंगे कि कल को जीतने के बाद हो पति को तलाक नहीं दे देगी । एक सज्जन ने कहा इन सभी जगह 5 साल तक ही गारंटी रहती है उसमें पत्नियां बेवफाई नहीं करती और मैं सोच रहा हूं कि अगर किसी के मुंह खून लग जाए तो उसको 5 साल क्या और 50 साल क्या ?

बात फिर मुद्दे पर घूम के आती है कि क्या वाकई महिला एसडीएम ने अपने पति के साथ बेवफाई की या फिर एक बेहतर विकल्प के उपलब्ध होने पर उसने वही किया जो आमतौर पर आदमी भी करता है

मुझे 90 के दशक में आई “नसीब अपना अपना* फिल्म का ऋषि कपूर याद आता है जो गांव में अपनी पत्नी को छोड़कर शहर में साथ काम करने वाली लड़की के साथ रोमांस करने लगता है ।

उस दौर में ऐसी कई फिल्में बनती थी जिसमें अक्सर काम करने वाले आदमी अपनी पत्नियों को गांव में ही छोड़कर शहर में शादी कर लेते थे खास तौर पर बाहर जाकर नौकरी करने वाले कई ऐसे मामले सामने आए और पत्नियों के सामने विरोध का कोई विकल्प मौजूद ही नहीं रहा तो फिर महिला को देवी बनाकर उसके गीत गाए गए और उसके दुख को वही उसके दुख को वहीं तक सीमित कर दिया गया किंतु कहीं भी यह नहीं कहा गया कि आगे से कोई पत्नी अपने पति को बाहर दूर देश बेहतर भविष्य के लिए नौकरी करने नहीं भेजें । किंतु शायद समाज में पुरुष की बेवफाई को सार्वजनिक करने का चलन नहीं है ।

भारतीय राजनीति के शिखर पुरुषों में जॉर्ज फर्नांडीज अपनी पत्नी के होते हुए साथ ही राजनीति के के साथ प्रेम बढ़ाते हैं तो ऐसे ही एक अन्य समाजवादी नेता मुलायम सिंह अपनी पत्नी के होते हुए एक अन्य विवाहित महिला के साथ संबंध में रहते हैं और पत्नी के बच्चों के बाद उसे अपनी पत्नी तक स्वीकार लेते हैं और उनके पुत्र को अपना नाम भी देते हैं । प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के महिलाओं के साथ किससे अक्सर सोशल मीडिया पर रहते हैं तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई यह कहने में नहीं जिसके कि कुंवारा हूं वर्जिन नहीं हूं

ऐसे में मैं फिर से कोशिश करता हूं बहुत लोगों से सोशल मीडिया से अलग बात करने की तो पाता हूं कि असल में जितना असर इस घटना का सोशल मीडिया पर चल रहा है । इतना जमीन पर नहीं है और ये स्थिति सुखद है ।

समान नागरिक संहिता की मांग करने वाला समाज क्या आधी आबादी को अधिकार दे पाएगा या फिर इसी बहाने उसको रोकने की कोशिश करेगा ।

पति पत्नी के बीच अलगाव या कहीं और जाने के पीछे सिर्फ बेहतर नौकरी ही एक कारण नही होता बल्कि उसके पीछे कई कारण हो सकते और सामाजिक ताने-बाने अगर ऐसे कुछ उदाहरण आ भी जाते हैं तो उसकी वजह से पूरे आधी आबादी को दोषी नहीं बनाया जा सकता ठीक वैसे ही जैसे कुछ बेवफा पतियों के बावजूद समाज में महिलाएं आज भी पति को शिव का दूसरा रूप मानकर के साथ रहती हैं आज भी लड़कियां अपने पति को शिव के रूप में ही देखना चाहती है । ऐसे में सावन के इस माह में शिव और पार्वती के भरोसेमंद जीवन आदर्श की कल्पना करते हुए मैं इसी नोट पर इस लेख को समाप्त करता हूं किसी एक घटना के साथ कारण समाज में दिखने वाला यह विक्षोभ क्षणिक होगा और इसका कोई दूरगामी असर नहीं असर नहीं होगा

आशु भटनागर

आशु भटनागर बीते दशक भर से राजनतिक विश्लेषक के तोर पर सक्रिय हैं साथ ही दिल्ली एनसीआर की स्थानीय राजनीति को कवर करते रहे है I वर्तमान मे एनसीआर खबर के संपादक है I उनको आप एनसीआर खबर के prime time पर भी चर्चा मे सुन सकते है I Twitter : https://twitter.com/ashubhatnaagar हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I एनसीआर खबर पर समाचार और विज्ञापन के लिए हमे संपर्क करे । हमारे लेख/समाचार ऐसे ही सीधे आपके व्हाट्सएप पर प्राप्त करने के लिए वार्षिक मूल्य(501) हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : ashu.319@oksbi के जरिये देकर उसकी डिटेल हमे व्हाट्सएप अवश्य करे

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