ज़ूम मीटिंग को गृह मंत्रालय के असुरक्षित बताये जाने के बाबजूद कोरोना महामारी के इस संकट काल में नेताओं , समाजसेवियों और पत्रकारों का विडियो कांफ्रेसिंग एक प्रिय शगल बन गया है I क्योंकि बुजुर्ग कहते है हींग लगे ना फिटकरी रंग भी चोखा होए I
सभी अपने अपने हिसाब से लोगो को ज़ूम मीटिंग के जरिये संपर्क साधने में लगे है I लोगो की सुरक्षा को लेकर भारत सरकार की चेतावनी को दरकिनार सिर्फ इसलिए कर दिया जा रहा है क्योंकि इससे नेताओं और सोसाइटियो में रहने वाले उनके प्रतिनिधियों और समाजसेवियों की राजनीती चमक जाती है I ज़ूम पर लोगो की मीटिंग को सोशल मीडिया समेत मीडिया में छापने को दिया जाता है ताकि घर बैठे बैठे ही नेताओं की जबाबदेही का काम ख़तम हो जाए I इसके साथ ही सोसाइटी में मौजूद नेताओं के प्रतिनिधियों के लिए भी ये सुनेहरा मौका होता है अपनी सोसाइटी के लोगो को दिखाने का कि देखो हम १० या २० ख़ास लोगो ने नेताजी से मीटिंग की है
लेकिन छपास और दिखावे के मारे ये सभी लोग ज़ूम यूज कर रहे लोगो के मोबाइल फ़ोन या लैपटॉप डाटा की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है I सबको लगता है की अगर कुछ हुआ तो सरकार तो है ही आरोप लगाने के लिए I
ज़ूम मीटिग को लेकर सुरक्षा को नजर अंदाज करने वाले समाजसेवियों नेताओं और पत्रकारों पर हैरानी इसलिए भी होती है क्योंकि जिस देश में आरोग्य सेतु एप का विरोध सिर्फ इस बात पर हो जाता है की सरकार डाटा ले रही है लोगो की प्राइवेसी को चेक कर रही है वहां एक चाइनीज डाटा सेण्टर वाले इस एप पर लोगो को डाटा सुरक्षा तो छोडिये अपने बैंकिंग अकाउंट और पासवर्ड जैसी गंभीर बातो का भी ध्यान नहीं है I सरकार को आधार कार्ड ना बनाने के खिलाफ बोलने वाले पत्रकार , समाजसेवी आज अपना डाटा खुद आगे आकर ज़ूम को देते नजर आ रहे है
समाज के इस दोहरे रवैये और छपास के रोग का कोई इलाज कब होगा ये तो सरकार और हम भी नहीं बता सकते है लेकिन जितनी तत्परता और लगन सरकार में शामिल सांसद , विधायक , समाजसेवी और पत्रकार ज़ूम एप के लिए दिखाया रहे है उतनी तत्परता अगर आरोग्य एप के लिए दिखाए होते तो देश में कोरोना की स्थिति और आंकड़ो का कुछ बेह्टर रिजल्ट हमारे सामने होता I अब तक इसके मात्र १० करोड़ ही डाउनलोड हुए है जबकि १३० करोड़ लोगो के देश में अपनी सुरक्षा के लिए बनाए गये सरकारी एपके पीछे इतनी उदासीनता पर समाजसेवी कुछ नहीं बोलते बल्कि यही लोग सरकार के खिलाफ डाटाचोरी का आरोप लगाते नजर आते है
ऐसे में बड़ा सवाल ये है की दिल्ली एनसीआर में कब तक बताओ , समाजसेवियों ,पत्रकारों और सोसाइटी प्रतिनिधियों द्वारा सरकार द्वारा बताये असुरक्षित एप के जरिये मीटिंग कर राजनीती की वाहवाही लुटी जाती रहेगी ? आखिर कब हमारे जन प्रतिनिधि लोगो की सुरक्षा को लेकर गंभीर होंगे ?