राजेश बैरागी l उनकी महिमा लोगों के मन-मस्तिष्क पर ऐसी चढ़ी है कि न पंडाल में पांव रखने का स्थान है और न बाहर। यहां पर्चा खुलने का भय नहीं लगता। भक्ति काल के कवियों ने अपनी देशज भाषा में परिचय को पर्चा कहकर काम चलाया था। बाबा बागेश्वर धाम फेम पं धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के दिव्य दरबार में आने वाले भक्तों और भक्तिनियों को स्वयं से परिचित होने का मानों शौक चढ़ा है। पत्रकार होने के कारण लोग हमसे भी बाबा तक अपनी अर्जी पहुंचाने की आशा करते हैं। यह ऐसा ही है जैसे भक्त पर्चा मांगते हैं और देवी को अपनी जान बचाने की पड़ी है। एक महिला अपनी सखियों के साथ दक्षिणी दिल्ली से चली तो आई परन्तु कथास्थल के निकट मेट्रो स्टेशन से बाहर ही नहीं निकल सकी।
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजकुमार भाटी कथा के लिए बंद किए गए शहर के रास्तों में उलझ कर ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मियों से बहस कर बैठे। यह समस्या भाजपाइयों को भी हो रही होगी परन्तु कोई समस्या को स्वीकारता है तो कोई ललकारता है।
बाबा बागेश्वर दिव्य दरबार में और कथा के बीच बीच में इतनी जोर से ‘राम’ का उच्चारण करते हैं कि यदि किसी सेवक का नाम राम हो तो वह घबराकर दौड़ा चला आए। दिव्य दरबार का दृश्य अद्भुत था। बाबा बागेश्वर दिव्य पुरुष की भांति अपने (हनुमान जी के नहीं) भक्तों का परचा निकाल रहे थे और पंडाल में जमा संगत को आश्चर्यचकित कर रहे थे।
मैंने बाहर पोलीथीन की बिछावन बेच रही एक दीन हीन महिला सशक्तिकरण की साक्षात मूर्ति तैत्रेयी से पूछा, कहां से आई हो? उसने बताया, नालंदा बिहार से, नितीश कुमार के गांव से।’ उसने बताया कि बाबा की जहां कथा होती है,वह वहीं बिछावन बेचती है।कासना नटों की मंडैया की कुछ महिलाएं आ रहे भक्तों को तिलक लगाने का व्यापार कर रही थीं। तिलक लगवाने वाला रुपया दो रुपया दे देता है। यह भीख मांगने से तो अच्छा है। बाबा की कथा के साथ ऐसे न जाने कितने स्त्री पुरुष अपने जीवनयापन का साधन करते हैं। कथा के आयोजकों पर भी ऐसा ही साधन करने की चर्चाएं हैं। दिव्य दरबार संपन्न हुआ तो लोग बाहर निकलने लगे। कुछ बाबा से मिलकर भी संतुष्ट नहीं हैं और कुछ न मिलकर भी यहां तक आने का पुण्य लेकर जा रहे हैं।