विधान सभा चुनाव 2022 : कोरोना के बढ़ते केस ने बढ़ाई प्रत्याशियों की धड़कन, चुनाव आगे खिसकने से बढ़ेगा खर्चा और सामाजिक दबाव, फरवरी में हुए चुनाव तो रहेगा कम वोटिंग का खतरा

5 राज्यो में विधान सभा चुनाव से ठीक पहले ओमिक्रोन के फैलते संक्रमण ने नेताओ की नींद उड़ा दी है । डर का आलम ये है राजनैतिक दल भले भी बीते दिनों उत्तर प्रदेश के दौरे पर गए चुनाव आयोग से समय पर ही चुनाव कराने की ही मांग करते दिखे । इसमें पक्ष और विपक्ष सभी एक राय से सहमत थे । अब तक ऐसा अक्सर राजनेताओं के भत्तों में वृद्धि के समय ही होता था लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में पंचायत चुनाव के दौरान हुई मौतों के बाबजूद हर कोई यही माना रहा है कि चुनाव सही समय यानी फरवरी में ही हो
आखिर फरवरी में ही सबको क्यों चाहिए चुनाव
लेकिन कोरोना संक्रमण बढ़ने के बाजूद आखिर सभी राजनैतिक दलों को और चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों को फरवरी में ही चुनाव क्यों चाहिए तो इसका ज़बाब भी बहुत आसान है । बीते कई महीनों से सभी राजनीतिक दल और उसके प्रत्याशी अपने अपने तरीके से चुनाव में पैसा खर्च कर रहे हैं ऐसे में किसी भी वजह से अगर चुनाव 2 महीने और आगे बढ़ जाता है तो प्रत्याशी और राजनीतिक दलों दोनों के ही ऊपर यह खर्च और बढ़ जाएगा
सत्तारूढ़ भाजपा को यह डर है कि कोरोना के कारण अगर चुनाव टला और उसके बाद चुनाव हुए तो फिर से आई परेशानियों के कारण वोटर्स का मन सत्ता के खिलाफ जा सकता है तो विपक्ष कि अपनी समस्या है विपक्ष के सभी राजनीतिक दलों को लगता है कि साल भर के किसान आंदोलन के कारण इस समय सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ माहौल है और अगर सत्ता को 2 महीने का समय और मिल गया तो कोरोना में योगी सरकार अपने बेहतर मैनेजमेंट के कारण इस बाजी को पलट सकती है ऐसे में किसान आंदोलन के कारण जिन वोटों का फायदा विपक्ष को होने वाला है उसका नुकसान हो सकता है
लेकिन इससे भी बड़ी समस्या इन राजनीतिक दलों से चुनाव लड़ने वाले संभावित प्रत्याशियों की है जैसे-जैसे चुनाव में देरी होगी वैसे वैसे इन प्रत्याशियों का खर्च और बढ़ेगा और अगर कोरोना के कारण चुनाव में देरी हुई तो इन प्रत्याशियों को कोरोना के समय ना सिर्फ लोगों की मदद के लिए तमाम पैसा खर्च करना पड़ेगा बल्कि इतने संसाधन भी आगे रखने पड़ेंगे ऐसे में हर कोई चुनाव आयोग से बस किसी भी तरीके से फरवरी में ही चुनाव कराने की प्रार्थना कर रहा है चाहे इसके लिए पंचायत चुनाव की तरह कितने भी लोगों की बलि क्यों न देनी पड़े
क्या कह रहे हैं आम लोग ?
राजनेताओं से अलग आम जनता कोरोना के कारण किसी भी तरीके के चुनाव में अपनी स्थिति को बेहद कमजोर साबित हो रही है, चुनाव आयोग भी राजनैतिक दलों से तो राय मांग रहा है लेकिन सबसे ज्यादा भागीदारी निभाने वाले वोटर्स की कोई सुनवाई नहीं हो रही है । लोगों का साफ कहना है कि सत्ता की इस लड़ाई में राजनेताओं ने लाज शर्म सब त्याग कर रख दी है । नेता आम लोगों की लाशों पर अपनी जीत का जश्न मनाना चाहते हैं
कोरोना के डर के मारे जहां आम आदमी के लिए धारा 144 लगाई जा रही है, शादी जैसे उसके व्यक्तिगत सामाजिक कार्यक्रमों को रोका जा रहा है तो नाइट कर्फ्यू के जरिए उद्योगों को नुकसान हो रहा है वही राजनेताओं को सिर्फ चुनाव फरवरी में इसलिए चाहिए ताकि उनको किसी भी तरीके से सत्ता मिल सके ऐसे में फरवरी में अगर चुनाव हुए तो वोटिंग प्रतिशत 40% के आसपास रह सकता है खास तौर पर शहरी वोटर्स के मामले में यह प्रतिशत कम रहने की पूरी संभावना है लोगो का साफ कहना है कि सरकार बने या ना बने लेकिन वो अपनी जान की बाजी नेताओ के लिए बिल्कुल नही लगाएंगे । दूसरी लहर में मारे गए लोगो को सरकार ने कोरोना से मरने से मानने का ही इंकार कर दिया ऐसे में चुनावो के नाम पर फिर से अपनी जान की बाजी लगाने का कोई औचित्य नहीं है ।