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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का निधन

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह नहीं रहे। कल्याण सिंह को जानने वाले विरोधी और समर्थक दोनों मानते हैं कि राजनीति में शीर्ष पर रहते हुए भी उनकी सहजता सरलता बनी रही। भ्रष्टाचार का एक भी उदाहरण उनके जीवन में नहीं है। वे अपने वचन के पक्के थे। अगर आपको कोई वचन दे दिया तो उसे हर हाल में पूरा करने की कोशिश करते थे और इसके लिए हर स्तर पर विरोध झेलने को भी तैयार रहते थे। विरोधी नेताओं के साथ भी सामान्य संबंध बनाए रखना तथा राजनीति को कभी विरोधियों को कुचलने का हथियार न बनाना उनका सिद्धांत और व्यवहार था। एक समय भाजपा और संघ परिवार में कल्याण सिंह की लोकप्रियता और प्रतिष्ठा शीर्ष पर थी। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने उत्तर प्रदेश के ही एक प्रमुख नेता के प्रभाव में आकर कल्याण सिंह के साथ अन्याय किया। उन्हें दो-दो बार पार्टी छोड़कर जाना पड़ा। एक बार अपनी पार्टी बनाई और दूसरी बार वे समाजवादी पार्टी में भी गए। उनके निकट के लोग बताते हैं उन दौरान उनके पास जब भाजपा या आर एस एस के पुराने जुड़े हुए नेता कार्यकर्ता जाते थे तो पार्टी नेतृत्व क्या उनके प्रति व्यवहार को लेकर उनकी आंखों से आंसू छलक जाते थे। देर से पार्टी नेतृत्व को अपनी गलतियों का अहसास हुआ और उन्हें फिर लाया गया लेकिन तब तक उनकी चमक गायब हो चुकी थी। सच कहे तो भाजपा नेतृत्व ने अपने एक शानदार कार्यकर्ता, नेता और जानदार व्यक्तित्व को नष्ट कर दिया । इससे भाजपा को उत्तरप्रदेश में ऐसी संघातक क्षति हुई जिसकी पूर्ति नरेंद्र मोदी के शीर्ष पर आने के पहले संभव ही नहीं हुई। भाजपा अगर 2004 में केंद्र के सत्ता से बाहर हुई तथा कभी संतोषजनक सीटें नहीं प्राप्त कर सकी तो उसका एक बड़ा कारण यही था कि कल्याण सिंह के महत्व को नहीं समझा गया। भाजपा के पुराने लोग बताते हैं कि कल्याण सिंह ने गांव-गांव, खंड-खंड, जिले-जिले का दौरा कर एक-एक कार्यकर्ता को खड़ा किया, स्वयं हाथों से लिख कर पदाधिकारियों की सूची बनाते थे ,रात-रात भर लोगों के साथ मेहनत करते थे। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने कल्याण सिंह के हश्र से सबक लिया और किसी प्रदेश में उन्होंने ऐसी किसी नेता को श्रीहीन करने का कदम नहीं उठाया। विरोधियों के लिए कल्याण सिंह 6 दिसंबर ,1992 के खलनायक थे ,क्योंकि उन्हीं के मुख्यमंत्री रहते बाबरी ढांचे का विध्वंस हुआ था। यह अलग बात है कि कल्याण सिंह कभी ऐसा नहीं चाहते थे। उन्हें भरोसा था कि 6 दिसंबर को कार सेवा कर कारसेवक पहले की तरह लौट जाएंगे और ढांचा सुरक्षित रहेगा। इसी विश्वास के साथ उन्होंने उच्चतम न्यायालय में शपथ पत्र भी दिया था। लेकिन उनकी एक न चली। सच तो यही है कि भाजपा के किसी शीर्ष नेता की नहीं चली। इस कारण कल्याण सिंह की कुर्सी गई, सरकार भी बर्खास्त हुई। आप उनके पूरे व्यक्तित्व और राजनीतिक यात्रा को जैसे देखें ,लेकिन राजनीति के लिए उनका जीवन उनकी अपनी ही पार्टी नहीं उत्तर प्रदेश की दूसरी पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए भी प्रेरक रहा है। सभी विवेकशील और जानकार नेता ,कार्यकर्ता उनका सम्मान करते थे। उनके अस्वस्थ होने के बाद प्रदेश की योगी सरकार ने उनको बेहतर चिकित्सा उपलब्ध कराने की पूरी व्यवस्था की। स्वयं योगी आदित्यनाथ बार-बार अस्पताल जाते रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह लगातार उनका हालचाल लेते रहे। ऐसे व्यक्तियों के साथ किसी भी पार्टी के नेतृत्व को यही भूमिका निभानी चाहिए। इससे नेताओं व कार्यकर्ताओं को संदेश मिलता है कि मुख्यधारा से बाहर होने के बावजूद अगर वे अस्वस्थ हुए तो पार्टी नेतृत्व उन्हें अकेला नहीं छोड़ेगा। देखना होगा भाजपा का इतिहास लिखने वाले उनका मूल्यांकन कैसे करते हैं। मृत्यु के साथ हर तरह का मतभेद खत्म हो जाता है। तथाकथित वैचारिक असहमति का चोला उतार कर सभी दलों और नेताओं को उन्हें सम्मानपूर्वक श्रद्धांजलि देनी चाहिए।

मेरी ओर से सादर श्रद्धांजलि।

अवधेश कुमार

NCRKhabar Mobile Desk

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