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मोदी की गैरहाजिरी में भाजपा पर बरसा संघ, सुनाई खरी-खरी

संघ ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश और जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के फैसले पर भाजपा को खरी खरी सुनाई है। समन्वय और संवाद के आधार पर तालमेल न बना पाने को इसका बहाना बनाया गया है। केंद्र में सरकार गठन के बाद संघ-भाजपा समन्वय समिति की यह पहली बैठक थी।

इसमें संघ के शीर्ष नेताओं ने बड़े फैसले से पहले समन्वय और संवाद न करने पर निराशा और नाराजगी जाहिर की। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के आवास पर सोमवार को यह मैराथन बैठक हुई।

इसमें संघ ने माना कि भूमि अधिग्रहण बिल पर अध्यादेश जारी करने और जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने से पहले विस्तृत विचार विमर्श न करने से देश भर में सरकार और पार्टी के प्रति नाराजगी बढ़ी है।

बताते हैं कि संघ के एक वरिष्ठ नेता ने अध्यादेश के खिलाफ भारतीय किसान संघ के मैदान में उतरने का उदाहरण देते हुए कहा कि संवाद कायम न करने के कारण ऐसा हुआ। संघ ने बड़ा फैसला लेने से पहले हर हाल में समन्वय और संवाद सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।

बैठक में संघ की ओर से भैया जी जोशी, कृष्ण गोपाल सहित वरिष्ठ नेताओं के अलावा भाजपा संसदीय बोर्ड के सदस्यों ने हिस्सा लिया। पीएम नरेंद्र मोदी बैठक में नहीं थे।भाजपा महासचिव राम माधव ने कहा कि बैठक में भूमि अधिग्रहण बिल, गंगा सफाई, योग दिवस और अंबेडकर जयंती जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। संघ के एक वरिष्ठ नेता का कहना था कि चूंकि अध्यादेश जारी करने से पूर्व न तो पूरी तैयारी की गई और न ही समन्वय व संवाद कायम किया गया इसलिए विपक्ष इस बिल के नकारात्मक पहलुओं को सामने लाकर लोगों में आक्रोश भरने में सफल रहा है।

संघ नेताओं ने जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के मामले में अंतिम दौर पर मनमर्जी से निर्णय लिए जाने पर भी ऐतराज जताया। सरकार को सलाह दी गई है कि भविष्य में टकराव टालने के लिए बड़े फैसलों से पूर्व हर हाल में समन्वय कायम किया जाना चाहिए।

सूत्रों ने यह भी बताया कि संघ ने शिक्षा के क्षेत्र में अपने अनुरूप बदलाव न हो पाने पर भी गहरी नाराजगी जताई है। बैठक में प्राथमिक शिक्षा के माध्यमों, पाठ्यक्रमों पर भी संघ की ओर से राय दी गई। उल्लेखनीय है कि सरकार बनने के बाद संघ ने शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की दिशा में तेजी से कार्य होने की उम्मीद जताई थी।

तब संघ का कहना था कि चूंकि राम मंदिर, धारा 370 और समान नागरिक संहिता मामले में बदलाव के लिए सरकार को संसद में संख्या बल की जरूरत पड़ेगी। मगर शिक्षा क्षेत्र में बदलाव के लिए सरकार के पास ऐसी कोई मजबूरी नहीं है।

NCR Khabar News Desk

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