महाशिवरात्रि के दिन ग्रहों का विशेष संयोग बन रहा है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, महाशिवरात्रि पर शिव योग के साथ घनिष्ठा नक्षत्र होगा और चंद्रमा मकर राशि में विराजमान रहेंगे।
मार्च महीने में ग्रहों के बदलाव की शुरुआत 11 मार्च को शिवरात्रि के दिन से होगी। जब बुध ग्रह मकर राशि से निकलकर कुंभ राशि में गोचर करेंगे। इस दिन कुंभ राशि में चंद्रमा, सूर्य, शुक्र, बुध ग्रह का संचरण होगा। घनिष्ठा नक्षत्र के कारण इस दिन का महत्व और भी बढ़ रहा है। बुध ग्रह को हमारी बुद्धि, विवेक और वाणी का प्रतीक माना जाता है । इन्हें व्यापार का कारक भी माना जाता है। कुंभ राशि में बुध का गोचर बहुत महत्वपूर्ण रहने वाला है क्योंकि यह बुध की मित्र राशि है। बुध ग्रह 11 मार्च से 1 अप्रैल तक कुंभ राशि में ही रहेंगे।
महा शिवरात्रि पूजा का शुभ मुहूर्त
महाशिवरात्रि तिथि – 11 मार्च 2021 (गुरुवार)
चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 11 मार्च 2021 दोपहर 2.39 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त: 12 मार्च 2021 दोपहर 3:00 बजे
शिवरात्रि पारण का समय: 6 मार्च 34 मिनट से 3 मार्च 2 मिनट
महा शिवरात्रि व्रत का महत्व
महाशिवरात्रि पर शिव की पूजा की जाती है। इस दिन पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को मनचाहा वर प्राप्त होता है। यदि लड़की की शादी लंबे समय से नहीं चल रही है या किसी प्रकार की बाधा है, तो उसे महाशिवरात्रि व्रत का पालन करना चाहिए। इस स्थिति के लिए यह व्रत बहुत फलदायी माना जाता है। इस व्रत का पालन करने से भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे।
शिवलिंग पूजा
शिवलिंग भगवान शिव का प्रतीक है। शिव का अर्थ है कल्याण और लिंग का अर्थ है सृष्टि। लिंग को एक सर्जन के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत में, लिंग का अर्थ है प्रतीक। भगवान शिव अनंत काल के प्रतीक हैं। मान्यताओं के अनुसार, लिंग एक विशालकाय ब्रह्मांडीय अंडाशय है, जिसका अर्थ है ब्रह्मांड। इसे ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है।
महाशिवरात्रि महानिशा का शुभ मुहूर्त
निशित काल पूजा मुहूर्त: 11 मार्च, रात 12 बजकर 6 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक
पहला प्रहर: 11 मार्च की शाम 06 बजकर 27 मिनट से 09 बजकर 29 मिनट तक
दूसरा प्रहर: रात 9 बजकर 29 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक
तीसरा प्रहर: रात 12 बजकर 31 मिनट से 03 बजकर 32 मिनट तक
चौथा प्रहर: 12 मार्च की सुबह 03 बजकर 32 मिनट से सुबह 06 बजकर 34 मिनट तक
महाशिवरात्री पारणा मुहूर्त: 12 मार्च, सुबह 06 बजकर 36 मिनट से दोपहर 3 बजकर 04 मिनट तक
ज्योतिष के दृष्टिकोण से शिवरात्रि पर्व
चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ अर्थात स्वयं शिव ही हैं। इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है। गणित ज्योतिष के आंकलन के हिसाब से महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं और ऋतु-परिवर्तन भी चल रहा होता है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमज़ोर स्थिति में आ जाते हैं। चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है — अतः शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्र सबल होता है, जो मन का कारक है। दूसरे शब्दों में कहें तो शिव की आराधना इच्छा-शक्ति को मज़बूत करती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार करती है।
उस असीमित को जानने की हर प्रकार की तड़प, अस्तित्व के उस एकत्व को जानने की इच्छा – योग है। महाशिवरात्रि की वह रात, उस अनुभव को पाने का अवसर भेंट करती है।
शिवरात्रि माह का सबसे अंधकारमय दिन है। हर माह शिवरात्रि को मनाने तथा एक विशेष दिन महाशिवरात्रि को मनाना लगभग ऐसा ही है, जैसेअंधकार का उत्सव मनाना। कोई भी तार्किक मन, अंधकार के स्थान पर प्रकाश को चुनेगा। परंतु शिव शब्द का शाब्दिक अर्थ है, “जो नहीं है।”“जो है”वह अस्तित्व और सृजन है। और “जो नहीं है, ”वह शिव है। “जो नहीं है”का अर्थ है कि जब आप अपनी आँखें खोलते हैं और अपने आसपास देखते हैं, अगर आपकी दृष्टि केवल छोटी वस्तुओं तक सीमित होगी तो आपको सृष्टि के अलग-अलग रूप दिखेंगे। अगर आपकी दृष्टि वाकई विशाल चीज़ों की खोज में होगी, तो आप विस्तृत शून्य को ही अस्तित्व की सबसे बड़ी उपस्थिति के रूप में देख सकेंगे। कुछ कण जिन्हें हम आकाशगंगा कहते हैं, वे आम तौर पर सभी का ध्यान आकर्षित करते हैं, पर ये विराट शून्य जिसने उन्हें थाम कर रखा है, सभी की नज़रों में नहीं आता। वह अथाह, असीम शून्य ही शिव कहलाता है। आधुनिक विज्ञान भी आज यही प्रमाणित कर रहा है, कि सब कुछ शून्य से ही उपजा है और उसी शून्य में विलीन हो जाता है। इसी संदर्भ में शिव, अथाह शून्य या खालीपन महादेव या देवों के देव कहलाते हैं।
अंधकार तो सर्वव्यापी है, और सभी कुछ इसमें समाया है। अपरिपक्व मन वाले लोग इस संसार में सदा अंधकार को शैतान मानते आए हैं। पर जब आप उस दिव्य को सर्वव्यापी कहते हैं, तो स्पष्ट है कि आप दिव्य को अंधकार कह रहे होते हैं,क्योंकि सिर्फ अंधकार ही चारो ओर फैला हुआ है। यह हर तरफ है। इसे किसी का सहयोग नहीं चाहिए। प्रकाश सदा किसी स्त्रोत से आता है जो अपने-आप को जला रहा है। इसका एक आदि और अंत है। यह एक सीमित स्त्रोत से आता है। अंधेरे का कोई स्त्रोत नहीं है। यह अपने-आप में एक स्त्रोत है। यह सर्वव्यापी और सर्वत्र है। तो जब हम शिव कहते हैं, तो हम अस्तित्व की उसी विस्तृत शून्यता की बात कर रहे हैं। इसी अथाह शून्य के बीच कहीं सारी सृष्टि जन्म लेती है। शून्यता की इसी गोद को हम शिव कहते हैं।
भारतीय संस्कृति में, सारी प्राचीन प्रार्थनाएँ आपको बचाने, आपकी रक्षा करने या जीवन में कुछ बेहतर करने के लिए नहीं थीं। सभी प्राचीन प्रार्थनाएँ सदा से यही रही हैं, ‘हे प्रभु मेरे विकारों को नष्ट कर दो ताकि मैं भी आपकी तरह बन सकूँ।’
पौराणिक कथाओं के अनुसार, परम ब्रह्म सदाशिव महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि को लिंग स्वरुप में प्रकट हुए थे। इस दिन भगवान शिव का जन्मदिन भी मनाया जाता है। पहली बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने लिंग स्वरुप भगवान शिव की आराधना की थी। वहीं, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती परिणय सूत्र में बंधे थे, इसलिए भी इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। शिवरात्रि के दिन शिवलिंग की पूजा करने का विधान है। भक्त शिव और शक्ति दोनों की आराधना करते हैं।
महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा
शिवरात्रि को लेकर बहुत सारी कथाएँ प्रचलित हैं। विवरण मिलता है कि भगवती पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।
वहीं गरुड़ पुराण में इस दिन के महत्व को लेकर एक अन्य कथा कही गई है, जिसके अनुसार इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह थककर भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उनपर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरीं। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया; जिसे उठाने के लिए वह शिव लिंग के सामने नीचे को झुका। इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया।
जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा।
शिवपुराण के अनुसार व्रत करने वाले को महाशिवरात्रि के दिन प्रात:काल उठकर स्नान व नित्यकर्म से निवृत्त होकर ललाट पर भस्मका त्रिपुण्ड तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण कर शिवालय में जाना चाहिए और शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन एवं भगवान शिव को प्रणाम करना चाहिए। तत्पश्चात उसे श्रद्धापूर्वक महाशिवरात्रि व्रत का संकल्प करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार अपने जीवन के उद्धार के लिए माता लक्ष्मीं, सरस्वती, गायत्री, सीता, पार्वती तथा रति जैसी बहुत-सी देवियों और रानियों ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था।
ज्योतिष के दृष्टिकोण से शिवरात्रि पर्व
चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ अर्थात स्वयं शिव ही हैं। इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है। गणित ज्योतिष के आंकलन के हिसाब से महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं और ऋतु-परिवर्तन भी चल रहा होता है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमज़ोर स्थिति में आ जाते हैं। चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है — अतः शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्र सबल होता है, जो मन का कारक है। दूसरे शब्दों में कहें तो शिव की आराधना इच्छा-शक्ति को मज़बूत करती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार करती है।
महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा
शिवरात्रि को लेकर बहुत सारी कथाएँ प्रचलित हैं। विवरण मिलता है कि भगवती पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है।
वहीं गरुड़ पुराण में इस दिन के महत्व को लेकर एक अन्य कथा कही गई है, जिसके अनुसार इस दिन एक निषादराज अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह थककर भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने कुछ बिल्व-पत्र तोड़े, जो शिवलिंग पर भी गिर गए। अपने पैरों को साफ़ करने के लिए उसने उनपर तालाब का जल छिड़का, जिसकी कुछ बून्दें शिवलिंग पर भी जा गिरीं। ऐसा करते समय उसका एक तीर नीचे गिर गया; जिसे उठाने के लिए वह शिव लिंग के सामने नीचे को झुका। इस तरह शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसे लेने आए, तो शिव के गणों ने उसकी रक्षा की और उन्हें भगा दिया।
जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा।
पंच पल्लव , पांच पत्तों से प्रसन्न होते हैं भगवान शिव
- बेल पत्र ( बिल्वपत्र )
शिवपुराण के अनुसार तीनों लोकों में जितने पुण्य तीर्थ हैं वे सभी इस बेलपत्र के मूलभाग में निवास करते हैं. इसलिए कहा जाता है कि बेलपत्र से शिव जी की पूजा करने वाले भक्तों को विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है. - भांग के पत्ते
भांग भगवान शिव को अतिप्रिय है. मान्यता है कि जब शिवजी समुद्र मंथन से निकले विष को पीया था तो भांग के पत्तों से ही उनका उपचार किया गया था. इसलिए शिव की पूजा में भांग के पत्तों का विशेष महत्व है. - आक के पत्ते
भगवान शिव को आक के पत्ते व फूल दोनों अतिप्रिय हैं. इसलिए मान्यता है कि आक के पत्ते चढ़ाने वाले भक्तों की भोलेबाबा अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं. - धतूरा का फल व पत्ते
धतूरा के फल और पत्ते का भी शिव जी की पूजा में विशेष महत्व है. शिवपुराण में कहा गया है कि शिव की पूजा में धतूरा का फल और फूल अर्पित करने वालों का घर धन और धान्य से भरा रहता है. - दूर्वा
मान्यता है कि दूर्वा में अमृत बसा होता है और इसे शिव जी को चढ़ाने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है.
शिवरात्रि पूजा सामग्री
भगवान शिव की पूजा में उपयोग आने वाली चीजें प्रभु की तरह की सामान्य और सरल हैं। भगवान शिव की पूजा के लिए व्यक्ति को सुगंधित पुष्प, बिल्वपत्र, भांग, धतूरा, गन्ने का रस, शुद्ध देशी घी, दही, शहद, पवित्र नदी का जल, बेर, जौ की बालें, तुलसी दल, गाय का कच्चा दूध, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, इत्र, पंच फल पंच मेवा, मौली जनेऊ, पंच रस, गंध रोली, वस्त्राभूषण रत्न, पंच मिष्ठान्न, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, सोना, दक्षिणा, चांदी, पूजा के बर्तन और आसन आदि।
पुजा विधि
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की विधि विधान से साधना , पुजा एवं महामृत्युंजय मंत्र का जप करके हम अपने जीवन के कष्ट दुख एवं परेशानी को दूर कर सकते हैं ।
नजदीक के शिव मंदिर या घर में करें पुजा
जो व्यक्ति विधि विधान से पूजा नहीं कर सकते हैं वे अपने घर में छोटा मिट्टी , पारद या स्फटिक शिवलिंग स्थापित करके सामान्य पूजन करके रुद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र का ज्यादा से ज्यादा जप कर सकते हैं ।
महामृत्युंजय मंत्र का जप प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में हमेशा करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से जीवन में कष्ट , रोग इत्यादि परेशानी दूर होती है तथा जो भी क्रूर ग्रह जन्म कुंडली में परेशान करते हैं इन से होने वाली परेशानी भी दूर होती है ।
महामृत्युञ्जय मन्त्र – ॥ ॐ ह्रौं जुं सः त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् सः जुं ह्रौं ॐ ॥
महाशिवरात्रि के दिन शिव जी को ऐसे करें प्रसन्न, राशि अनुसार करें महादेव जी की पूजा
मेष राशि:
इस राशि वाले जातक महाशिवरात्रि के दिन शिव जी की गुलाल से पूजा करें और “ॐ ममलेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें, आपको बहुत अधिक लाभ मिलेगा।
वृषभ राशि:
महाशिवरात्रि के दिन इस राशि के लोग शिव जी का दूध से अभिषेक करें और “ॐ नागेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें, सभी कष्टों से मुक्ति मिलेगी।
मिथुन राशि:
महाशिवरात्रि के दिन मिथुन राशि के जातक शिव जी का गंगा जल से अभिषेक करें और इसके साथ ही “ॐ भूतेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें।
कर्क राशि:
इस राशि के जातकों को महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करना चाहिये और महादेव के “द्वादश” नाम का स्मरण करना चाहिये।
सिंह राशि:
इस राशि के जातक महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का शहद से अभिषेक करें और “ॐ नम: शिवाय” मंत्र का जाप करें।
कन्या राशि:
कन्या राशि के जातक महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का जल में दूध मिलाकर अभिषेक करें और “शिव चालीसा” का पाठ करें।
तुला राशि:
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये महादेव का दही से अभिषेक करें और इस दिन “शिवाष्टक” का पाठ करें।
वृश्चिक राशि:
इस राशि के लोग दूध और घी से शिवजी का अभिषेक करें और “ॐ अंगारेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें।
धनु राशि:
महाशिवरात्रि के दिन शिव जी का दूध से अभिषेक करें और “ॐ सोमेश्वरायनम:” मंत्र का जाप करें, सभी इच्छाएं जल्द पूरी होंगी।
मकर राशि:
महाशिवरात्रि के दिन मकर राशि वाले जातक भगवान शिव का गन्ने के रस से अभिषेक करें और साथ ही “शिव सहस्त्रनाम” का पाठ करें।
कुंभ राशि:
इस राशि वाले जातक महाशिवरात्रि के दिन शिव जी का दूध, दही, शक्कर, घी, शहद इन सभी चीजों से अभिषेक करें इसके साथ ही “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।
मीन राशि:
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये महाशिवरात्रि के दिन मौसमी फल के रस से शिव जी का अभिषेक करें, इसके साथ ही “ॐ भामेश्वराय नम:” मंत्र का जाप करें।
साधना प्रारंभ करने से पहले पूजा स्थान में पूजन करने से संबंधित सामग्री अक्षत, अष्टगंध , जल , दूध , दही , शक्कर , घी , शहद , पुष्प , बिल्वपत्र , प्रसाद इत्यादि रख ले । सफेद धारण करें कंबल को मोड़ के लगभग दो-तीन इंच का बैठने के लिए आसन बनाएं एवं ।।
पवित्रीकरण
बायें हाथ में जल लेकर उसे दाये हाथ से ढक कर मंत्र पढे एवं मंत्र पढ़ने के बाद इस जल को दाहिने हाथ से अपने सम्पूर्ण शरीर पर छिड़क ले
॥ ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥
आचमन
मन , वाणि एवं हृदय की शुद्धि के लिए आचमनी द्वारा जल लेकर तीन बार मंत्र के उच्चारण के साथ पिए
( ॐ केशवया नमः , ॐ नारायणाय नमः , ॐ माधवाय नमः )
ॐ हृषीकेशाय नमः ( इस मंत्र को बोलकर हाथ धो ले )
शिखा बंधन
शिखा पर दाहिना हाथ रखकर दैवी शक्ति की स्थापना करें
॥ चिद्रुपिणि महामाये दिव्य तेजः समन्विते , तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजो वृद्धिं कुरुष्व मे ॥
न्यास
संपूर्ण शरीर को साधना के लिये पुष्ट एवं सबल बनाने के लिए प्रत्येक मन्त्र के साथ संबन्धित अंग को दाहिने हाथ से स्पर्श करें
ॐ वाङ्ग में आस्येस्तु – मुख को
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु – नासिका के छिद्रों को
ॐ चक्षुर्में तेजोस्तु – दोनो नेत्रों को
ॐ कर्णयोमें श्रोत्रंमस्तु – दोनो कानो को
ॐ बह्वोर्मे बलमस्तु – दोनो बाजुओं को
ॐ ऊवोर्में ओजोस्तु – दोनों जंघाओ को
ॐ अरिष्टानि मे अङ्गानि सन्तु –- सम्पूर्ण शरीर को
आसन पूजन
अब अपने आसन के नीचे चन्दन से त्रिकोण बनाकर उसपर अक्षत , पुष्प समर्पित करें एवं मन्त्र बोलते हुए हाथ जोडकर प्रार्थना करें
॥ ॐ पृथ्वि त्वया धृतालोका देवि त्वं विष्णुना धृता , त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥
दिग् बन्धन
बायें हाथ में जल या चावल लेकर दाहिने हाथ से चारों दिशाओ में छिड़कें
॥ ॐ अपसर्पन्तु ये भूता ये भूताःभूमि संस्थिताः , ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया , अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम् , सर्वे षामविरोधेन पूजाकर्म समारम्भे ॥
गणेश स्मरण
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः , लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः
धुम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः , द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा , संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते
श्री गुरु ध्यान
अस्थि चर्म युक्त देह को हिं गुरु नहीं कहते अपितु इस देह में जो ज्ञान समाहित है उसे गुरु कहते हैं , इस ज्ञान की प्राप्ति के लिये उन्होने जो तप और त्याग किया है , हम उन्हें नमन करते हैं , गुरु हीं हमें दैहिक , भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने का ज्ञान देतें हैं इसलिये शास्त्रों में गुरु का महत्व सभी देवताओं से ऊँचा माना गया है , ईश्वर से भी पहले गुरु का ध्यान एवं पूजन करना शास्त्र सम्मत कही गई है।
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः
ध्यान मूलं गुरोर्मूर्तिः पूजा मूलं गुरोः पदं मन्त्र मूलं गुरोर्वाक्यं मोक्ष मूलं गुरोः कृपा
॥ श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः प्रार्थनां समर्पयामि , श्री गुरुं मम हृदये आवाहयामि मम हृदये कमलमध्ये स्थापयामि नमः ॥
भगवान शिव जी का ध्यान –
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्जवलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः ध्यानार्थे बिल्वपत्रं समर्पयामि
आवाहन –
॥ आगच्छन्तु सुरश्रेष्ठा भवन्त्वत्र स्थिराः समे यावत् पूजां करिष्यामि तावत् तिष्ठन्तु सन्निधौ
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , आवाहनार्थे पुष्पं समर्पयामि ।
आसन –
॥ अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम् कार्तस्वरमयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , आसनार्थे बिवपत्राणि समर्पयामि ।
स्नान
॥ मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः पाद्यं , अर्ध्यं , आचमनीयं च स्नानं समर्पयामि , पुनः आचमनीयं जलं समर्पयामि । (पांच आचमनि जल प्लेटे मे चदायें )
दुग्धस्नान
॥ काम्धेनुसमुभ्दूतं सर्वेषां जीवनं परम् पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानाय गृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , पयः स्नानं समर्पयामि , पयः स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि , शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
दधिस्नान
॥ पयसस्तु समुभ्दूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं पतिगृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , दधि स्नानं समर्पयामि , दधि स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि , शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
घृतस्नान
॥ नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम् घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं पतिगृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , घृतस्नानं समर्पयामि , घृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि , शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
मधुस्नान
॥ पुष्परेणुसमुत्पन्नं सुस्वादु मधुरं मधु तेजःपुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं पतिगृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , मधुस्नानं समर्पयामि , मधुस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि , शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
शर्करास्नान
॥ इक्षुसारसमुभ्दूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम् मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं पतिगृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , शर्करास्नानं समर्पयामि , शर्करास्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि , शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
पञ्चामृतस्नान
॥ पयो दधि घृतं चैव मधु च शर्करान्वितम् पञ्चामृतं मयाऽऽनीतं स्नानार्थं पतिगृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि , पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि , शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
गन्धोदकस्नान
॥ मलयाचलसम्भूतचन्दनेन विमिश्रितम् इदं गन्धोकस्नानं कुङ्कुमाक्तं नु गृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , गन्धोदकस्नानं समर्पयामि , गन्धोदकस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि , शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
शुद्धोदकस्नान
॥ शुद्धं यत् सलिलं दिव्यं गङ्गाजलसमं स्मृतम् समर्पितं मया भक्त्या शुद्धस्नानाय गृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
अभिषेक
शुद्ध जल एवं दुध से अभिषेक करे
यदि आप पढ़ सकते हैं तो ( रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करें ( पांचवे अध्याय के 16 मंत्र )
या ॥ ॐ नमः शिवाय ॥ मंत्र बोलकर दूध एवं जल मिलकर उससे अभिषेक करें ।
ॐ उमामहेश्वराभ्यां नम: अभिषेकं समर्पयामि ।
शांति पाठ –
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गूं) शांति: पृथिवी शान्तिराप: शांतिरोषधय: शांति: । वनस्पतय: शांतिर्विश्वे देवा: शांतिर्ब्रह्मा शांति: सर्व (गूं) शांति: शांतिरेव शांति: सा मा शांतिरेधि ।
वस्त्र
॥ सर्वभुषादिके सौम्ये लोके लज्जानिवारणे , मयोपपादिते तुभ्यं गृह्यतां वसिसे शुभे ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि , आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
यज्ञोपवीत
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ॥
यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवितेनोपनह्यामि ।
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् ।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , यज्ञोपवीतं समर्पयामि , यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
चन्दन
॥ ॐ श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरं , विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , चन्दनं समर्पयामि ।
अक्षत
॥ अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः , मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , अक्षतान् समर्पयामि ।
पुष्प
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः , मयाऽऽ ह्रतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यतां ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , पुष्पं समर्पयामि ।
बिल्वपत्र
॥ त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , बिल्वपत्रं समर्पयामि
दुर्वा
॥ दूर्वाङ्कुरान सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान् आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण परमेश्वर ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि
धूप
॥ वनस्पति रसोद् भूतो गन्धाढयो सुमनोहरः , आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , धूपं आघ्रापयामि ।
दीप
॥ साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया , दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , दीपं दर्शयामि ।
नैवैद्य
॥ शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च , आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवैद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , नैवैद्यं निवेदयामि नानाऋतुफलानि च समर्पयामि , आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
ताम्बूल
॥ पूगीफलं महद्दिव्यम् नागवल्लीदलैर्युतम् एलालवङ्ग संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , ताम्बूलं समर्पयामि ।
दक्षिण
॥ हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , कृतायाः पूजायाः सद् गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि ।
आरती
॥ कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् , आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मां वरदो भव ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , आरार्तिकं समर्पयामि ।
मन्त्रपुष्पाञ्जलि
॥ नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद् भवानि च पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहान परमेश्वर ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , मन्त्रपुष्पाञ्जलिम् समर्पयामि ।
प्रदक्षिणा
॥ यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च , तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , प्रदक्षिणां समर्पयामि ।
नमस्कार
॥ नमः सर्वहितार्थाय जगदाधारहेतवे साष्टाङ्गोऽयं प्रणामस्ते प्रयत्नेन मया कृतः ॥
भगवते श्री साम्बसदाशिवाय नमः , नमस्कारान समर्पयामि ।
अब रुद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र का जप अपनी सुविधानुसार करें ।
जप समर्पण
( दाहिने हाथ में जल लेकर मंत्र बोलें एवं जमीन पर छोड़ दें )
॥ ॐ गुह्यातिगुह्य गोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं ,
सिद्धिर्भवतु मं देव त्वत् प्रसादान्महेश्वर ॥
क्षमा याचना
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन ,यत्युजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् , पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम , तस्मात् कारुण्यभावेन रक्ष मां परमेश्वर
( इन मन्त्रों का श्रद्धापूर्वक उच्चारण कर अपनी विवस्ता एवं त्रुटियों के लिये क्षमा – याचना करें )
ना तो मैं आवाहन करना जानता हूँ , ना विसर्जन करना जानता हूँ और ना पूजा करना हीं जानता हूँ । हे परमात्मा क्षमा करें । हे परमात्मा मैंने जो मंत्रहीन , क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है , वह सब आपकी दया से पूर्ण हो ।
ॐ तत्सद् ब्रह्मार्पणमस्तु
शिवाय नमः विष्णवे नमः
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद