शाहबेरी में बीते दिनों फर्नीचर की दुकान में लगी आग के बाद एक बार फिर से गौतम बुध नगर पुलिस और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। सवाल यह है कि महज 2 साल पहले हुए हादसे में 9 लोगों के मरने के बावजूद शाहबेरी और बिसरख गांव में अवैध सोसाइटी आ कालोनियां और दुकानें कैसे बन रही है।
आखिर वह क्या वजह है कि पुलिस और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी दोनों ने ही इनको लेकर आंखें मूंद ली है। जानकारों की मानें तो हिंडन नदी के पास डूब एरिया में अवैध तरीकों से कालोनी काटी जा रही हैं ग्रेटर नोएडा वेस्ट में शाहबेरी रोजा जलालपुर याकूबपुर जैसे गांव में अवैध तरीके से तमाम कॉलोनियां बनाई जा रही है बिल्डर गांव में सस्ते में जमीन खरीद कर सोसायटी की तरह फ्लैट बना दे रहे हैं इन अवैध सोसाइटी का कोई यूपी रेरा नंबर नहीं है इनमें क्वालिटी कंट्रोल को लेकर कोई मानक नहीं है ऐसे में किसी बड़े हादसे के इंतजार में पुलिस और प्रशासन किस लिए आंखें बंद करके बैठा है यह समझ से परे है
जानकारों की माने तो ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी और पुलिस प्रशासन बस शहर की कुछ बायर एसोसिएशन द्वारा की जा रही वाह वाही से खुश हो जाते हैं और ऐसी समस्याओं पर ध्यान देना बंद कर देते हैं ऐसे में जब कोई हादसा हो जाता है तो ये लोग आपस में एक दूसरे के खिलाफ खड़े होकर आरोप लगाकर जनता को कुछ दिन बेवकूफ बना लेते हैं
गांव में बनने वाली दुकानों से हो रहा है बिल्डर्स की दुकानों में पैसा लगाने वाले लोगों का नुकसान
एनसीआर खबर को ग्रेटर नोएडा वेस्ट की सोसायटी ओं में बनी दुकानों में पैसा लगाने वाले तमाम लोगों ने बताया कि गांव में बनने वाली ऐसी दुकानों से इन्वेस्टर्स को भी काफी नुकसान हो रहा है क्योंकि इन दुकानों के लिए हैं कोई मानक कोई स्टैंडर्ड तय नहीं है ऐसे में इनका किराया सामान्य किराए के मुकाबले बहुत कम है जिसके कारण लगभग सभी सोसाइटी ओं में बनी दुकानें खाली रहती हैं और अगर उनको कोई ले लेता है तो गांव की दुकानों के सस्ते किराए को देखकर वह छोड़ कर चला जाता है वही इस मामले का एक पहलू यह भी है कि बिल्डर ने इन्वेस्टर्स को इतने बड़े सपने दिखा कर यह दुकाने बेची हैं कि इतना महंगा किराया मिलना संभव नहीं होता है ऐसे में दुकानदार भी सस्ते या फिर वाजिब किराए के लिए गांव में बनी दुकानों में चला जाता है लेकिन इस समय ग्रेटर नोएडा वेस्ट में सोसाइटी ओके समानांतर एक और एक और इकान्मी डिवेलप हो गई है जहां लोग से ज्यादा सामान खरीदने जाते हैं
अथार्टी के अधिकारियों पर है तमाम आरोप
बीते दिनों किसानों की जमीन को लेकर लीजबैक मामले में एसआईटी की रिपोर्ट पर भी तमाम सवाल उठे थे जिसके बाद एसआईटी की सिफारिशों को लेकर ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने कहा था कि लोगों के 5 परसेंट में मिलने वाले प्लॉट कैंसिल नहीं किए जाएंगे। ऐसे में सवाल यह है कि एसआईटी रिपोर्ट में किन लोगों ने अथॉरिटी के अधिकारियों को या ऐसे गलत लोगों को बचाने की कोशिश की थी जिसको किसानों के दबाव में वापस लेने का आश्वासन देना पड़ा