main newsएनसीआरघर-परिवारलाइफस्टाइल

दीपावली लक्ष्मी गणेश पूजा का शुभ मुहूर्त, कथा और कहानियां जानिये रविश राय गौड़ से

दीपावली प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्णपक्ष अमावस्या को हर्षोल्लास के साथ लक्ष्मी पूजन करके न केवल हमारे देश में, बल्कि विदेशों में भी मनाई जाती है। इस दिन भगवन श्री राम रावण का वध कर लंका विजय प्राप्त करके अयोध्या लोटे थे। इसी दिन भगवन विष्णु ने दैत्यराज बलि की कैद से लक्ष्मी सहित अन्य देवताओं को छुड़वाया था। 

उनका सारा धन-धन्य, राजपथ एवं वैभव लक्ष्मी जी की कृपा से ही पुनः परिपूर्ण हुआ था, इसलिए दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है। लक्ष्मी भोग की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी सिद्धि से ही जीवन में भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं। जहाँ लक्ष्मी का वास होता है, वहां सुख-समृद्धि एवं आनंद मिलता है। 

दीपावली की अमावस्या से पितरों की रात आरम्भ होती है, इसलिए इस दिन आकाशदीप जलाने की प्रथा है। ताकि पितर मार्ग से भटक न जाएं। वैश्य अर्थात व्यापारी अपने बही खाते भी दीपावली के दिन ही बदलकर नए बनाते हैं।

इस साल 14 नवंबर शनिवार को दीपावली है। धार्मिक दृष्टि से दीपावली के दिन धन और वैभव की देवी मां लक्ष्मी और विघ्नहर्ता गणेश महाराज की आराधना की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माँ श्रीमहालक्ष्मी कार्तिक अमावस्या को मध्यरात्रि के समय अपने भक्तों के घर जा-जाकर उन्हें धन-धान्य से सुखी रहने का आशीर्वाद देती हैं। 

दीपावली को दीप उत्सव भी कहा जाता है। क्योंकि दीपावली का मतलब होता है दीपों की अवली यानि पंक्ति। दिवाली का त्यौहार अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन राशि के अनुसार कुछ उपाय करने से जीवन में धन-वैभव, सुख और संपन्नता आती है।

दीपावली का आर्थिक महत्व

दीपावली का त्यौहार भारत में एक प्रमुख खरीदारी की अवधि का प्रतीक है। उपभोक्ता खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीपावली, पश्चिम में क्रिसमस के बराबर है। यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार, सोने और अन्य बड़ी ख़रीददारी का समय होता है। इस त्योहार पर खर्च और ख़रीद को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को, धन, समृद्धि, और निवेश की देवी माना जाता है। दीपावली भारत में सोने और गहने की ख़रीद का सबसे बड़ा पर्व है। मिठाई की ख़रीद भी इस दौरान अपने चरम सीमा पर रहती है।

कब मनाई जाती है दीपावली ?

कार्तिक मास में अमावस्या के दिन प्रदोष काल होने पर दीपावली मनाने का विधान है। यदि दो दिन तक अमावस्या तिथि प्रदोष काल का स्पर्श न करे तो दूसरे दिन दिवाली मनाने का विधान है। यह मत सबसे ज्यादा प्रचलित और मान्य है।
अगर दो दिन तक अमावस्या तिथि, प्रदोष काल में नहीं आती है, तो ऐसी स्थिति में पहले दिन दिवाली मनाई जानी चाहिए।
यदि अमावस्या तिथि का विलोपन हो जाए, यानी कि अगर अमावस्या तिथि ही न पड़े और चतुर्दशी के बाद सीधे प्रतिपदा आरम्भ हो जाए, तो ऐसे में पहले दिन चतुर्दशी तिथि को ही दिवाली मनाने का विधान है।

दीपावली पर लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त –

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त : 17 बजकर :31 मिनट से 19 बजकर 26 मिनट तक,
अवधि : 1 घंटे 55 मिनट
प्रदोष काल : 17:27:41 से 20:06:58 तक
वृषभ काल : 17:30:04 से 19:25:54 तक

दिवाली महानिशीथ काल मुहूर्त

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त : 23:39:20 से 24:32:26 तक
अवधि : 0 घंटे 53 मिनट
महानिशीथ काल : 23:39:20 से 24:32:26 तक
सिंह काल : 24:01:35 से 26:19:15 तक

दिवाली शुभ चौघड़िया मुहूर्त

अपराह्न मुहूर्त्त (लाभ, अमृत):14:20:25 से 16:07:08 तक
सायंकाल मुहूर्त्त (लाभ): 17:27:41 से 19:07:14 तक
रात्रि मुहूर्त्त (शुभ, अमृत, चल): 20:46:47 से 25:45:26 तक
उषाकाल मुहूर्त्त (लाभ): 29:04:32 से 30:44:04 तक

दीपावली पर लक्ष्मी पूजा कब करनी चाहिए –

माता लक्ष्मी का पूजन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) में किया जाना चाहिए। प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न में पूजन करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दौरान जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशि लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए। क्योंकि ये चारों राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। मान्यता है कि अगर स्थिर लग्न के समय पूजा की जाये तो माता लक्ष्मी अंश रूप में घर में ठहर जाती है।

महानिशीथ काल के दौरान भी पूजन का महत्व है लेकिन यह समय तांत्रिक, पंडित और साधकों के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है। इस काल में मां काली की पूजा का विधान है। इसके अलावा वे लोग भी इस समय में पूजन कर सकते हैं, जो महानिशिथ काल के बारे में समझ रखते हों।

दीपावली पर लक्ष्मी पूजा की विधि

दीपावली पर लक्ष्मी पूजा का विशेष विधान है। इस दिन संध्या और रात्रि के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, विघ्नहर्ता भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा और आराधना की जाती है। पुराणों के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक पर आती हैं और हर घर में विचरण करती हैं। 

इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वच्छ और प्रकाशवान हो, वहां वे अंश रूप में ठहर जाती हैं इसलिए दिवाली पर साफ-सफाई करके विधि विधान से पूजन करने से माता महालक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ कुबेर पूजा भी की जाती है। पूजन के दौरान इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन से पहले घर की साफ-सफाई करें और पूरे घर में वातावरण की शुद्धि और पवित्रता के लिए गंगाजल का छिड़काव करें। साथ ही घर के द्वार पर रंगोली और दीयों की एक शृंखला बनाएं।

पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें।

माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं और दीपक जलाकर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल आदि अर्पित करें और माता महालक्ष्मी की स्तुति करें।

इसके साथ देवी सरस्वती, मां काली, भगवान विष्णु और कुबेर देव की भी विधि विधान से पूजा करें।
महालक्ष्मी पूजन के बाद तिजोरी, बहीखाते और व्यापारिक उपकरण की पूजा करें।

महालक्ष्मी पूजन पूरे परिवार को एकत्रित होकर करना चाहिए। पूजन के बाद श्रद्धा अनुसार ज़रुरतमंद लोगों को मिठाई और दक्षिणा दें।

दीपावली पर विशेष –

  • दीपावली के दिन प्रात:काल शरीर पर तेल की मालिश के बाद स्नान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से धन की हानि नहीं होती है।
  • दीपावली के दिन वृद्धजन और बच्चों को छोड़कर् अन्य व्यक्तियों को भोजन नहीं करना चाहिए। शाम को महालक्ष्मी पूजन के बाद ही भोजन ग्रहण करें।
  • दीपावली पर पूर्वजों का पूजन करें और धूप व भोग अर्पित करें। प्रदोष काल के समय हाथ में उल्का धारण कर पितरों को मार्ग दिखाएं। यहां उल्का से तात्पर्य है कि दीपक जलाकर या अन्य माध्यम से अग्नि की रोशनी में पितरों को मार्ग दिखायें। ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • दीपावली से पहले मध्य रात्रि को स्त्री-पुरुषों को गीत, भजन और घर में उत्सव मनाना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में व्याप्त दरिद्रता दूर होती है।

दीपावली का ज्योतिषीय महत्व-

हिंदू धर्म में हर त्यौहार का ज्योतिषीय महत्व होता है। माना जाता है कि विभिन्न पर्व और त्यौहारों पर ग्रहों की दिशा और विशेष योग मानव समुदाय के लिए शुभ फलदायी होते हैं। हिंदू समाज में दीपावली का समय किसी भी कार्य के शुभारंभ और किसी वस्तु की खरीदी के लिए बेहद शुभ माना जाता है। इस विचार के पीछे ज्योतिष महत्व है। 

दरअसल दीपावली के आसपास सूर्य और चंद्रमा तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में स्थित होते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्रमा की यह स्थिति शुभ और उत्तम फल देने वाली होती है। तुला एक संतुलित भाव रखने वाली राशि है। यह राशि न्याय और अपक्षपात का प्रतिनिधित्व करती है। तुला राशि के स्वामी शुक्र जो कि स्वयं सौहार्द, भाईचारे, आपसी सद्भाव और सम्मान के कारक हैं। 
इन गुणों की वजह से सूर्य और चंद्रमा दोनों का तुला राशि में स्थित होना एक सुखद व शुभ संयोग होता है। दीपावली का आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों रूप से विशेष महत्व है। हिंदू दर्शन शास्त्र में दीपावली को आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जित का उत्सव कहा गया है।

क्यों होता है मां लक्ष्मी के साथ गणेश का पूजन

एक बार देवी लक्ष्मी में अपने धन और शक्तियों को लेकर अहंकार भाव आ गया। अपने पति, भगवान विष्णु के साथ वार्तालाप करते समय, वह खुद की प्रशंसा करती रही, और दावा किया कि वह ही केवल पूजा के योग्य है। क्योंकि वे धन और संपत्ति का आशीर्वाद सभी आराध्यों को देती है। इस प्रकार बिना रुके आत्म प्रशंसा सुनने पर, भगवान विष्णु ने उनके अहंकार को दूर करने का फैसला किया। बहुत शांति से, भगवान विष्णु ने कहा कि सभी गुणों के होने के बावजूद, एक महिला अधूरी रह जाती है अगर वह बच्चों की जननी नहीं है।मातृत्व परम आनंद है जिसे एक महिला अनुभव कर सकती है और चूंकि लक्ष्मी जी के बच्चे नहीं थे, इसलिए उन्हें पूरा नहीं माना जा सकता था। यह सुनकर देवी लक्ष्मी अत्यंत निराश हुईं। भारी मन से देवी लक्ष्मी देवी पार्वती के पास मदद मांगने गई। चूँकि पार्वती के दो पुत्र थे, इसलिए उन्होंने देवी से अनुरोध किया कि वह उन्हें मातृत्व के आनंद का अनुभव करने के लिए अपने एक पुत्र को गोद लेने दें। पार्वती जी लक्ष्मी जी को अपने बेटे को गोद देने  के लिए अनिच्छुक थी ।क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि लक्ष्मी जी लंबे समय तक एक स्थान पर नहीं रहती है। इसलिए, वह अपने बेटे की देखभाल नहीं कर पाएगी। लेकिन लक्ष्मी ने उसे विश्वास दिलाया कि वह हर संभव तरीके से उनके बेटे की देखभाल करेगी और उसे सभी खुशियों से नवाजेंगी। लक्ष्मी के भाव को समझते हुए, देवी पार्वती ने उन्हें अपने पुत्र के रूप में गणेश को अपनाने दिया। देवी लक्ष्मी प्रसन्न हो गईं और कहा कि जो भी आराधक मेरे साथ गणेश का पूजन करेगा, मैं उसे अपनी सभी सिद्धियों और समृद्धि दूँगी। इसलिए तभी से धन के लिए लक्ष्मी की पूजा करने वालों को सबसे पहले गणेश की पूजा करनी चाहिए। जो लोग बिना गणेश के लक्ष्मी की पूजा करेंगे उन्हें देवी की कृपा पूर्ण रुप से नहीं मिलती है, इसलिए दिवाली पर हमेशा गणेश के साथ-साथ लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। साथ ही यह भी माना जाता है कि बिना बुद्धि के धन पाने से धन का दुरुपयोग ही होगा। इसलिए, सबसे पहले धन को सही तरीके से खर्च करने के लिए बुद्धि प्राप्त करनी चाहिए।बुद्धि प्राप्ति के लिए श्रीगणेश जी की पूजा कर उनसे सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है और इसके पश्चात श्री लक्ष्मी जी का शास्त्रोंसम्मत विधि से पूजन करना चाहिए।

रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक
9926910965

एन सी आर खबर ब्यूरो

हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I अपना सूक्ष्म सहयोग आप हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : 9654531723@paytm के जरिये दे सकते है एनसीआर खबर.कॉम दिल्ली एनसीआर का प्रतिष्ठित और नं.1 हिंदी समाचार वेब साइट है। एनसीआर खबर.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय,सुझाव और ख़बरें हमें mynews.ncrkhabar@gmail.com पर भेज सकते हैं या 09654531723 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं

Related Articles

Back to top button