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शुभ महालय : इस बार पितृपक्ष समाप्त होते ही अगले दिन से नवरात्रि शुरू क्यूँ नहीं

आज महालय है यानी पितृ पक्ष का अंतिम दिन I आज सर्व पितृ दिवस भी है और आज के बाद अगले दिन से नवरात्रि शुरू हो जाती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं है जानिये क्यूँ ?
165 वर्ष बाद बनरहा है दुर्लभ सयोंग,59 दिन का होगा अश्विन मास, सभी शुभ कार्यों पर लग जावेगी रोक,

ये दिन विशेष

सर्वार्थसिद्धि योग : 21, 26 सितंबर और अक्तूबर में 1, 2, 4, 6, 7, 9, 11 को है। ये दिन सफलतादायक हैं।

द्विपुष्कर योग : इसमें दोगुना फल मिलता है। यह योग 19 और 27 सितंबर को रहेगा।

अमृतसिद्धि योग : इसे दीर्घकालीन कार्यों के लिए उत्तम माना गया है। यह 2 अक्तूबर को पड़ेगा।

रविपुष्य योग : इसमें कुछ नये काम आरंभ कर सकते हैं। यह 11 अक्तूबर को होगा।

पितृपक्ष चल रहा है औरक हर साल पितृपक्ष समाप्त होते ही अगले दिन से नवरात्रि शुरू हो जाती है पर इस बार ऐसा नहीं हो रहा है। इस बार पितृपक्ष समाप्त होने के एक महीने बाद नवरात्र शुरू होगा क्योंकि पितृपक्ष के तुरंत बाद इस बार अधिकमास शुरू हो जाएगा। अधिकमास को पुरुषोत्तम मास व मलमास भी कहा जाता है। 

कब से शुरू हो रहा है अधिकमास
अधिकमास 18 सितंबर से शुरू होगा जो 16 अक्टूबर तक चलेगा। इसी वजह से एक महीने बाद शुरू होगी नवरात्रि। 
मलमास में में भगवान विष्णु की पूजा होती है। मलमास में शादी विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि जैसे शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। शुभ कार्यों को मलमास में निषेध माना गया है।
आखिर क्यों और कैसे आता है अधिक मास  
पंचांग के अनुसार मलमास या अधिक मास का आधार सूर्य और चंद्रमा की चाल से है। सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है। चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। इन दोनों वर्षों के बीच 11 दिनों का अंतर होता है। यही अंतर तीन साल में एक महीने के बराबर होता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास आता है। इसी को मलमास या अधिक मास कहा जाता है।

अधिक मास में क्या करें 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अधिक मास में भगवान का स्मरण करना चाहिए। अधिक मास में किए गए दान आदि का कई गुणा पुण्य प्राप्त होता है। इस मास को आत्म की शुद्धि से भी जोड़कर देखा जाता है। अधिक मास में व्यक्ति को मन की शुद्धि के लिए भी प्रयास करने चाहिए। आत्म चिंतन करते मानव कल्याण की दिशा में विचार करने चाहिए। सृष्टि का आभार व्यक्त करते हुए अपने पूर्वजों का धन्यवाद करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सकारात्मकता को बढ़ावा मिलता है।

पितृपक्ष के अगले दिन 18 सितंबर से अधिक मास शुरू हो रहा है। शास्त्रों में इसे भगवान पुरुषोत्तम का महीना बताया गया है। इसलिए इस महीने में धर्म-कर्म का विशेष महत्व माना गया है। इसे मलमास भी कहा गया है, इसलिए इस दौरान मुंडन, विवाह जैसे कार्य निषेध माने जाते हैं। लेकिन, ऐसा नहीं है कि मलमास में कोई शुभ काम हो ही नहीं सकता। विवाह की बातचीत, विवाह की मौखिक सहमति, पहले से आरंभ किए गये कार्यों का समापन, प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री, वाहन की बुकिंग, बयाना, सरकारी कार्य, शिक्षा के लिए दाखिला जैसे काम किये जा सकते हैं। वैसे भी मलमास उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में शुरू हो रहा है, जो शुभ है। आगामी 16 अक्तूबर तक चलने वाले इस मलमास के दौरान 9 दिन सर्वार्थसिद्धि योग, 2 दिन द्विपुष्कर योग, एक दिन अमृतसिद्धि और रविपुष्य योग भी रहेगा। इस दौरान कई शुभ कार्य कर सकते हैं।


ये कार्य न करें


मलमास के दौरान घर, कार इत्यादि नहीं खरीदना चाहिये। घर का निर्माण कार्य शुरू न करें और न ही उससे संबंधित कोई समान खरीदें। विवाह, गृह-प्रवेश, सगाई, मुंडन जैसे शुभ कार्य न करें। नये कार्य की शुरुआत भी नहीं करनी चाहिये।

अधिक मास का असर नवरात्रि पर 
अश्विन मास में मलमास लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना। ऐसा संयोग करीब 165 साल बाद होगा। इस साल दो आश्विन मास होंगे। आश्विन मास में श्राद्घ और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार होते हैं। अधिकमास के कारण दशहरा 26 अक्टूबर और दीपावली 14 नवंबर को मनाई जाएगी। 
इस बार चातुर्मास है पांच महीने का
चातुर्मास हमेशा चार महीने का होता है लेकिन इस बार अधिकमास के कारण चातुर्मास पांच महीने का है। लीप ईयर होने के कारण ही ऐसा हुआ है और खास बात ये है कि 165 साल बाद लीप ईयर और अधिकमास दोनों ही एक साल में आए हैं। चातुर्मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। केवल धार्मिक कार्य से जुड़े कार्य ही किए जा सकते हैं।

नवरात्र प्रारंभ 17 अक्टूबर से

17 अक्टूबर को मां शैलपुत्री पूजा घटस्थापना, 18 अक्टूबर को मां ब्रह्मचारिणी पूजा, 19 अक्टूबर को मांचंद्रघंटा पूजा, 20 अक्टूबर को मां कुष्मांडा पूजा, 21 अक्टूबर को मां स्कंदमाता पूजा, 22 अक्टूबर षष्ठी मां कात्यायनी पूजा, 23 अक्टूबर को मां कालरात्रि पूजा, 24 अक्टूबर को मां महागौरी दुर्गा, महा नवमी पूजा दुर्गा महा अष्टमी पूजा, 25 अक्टूबर को मां सिद्घिदात्री नवरात्रि पारणा विजय दशमी, 26 अक्टूबर को दुर्गा विसर्जन किया जाएगा।

जिस चन्द्रमास में सूर्य की संक्रान्ति नही होती है वह मास अधिमास कहलाता है। दूसरे अर्थ में यदि चन्द्रमास के दोनों ही पक्षों में सूर्य किसी भी राशि में प्रवेश नहीं करता यानि संक्रमण नहीं करता है। तब वह संक्रमण रहित मास वर्ष की मास गणना में अधिक हो जाता है। लोकभाषा में इसे अधिकमास, मलमास या पुरूषोत्तम कहा जाता है। इस वर्ष अधिक मास 17 जून से प्रारंभ हो रहा है। प्रत्येक राशि,नक्षत्र,करण व चैत्रादि बारह मासों के सभी के स्वामी है,परन्तु मलमास का कोई स्वामी नही है। इसलिए देव कार्य,शुभ कार्य एवं पितृ कार्य इस मास में वर्जित माने गये है।

मैं ऐसा अभागा हूं जिसका न कोई नाम है, न स्वामी, न धर्म तथा न ही कोई आश्रम है. इसलिए हे स्वामी, मैं अब मरना चाहता हूं.’ऐसा कहकर वह शान्त हो गया.तब भगवान विष्णु मलमास को लेकर गोलोक धाम गए।
वहां भगवान श्रीकृष्ण मोरपंख का मुकुट व वैजयंती माला धारण कर स्वर्णजड़ित आसन पर बैठे थे। गोपियों से घिरे हुए थे। भगवान विष्णु ने मलमास को श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक करवाया व कहा कि यह मलमास वेद-शास्त्र के अनुसार पुण्य कर्मों के लिए अयोग्य माना गया है इसीलिए सभी इसकी निंदा करते हैं।

तब श्रीकृष्ण ने कहा, हे हरि! आप इसका हाथ पकड़कर यहां लाए हो. जिसे आपने स्वीकार किया उसे मैंने भी स्वीकार कर लिया है। इसे मैं अपने ही समान करूंगा तथा गुण, कीर्ति, ऐश्वर्य, पराक्रम, भक्तों को वरदान आदि मेरे समान सभी गुण इसमें होंगे। मेरे अन्दर जितने भी सदॄगुण है, उन सभी को मैं मलमास में तुम्हे सौंप रहा हूं मैं इसे अपना नाम ‘पुरुषोत्तम’ देता हूं और यह इसी नाम से विख्यात होगा।
यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा। कि अब से कोई भी मलमास की निंदा नहीं करेगा। मैं इस मास का स्वामी बन गया हूं। जिस परमधाम गोलोक को पाने के लिए ऋषि तपस्या करते हैं वही दुर्लभ पद पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान व दान करने वाले को सरलता से प्राप्त हो जाएंगे। इस प्रकार मल मास पुरुषोत्तम मास के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा। अब यह जगत को पूज्य व नमस्कार करने योग्य होगा. यह इसे पूजने वालों के दु:ख-दरिद्रता का नाश करेगा। यह मेरे समान ही मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करेगा। जो कोई इच्छा रहित या इच्छा वाला इसे पूजेगा वह अपने किए कर्मों को भस्म करके नि:संशय मुझ को प्राप्त होगा।
सब साधनों में श्रेष्ठ तथा सब काम व अर्थ का देने वाला यह पुरुषोत्तम मास स्वाध्याय योग्य होगा। इस मास में किया गया पुण्य कोटि गुणा होगा। जो भी मनुष्य मेरे प्रिय मलमास का तिरस्कार करेंगे और जो धर्म का आचरण नहीं करेंगे, वे सदैव नरक के गामी होंगे। अत: इस मास में स्नान, दान, पूजा आदि का विशेष महत्व होगा।
इसलिए हे रमापते! आप पुरुषोत्तम मास को लेकर बैकुण्ठ को जाओ। इस प्रकार बैकुण्ठ में स्थित होकर वह अत्यन्त आनन्द करने लगा तथा भगवान के साथ विभिन्न क्रीड़ाओं में मग्न हो गया। इस प्रकार श्री कृष्ण ने मन से प्रसन्न होकर मलमास को बारह मासों में श्रेष्ठ बना दिया तथा वह सभी का पूजनीय बन गया। अत: श्री कृष्ण से वर पाकर इस भूतल पर वह पुरुषोत्तम नाम से विख्यात हुआ।
इस मास में केवल ईश्वर के निमित्त व्रत, दान, हवन, पूजा, ध्यान आदि करने का विधान है। ऐसा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और पुण्य प्राप्त होता है। भागवत पुराण के अनुसार इस मास किए गए सभी शुभ कार्यों का फल प्राप्त होता है। इस माह में भागवत कथा श्रवण, राधा कृष्ण की पूजा और तीर्थ स्थलों पर स्नान और दान का महत्व है।
इस दिन ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र या गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र का नियमित जप करना चाहिए। इस मास में श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, पुरुषसूक्त, श्रीसूक्त, हरिवंश पुराण और एकादशी महात्म्य कथाओं के श्रवण से सभी मनोरथ पूरे होते हैं। इस मास में शुभ कार्य, मांगलिक कार्य का आरंभ नहीं करना चाहिये केवल धार्मिक कार्यों को करना चाहिए। निष्काम भाव बहुत जरुरी है।

अधिक माह में कुछ विशेष कार्यों पर पूरी तरह पाबंदी लग जाती है. इस माह में प्रथम तीर्थ दर्शन, राज्याभिषेक, गृहप्रवेश, गृहारंभ, शादी-विवाह, प्रतिष्ठा आदि कार्य वर्जित होते हैं. पुरुषोत्तम मास भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है.
साथ ही अधिक मास के 33 देवताओं की पूजा का भी बड़ा महत्व होता है. इस दौरान विष्णु, जिष्णु, महाविष्णु, हरि, कृष्ण, भधोक्षज, केशव, माधव, राम, अच्युत, पुरुषोत्तम, गोविंद, वामन, श्रीश, श्रीकांत, नारायण, मधुरिपु, अनिरुद्ध, त्रीविक्रम, वासुदेव, यगत्योनि, अनन्त, विश्वाक्षिभूणम्, शेषशायिन, संकर्षण, प्रद्युम्न, दैत्यारि, विश्वतोमुख, जनार्दन, धरावास, दामोदर, मघार्दन एवं श्रीपति जी की पूजा से बड़ा लाभ होता है.

मंत्र :
गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।।

कृष्ण पक्ष का दान

(1) घी से भरा चांदी का दीपक (2) सोना या कांसे का पात्र (3) कच्चे चने (4) खारेक (5) गुड़, तुवर दाल (6) लाल चंदन (7) मीठा रंग (8) कपुर, केवड़े की अगरबत्ती (9) केसर (10) कस्तूरी (11) गोरेचन (12) शंख (13) गरूड़ घं टी (14) मोती या मोती की माला (15) हीरा या पन्ना का नग

शुक्ल पक्ष का दान

(1) माल पुआ (2) खीर भरा पात्र (3) दही (4) सूती वस्त्र (5) रेशमी वस्त्र (6) ऊनी वस्त्र (7) घी (8) तिल गुड़ (9) चावल (10) गेहूं (11) दूध (12) कच्ची खिचड़ी (13 ) शक्कर व शहद (14) तांबे का पात्र (15)  चांदी का नन्दीगण।

रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिंतक

एन सी आर खबर ब्यूरो

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