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रविशराय गौड़ से जानिये श्रावण मास की महिमा,वैदिक पौराणिक महत्व श्रावण मास में कैसे करें शिव आराधना

6 जुलाई दिन सोमवार उत्तराषाढ़ा नक्षत्र वैधृति योग मे श्रवण मास की शुरुआत हो रही है इस बार श्रावण मास 29 दिनों का होगा एवं पांच सोमवार होंगे। विशेष बात यह है कि इस बार श्रवण मास सोमवार से शुरू होकर सोमवार को ही खत्म होगा। सावन का महीना शिव के साथ-साथ माता पार्वती को भी समर्पित है। इस महीने में जो भक्त सच्चे मन से शिव परिवार की पूजा एवं व्रत करता है उनकी सभी मनोकामना भगवान शिव पूरी कर देते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं।

व्रत का दिन और तारीख:-

  • पहला सावन सोमवार व्रत:-  सोमवार- 06 जुलाई, 2020
  • दूसरा सावन सोमवार व्रत:-  सोमवार- 13 जुलाई, 2020
  • तीसरा सावन सोमवार व्रत:–  सोमवार- 20 जुलाई, 2020
  • चौथा सावन सोमवार व्रत:-   सोमवार- 27 जुलाई, 2020
  • अंतिम सावन सोमवार व्रत;-  सोमवार- 03 अगस्त, 2020

18 जुलाई को शनि प्रदोष व्रत रहेगा। यह व्रत कृष्ण पक्ष के श्रवण मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाएगा। 

आईये शिवाराधना में प्रवेश करते हैं

अथर्ववेद के स्तोत्र में एक स्तम्भ की प्रशंसा की गई है, संभवतः इसी से शिवलिंग की पूजा शुरू हुई हो। अथर्ववेद के स्तोत्र में अनादि और अनंत स्तंभ का विवरण दिया गया है और यह कहा गया है कि वह साक्षात् ब्रह्म है (यहाँ भगवान ब्रह्मा की बात नहीं हो रही है)। स्तम्भ की जगह शिवलिंग ने ले ली है।

 लिङ्ग पुराण में अथर्ववेद के इस स्तोत्र का कहानियों द्वारा विस्तार किया गया है जिसके द्वारा स्तम्भ एवं भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया गया है। 

शिव पुराण में शिवलिंग की उत्पत्ति का वर्णन अग्नि स्तंभ के रूप में किया गया है जो अनादि व अनंत है और जो समस्त कारणों का कारण है। लिंगोद्भव कथा में परमेश्वर शिव ने स्वयं को अनादि व अनंत अग्नि स्तंभ के रूप में ला कर भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु को अपना ऊपरला व निचला भाग ढूंढने के लिए कहा और उनकी श्रेष्ठता तब साबित हुई जब वे दोनों अग्नि स्तंभ का ऊपरका व निचला भाग ढूंढ नहीं सके। शिवलिंग के ब्रह्मांडीय स्तंभ की व्याख्या का समर्थन लिङ्ग पुराण भी करता है। लिङ्ग पुराण के अनुसार शिवलिंग निराकार ब्रह्मांड वाहक है अंडाकार पत्थर ब्रह्मांड का प्रतीक है और पीठम् ब्रह्मांड को पोषण व सहारा देने वाली सर्वोच्च शक्ति है। इसी तरह की व्याख्या स्कन्द पुराण में भी है, इसमें यह कहा गया है “अनंत आकाश (वह महान शून्य जिसमें समस्त ब्रह्मांड वसा है) शिवलिंग है और पृथ्वी उसका आधार है। समय के अंत में, समस्त ब्रह्मांड और समस्त देवता व इश्वर शिवलिंग में विलीन हो जाएँगें।” शिवलिंग को रचना के बाद बना पहला रूप और ब्रह्माण्ड के अंत से पहले का रूप माना जाता है। महाभारत में द्वापर युग के अंत में भगवान शिव ने अपने भक्तों से कहा कि आने वाले कलियुग में वह किसी विशेष रूप में प्रकट नहीं होगें परन्तु इसके बजाय वह निराकार और सर्वव्यापी रहेंगे।

श्रीस्कन्द पुराण के अंतर्गत ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास माहात्म्य में वर्णन मिलता हैं।

मनुष्य को चाहिए कि श्रावण मास में नियमपूर्वक नक्तव्रत करे और पूरे महीने भर प्रतिदिन रुद्राभिषेक करे. अपनी प्रत्येक प्रिय वस्तु का इस मास में त्याग कर देना चाहिए. पुष्पों, फलों, दांतों, तुलसी की मंजरी तथा तुलसी दलों और बिल्वपत्रों से शिव जी की लक्ष पूजा करनी चाहिए, एक करोड़ शिवलिंग बनाना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. महीने भर धारण-पारण व्रत अथवा उपवास करना चाहिए. इस मास में मेरे लिए अत्यंत प्रीतिकर पंचामृताभिषेक करना चाहिए.
इस मास में जो-जो शुभ कर्म किया जाता है वह अनंत फल देने वाला होता है. हे मुने इस माह में भूमि पर सोये, ब्रह्मचारी रहें और सत्य वचन बोले. इस मास को बिना व्रत के कभी व्यतीत नहीं करना चाहिए. फलाहार अथवा हविष्यान्न ग्रहण करना चाहिए. पत्ते पर भोजन करना चाहिए. व्रत करने वाले को चाहिए कि इस मास में शाक का पूर्ण रूप से परित्याग कर दे. हे मुनिश्रेष्ठ ! इस मास में भक्तियुक्त होकर मनुष्य को किसी ना किसी व्रत को अवश्य करना चाहिए.

सदाचार परायण, भूमि पर शयन करने वाला, प्रातः स्नान करने वाला और जितेन्द्रिय होकर मनुष्य को एकाग्र किए गए मन से प्रतिदिन मेरी पूजा करनी चाहिए. इस मास में किया गया पुरश्चरण निश्चित रूप से मन्त्रों की सिद्धि करने वाला होता है. इस मास में शिव के षडाक्षर मन्त्र का जप अथवा गायत्री मन्त्र का जप करना चाहिए और शिवजी की प्रदक्षिणा, नमस्कार तथा वेदपारायण करना चाहिए.

पुरुषसूक्त का पाठ अधिक फल देने वाला होता है. इस मास में किया गया ग्रह यज्ञ, कोटि होम, लक्ष होम तथा अयुत होम शीघ्र ही फलीभूत होता है और अभीष्ट फल प्रदान करता है. जो मनुष्य इस मास में एक भी दिन व्रतहीन व्यतीत करता है, वह महाप्रलय पर्यन्त घोर नरक में वास करता है. यह मास मुझे जितना प्रिय है, उतना कोई अन्य मास प्रिय नहीं है. यह मास सकाम व्यक्ति को अभीष्ट फल देने वाला तथा निष्काम व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करने वाला है.

पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें श्रावण महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था।

अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के श्रावण महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।

श्रावण में शिवशंकर की पूजा

श्रावण के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरुआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है।

 महादेव का अभिषेक करने के पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने के बाद जब महादेव इस विष का पान करते हैं तो वह मूर्च्छित हो जाते हैं। उनकी दशा देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं और उन्हें होश में लाने के लिए निकट में जो चीजें उपलब्ध होती हैं, उनसे महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर तमाम उन चीजों से महादेव का अभिषेक किया जाता है।

बेलपत्र और शमीपत्र

भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और समीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी- तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक शमीपत्र का महत्व होता है।

बेलपत्र ने दिलाया वरदान

 बेलपत्र महादेव को प्रसन्न करने का सुलभ माध्यम है। बेलपत्र के महत्व में एक पौराणिक कथा के अनुसार एक भील डाकू परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटा करता था। श्रावण महीने में एक दिन डाकू जंगल में राहगीरों को लूटने के इरादे से गया। एक पूरा दिन-रात बीत जाने के बाद भी कोई शिकार नहीं मिलने से डाकू काफी परेशान हो गया।
इस दौरान डाकू जिस पेड़ पर छुपकर बैठा था, वह बेल का पेड़ था और परेशान डाकू पेड़ से पत्तों को तोड़कर नीचे फेंक रहा था। डाकू के सामने अचानक महादेव प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। अचानक हुई शिव कृपा जानने पर डाकू को पता चला कि जहां वह बेलपत्र फेंक रहा था उसके नीचे शिवलिंग स्थापित है। इसके बाद से बेलपत्र का महत्व और बढ़ गया।

शास्त्रोक्त व पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रावण माह में ही समुद्र मंथन किया गया था। मंथन के दौरान समुद्र से निकले विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में समाहित कर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की। किन्तु अग्नि के समान दग्ध विष के पान उपरांत महादेव शिव का कंठ नीलवर्ण हो गया। विष की ऊष्णता को शांत कर भगवान भोले को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल-अर्पण किया। इस कारण भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग पर जल चढ़ाने का महत्व आज भी है तथा शिव पूजा में जल की महत्ता, अनिवार्यता भी सिद्ध होती है।
इस मॉस में शिव-उपासना से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं।

संजीवनं समस्तस्य जगतः सलिलात्मकम्‌।
भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः ॥

अर्थात्‌ जो जल समस्त जगत्‌ के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का अपव्यय नहीं वरन्‌ उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए।

पार्थिव पूजन का लाभ व महात्यम

शिवोपासना में पार्थिव पूजा का भी विशेष महत्व होने के साथ-साथ शिव की मानस पूजा का भी महत्व है। इस साल श्रावण मास में चार ही सोमवार पड़ेंगे। तेरह अगस्त को श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के साथ इस पुण्य पवित्र मॉस का समपान हो जायेगा।

इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर कुछ विशेष वास्तु अर्पित की जाती है जिसे शिवामुट्ठी कहते है। जिसमें प्रथम सोमवार को कच्चे चावल एक मुट्ठी, दूसरे सोमवार को सफेद तिल् एक मुट्ठी, तीसरे सोमवार को खड़े मूँग एक मुट्ठी, चौथे सोमवार को जौ एक मुट्ठी और यदि जिस मॉस में पांच सोमवार हो तो पांचवें सोमवार को सतुआ चढ़ाने जाते हैं और यदि पांच सोमवार न हो तो आखरी सोमवार को दो मुट्ठी भोग अर्पित करते है।

श्रावण माह में एक बिल्वपत्र से शिवार्चन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है। शिव पूजा में शिवलिंग पर रुद्राक्ष अर्पित करने का भी विशेष फल व महत्त्व है क्यूंकि रुद्राक्ष शिव नयन जल से प्रगट हुआ इसी कारण शिव को अति प्रिय है। भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए महादेव को कच्चा दूध, सफेद फल, भस्म तथा भाँग, धतूरा, श्वेत वस्त्र अधिक प्रिय है।

लिंग पूजन क्यूँ करते हैं ?

रुद्रो लिङ्गमुमा पीठं तस्मै तस्यै नमो नमः । सर्वदेवात्मकं रुद्रं नमस्कुर्यात्पृथक्पृथक् ॥ 

रूद्रहृदयोपनिषद श्लोक 23

अर्थ: रुद्र अर्थ व उमा शब्द है। दोनों को साष्टांग प्रणाम है। रुद्र शिवलिंग व उमा पीठम् है। दोनों को साष्टांग प्रणाम है।

पिण्डब्रह्माण्डयोरैक्यं लिङ्गसूत्रात्मनोरपि । स्वापाव्याकृतयोरैक्यं स्वप्रकाशचिदात्मनोः ॥

योगकुण्डलिनी उपनिषद् 1.81

अर्थ: संपूर्ण संसार और सूक्ष्म जगत एक है और उसी प्रकार शिवलिंग और सूत्रात्मन्, तत्त्व और रूप, चिदात्मा और आत्म-दीप्तिमान प्रकाश भी एक है।

निधनपतयेनमः । निधनपतान्तिकाय नमः । ऊर्ध्वाय नमः । ऊर्ध्वलिङ्गाय नमः । हिरण्याय नमः । हिरण्यलिङ्गाय नमः । सुवर्णाय नमः ।सुवर्णलिङ्गाय नमः । दिव्याय नमः । दिव्यलिङ्गाय नमः । भवाय नमः। भवलिङ्गाय नमः । शर्वाय नमः । शर्वलिङ्गाय नमः । शिवाय नमः । शिवलिङ्गाय नमः । ज्वलाय नमः । ज्वललिङ्गाय नमः । आत्माय नमः । आत्मलिङ्गाय नमः । परमाय नमः । परमलिङ्गाय नमः ॥
महानारायण उपनिषद् 16.1

अर्थ: नमस्कारों के साथ समाप्त होने वाले इन बाईस नामों से शिवलिंग सभी के लिए पवित्र बनता है – शिवलिंग सोमा और सूर्य का प्रतिनिधि है और हाथ में पकड़ें पवित्र सूत्रों को दोहराने से सभी शुद्ध होते हैं।

तांश्चतुर्धा संपूज्य तथा ब्रह्माणमेव विष्णुमेव रुद्रमेव विभक्तांस्त्रीनेवाविभक्तांस्त्रीनेव लिङ्गरूपनेव च संपूज्योपहारैश्चतुर्धाथ लिङ्गात्संहृत्य ॥
नृसिंह तापनीय उपनिषद् अध्याय 3

अर्थ: इस प्रकार आनंद अमृत के साथ चार ब्रह्मा (देवता, गुरु, मंत्र और आत्मा), विष्णु, रुद्र पहले अलग-अलग और फिर प्रसाद के साथ शिवलिंग के रूप में एकजुट पूजे जाते हैं।

तत्र द्वादशादित्या एकादश रुद्रा अष्टौ वसवः सप्त मुनयो ब्रह्मा नारदश्च पञ्च विनायका वीरेश्वरो रुद्रेश्वरोऽम्बिकेश्वरो गणेश्वरो नीलकण्ठेश्वरो विश्वेश्वरो गोपालेश्वरो भद्रेश्वर इत्यष्टावन्यानि लिङ्गानि चतुर्विंशतिर्भवन्ति ॥
गोपाला तापानी उपनिषद् श्लोक

अर्थ: बारह आदित्य , ग्यारह रुद्र, आठ वसु, सात ऋषि, ब्रह्मा, नारद, पांच विनायक, वीरेश्वर, रुद्रेश्वर, अंबिकेश्वर, गणेश्वर, नीलकण्ठेश्वर, विश्वेश्वर, गोपालेश्वर, भद्रेश्वर और 24 अन्य शिवलिंगों का यहाँ पर बास है। 

तन्मध्ये प्रोच्यते योनिः कामाख्या सिद्धवन्दिता । योनिमध्ये स्थितं लिङ्गं पश्चिमाभिमुखं तथा ॥ 
ध्यानबिन्दु उपनिषद् श्लोक 45

अर्थ: योनी के बीच पश्चिम की ओर मुख करता शिवलिंग है और शिवलिंग के सर के मध्य से निकला विभाजन रत्न है। यह जानने वाला वेदों का ज्ञाता है।

मात्रालिङ्गपदं त्यक्त्वा शब्दव्यञ्जनवर्जितम् । अस्वरेण मकारेण पदं सूक्ष्मं च गच्छति ॥

अमृतबिन्दु उपनिषद्  श्लोक

अर्थ: मंत्र, लिंग और पाद को छोड़कर, वह स्वाद (उच्चारण) के बिना पाद ‘म’ के माध्यम से स्वर या व्यंजनों के बिना सूक्ष्म पाद (सीट या शब्द) प्राप्त करता है।

देह से कर्म-कर्म से देह-ये ही बंधन है, शिव भक्ति इस बंधन से मुक्ति का साधन है, जीव आत्मा तीन शरीरो से जकड़ी है स्थूल शरीर- कर्म हेतु, सूक्ष्म शरीर- भोग हेतु, कारण शरीर -आत्मा के उपभोग हेतु, लिंग पूजन समस्त बंधन से मुक्ति में परम सहायक है तथा स्वयंभू लिंग की अपनी महिमा है और शास्त्रों में पार्थिव पूजन परम सिद्धि प्रद बताया गया है|

श्रावण मॉस में दिन अनुसार शिव पूजा का फल-

  • रविवार- पाप नाशक
  • सोमवार- धन लाभ
  • मंगलवार- स्वस्थ्य लाभ, रोग निवारण
  • बुधवार- पुत्र प्राप्ति
  • गुरूवार- आयु कारक
  • शुक्रवार- इन्द्रिय सुख
  • शनिवार- सर्व सुखकारी

श्रावण मास में शिव पूजा हेतु शास्त्रोक्त उत्तम स्थान-

तुलसी, पीपल व वट वृक्ष के समीप
नदी, सरोवर का तट, पर्वत की चोटी, सागर तीर
मंदिर, आश्रम, तीर्थ अथवा धार्मिक स्थल, पावन धाम, गुरु की शरण
शिव पूजा व पुष्प
बिल्वपत्र- जन्म जन्मान्तर के पापो से मुक्ति (पूर्व जन्म के पाप आदि)
कमल- मुक्ति, धन, शांति प्रदायक
कुशा- मुक्ति प्रदायक
दूर्वा- आयु प्रदायक
धतूरा- पुत्र सुख प्रदायक
आक- प्रताप वृद्धि
कनेर- रोग निवारक
श्रंघार पुष्प- संपदा वर्धक
शमी पत्र- पाप नाशक
शिव अभिषेक व पूजा में प्रयुक्त द्रव्य विशेष के फल-
मधु- सिद्धि प्रद
दुग्ध से- समृद्धि दायक
कुषा जल- रोग नाशक
ईख रस- मंगल कारक
गंगा जल- सर्व सिद्धि दायक
ऋतू फल के रस- धन लाभ

शिव आराधना के मंत्र व अनुष्ठान

|| नमोस्तुते शंकरशांतिमूर्ति | नमोस्तुते चन्द्रकलावत्स ||
|| नमोस्तुते कारण कारणाय | नमोस्तुते कर्भ वर्जिताय ||
|| ॐ नमस्तुते देवेशाय नमस्कृताय भूत भव्य महादेवाय हरित पिंगल लोचनाय ||
|| ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः ||
|| ॐ दक्षिणा मूर्ति शिवाय नमः ||
|| ॐ दारिद्र्य दुःख दहनाय नम: शिवाय ||
|| वृषवाहनः शिव शंकराय नमो नमः | ओजस्तेजो सर्वशासकः शिव शंकराय नमो नमः ||

श्रावण मास में शिव की उपासना करते समय

ॐ जुं स:  
ॐ हौं जूं स:
ॐ ह्रीं नम: शिवाय
ॐ ऐं नम: शिवाय
ॐ पार्वतीपतये नमः 
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय
ॐ नमोः भगवते रुद्राय और
महामृत्युंजय गायत्री मंत्र :- 

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌ ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ

रूद्र गायत्री मंत्र : – 

ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।

आदि मंत्र जप बहुत महत्व्यपूर्ण माना गया है।

इन मंत्रों के जप-अनुष्ठान से सभी प्रकार के दुख, भय, रोग, मृत्युभय आदि दूर होकर मनुष्‍य को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। समस्त उपद्रवों की शांति तथा अभीष्ट फल प्राप्ति के निमित्त रूद्राभिषेक आदि यज्ञ-अनुष्ठानचमत्कारी प्रभाव देते है। श्री रामचरित मानस, शिवपुराण, शिवलीलामृत, शिव कवच, शिव चालीसा, शिव पंचाक्षर मंत्र, शिव पंचाक्षर स्त्रोत,शिव महिम्न स्तोत्र, तांडव , अर्धनरीनटेश्वर ,इत्यादि स्तोत्र के साथ महामृत्युंजय मंत्र का पाठ एवं जाप श्रावण मास में विशेष फल कहा गया है|

श्रावण और शिवोपासना

शताश्वमेधेनकृतेनपुण्यं
गोकोटिभि:स्वर्ण सहस्त्रदानात्।
नृणांभवेत्सूतकदर्शनेन
यत्सर्वतीर्थेषुकृताभिषेकात्॥

सैकडों अश्वमेध यज्ञ करने अथवा करोडों गौओंके दान करने और हजारों मन सोने का दान करने तथा सभी तीर्थोमें स्नान-पूजा करने से जो पुण्य फल प्राप्त होता है, वहीं पुण्य फल मनुष्य को केवल पारद के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता हैं.

श्रावण का महीना एवं देवाधिदेव महादेव का दर्शन पूजन रुद्राभिषेक इनमें नैसर्गिक अन्योन्याश्रित संबंध है। बोल बम करता हुआ भक्तो का समूह नास्तिकों के मन में भी आस्था का संचार करता है। विशेषकर सोमवार के दिन भगवान शिव का पूजन। प्रश्न उठता है कि शिव की अर्चना के लिए श्रावण मास ही क्यों? इस प्रश्न के उत्तर में ऋग्वेद कहता है-

संवत्सरंशशमानाब्रह्मणाव्रतचारिण:।
वाचंपर्जन्यानिन्वितांप्रमण्डूकाअवादिषु॥
(सप्तम मंडल 763का प्रथम श्लोक)

अर्थात् वृष्टिकालमें ब्राह्मण वेद पाठ का व्रत करते हैं और उस समय में प्राय: उन सूक्तोंको पढते हैं, जो तृप्तिदायक हैं। इसका यह भी अर्थ है कि वर्षा ऋतु के मंडन करनेवाले जीव वर्षा ऋतु में इस प्रकार ध्वनि करते हैं, मानो एक वर्ष के अंतराल में उन्होंने मौन व्रत धारण रखा हो और इस ऋतु में बोलना प्रारंभ कर दिया हो। इस मंत्र में परमात्मा ने यह उपदेश दिया है कि जिस प्रकार क्षुद्र जंतु भी वर्षा काल में आह्लादजनकध्वनि करते हैं अथवा परमात्मा का यशोगान करते हैं, तुम भी उसी प्रकार परमात्मा का यशोगान करो।

गोमायुरदादबमायुरदात्पृष्नरदाद्धरितोनो वसूनि।
गवां मंडूकादक्ष: शतानिसहस्त्रसावेप्रतिरंतआयु:॥
अर्थात् अनंत प्रकार की औषधियां, जिसमें उत्पन्न होती हैं, उस वर्षा काल अथवा श्रावण मास को सहस्त्रासापकहते हैं। उस काल में परमात्मा हमको अनंत प्रकार का शिक्षा-लाभ कराएं और हमारे ऐश्वर्य और आयु को बढाएं। शिव पूजन से संतान, धन-धान्य, ज्ञान और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। शिव को जलधारा प्रिय है। विशेष कर सोमवार को अनजाने में भी किया गया शिवव्रतमोक्ष को देने वाला होता है।

श्रावण माह में ,भगवान शिव को ऐसे करें प्रसन्न, हर मनोकामना होगी पूरी

श्रावण माह प्रकृति और देवों के देव महादेव को समर्पित है। हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक यह वही माह है जब समुद्रमंथन हुआ था। समुद्र मंथन में कई दिव्य वस्तुओ के साथ विष भी निकला था, जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में रखकर इस संपूर्ण सृष्टि को बचाया था।
जब शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण किया तो उनका कंठ नीला हो गया। इसलिए भगवान शिव को नीलकंठेश्वर महादेव भी कहा जाता हैं। नीलकंठेश्वर महादेव की पूजा यदि श्रावण माह में की जाए तो व्यक्ति को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

मान्यता है कि श्रावण माह में शिवलिंग पर जल इसीलिए अर्पित करते हैं ताकि शिव के कंठ में मौजूद विष के प्रभाव को कम किया जा सके। शिवपुराण में इस बात का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसलिए शिव भक्त श्रावण माह में शिवलिंग पर जल अर्पित कर अपनी मनोकामानाओं की पूर्ति का वरदान मांगते हैं।

वैसे तो श्रावण माह शिव का माह है लेकिन इस माह में प्रकृति भी मेहरबान रहती है। श्रावण माह में प्रकृति भी हरियाली की चादर ओढ़ चुकी होती है। इस माह में श्रावण माह के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव की आराधना करना शुभ माना जाता है।

जिसमें श्रावण माह के प्रथम सोमवार को कच्चे चावल से, दूसरे सोमवार को तिल से, तीसरे सोमवार को खड़े मूंग से, चौथे सोमवार को जौ से और पांचवे सोमवार को सत्तु अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने पर भगवान शिव की कृपा शिवभक्त पर जरूर बरसती है।

भगवान शिव को भोले दानी कहा जाता है, उन्होंने दैत्यों पर प्रसन्न होकर उन्हें भी वरदान प्रदान किये थे। जिसके कारण वे भोले भंडारी कहलाये।

सावन के महीने में भूलकर भी न पहनें इस रंग के कपड़े

देवो के देव महादेव का सावन के महीने में भगवान शिव प्रसन्न हो जाए तो हर मनोकामना को पूरा करते है। पुराणों में भी इस बात को बताया गया है कि सारे महीनों की अपेक्षा सावन के महीने में भगवान शिव की आराधना करने से महादेव ज्यादा प्रसन्न होते हैं। इस पावन महीने के लिए शिवपुराण में कई एसे मंत्रो को दिया गया है जिनका जाप करने से महादेव प्रसन्न होते है और ये मंत्र मानव कल्याण के लिए भी बहुत प्रभावी हैं। सभी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए इस महीने की कुछ खास बातें होती हैं जिनको जानना बहुत जरूरी होता है। सावन के महीने में कुछ चीजों पर रोक होती है। इस महीने में पहने जाने वाले कपड़ों को लेकर भी कई तरह की मनाही होती है। बताते है कि सावन के महीने में कभी भी कुछ रंगों को नहीं पहनना चाहिए।

जानिए कौन से हैं वे रंग

सावन के महीने में पूजा के कई सारे नियम होते है। अगर आप इनमें गलती करते है तो भगवान शिव आपसे बहुत जल्दी नाराज हो जाते हैं। शास्त्रों के मुताबिक लाल रंग को किसी भी पूजा में पहनना खुशियां और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है वहीं सावन के महीने मे हरे रंग का अरना अलग महत्व होता है। इसलिए इस महीने में सारे रंगों को किनारे करके हरे और लाल रंग को अपनी प्राथमिकता में रखें।

सावन के महीने में कभी भी काला, खाकी, और भूरे रंग के कपड़ो को न पहनें। ये कपड़े पहन कर अगर आप पूजा करते हैं तो भगवान शिव नाराज हो जाते है और आपको पूजा का फल नहीं मिलता है। ध्यान रखें कि जब भी पूजा के लिए जाएं तो इन तीन रंगों के कपड़ों को पूरी तरह से नकारें।
भगवान शिव की पूजा में काले रंग को इसलिए अशुभ माना जाता है क्योंकि भगवान शिव को काला रंग बिल्कुल भी पसंद नहीं है। इस रंग को देखते ही महादेव क्रोधित हो जाते हैं। यदि आप शिव के प्रकोप से बचना चाहते हैं या फिर उनकी कृपा पाना चाहते हैं तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पूजा करते समय काले कपड़ों को न पहनें।

कहा जाता है कि महादेव भगवान एक योगी थे और उन्हें प्रकृति की सुंदरता के बीच ध्यान में बैठना बहुत ही पसंद था। हरा रंग पहनने से भी महादेव प्रसन्न होते हैं इसलिए महिलाएं सावन के महीने में सिर्फ एक नहीं बल्कि कई कारणों से हरा रंग पहनती हैं।

शिवलिंग हैं ब्रह्मांड का प्रतीक

संपूर्ण ब्रह्मांड उसी तरह है जिस तरह कि शिवलिंग का रूप है जिसमें जलाधारी और ऊपर से गिरता पानी है । शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा और उन पिंडों की तरह है, जहां जीवन होने की संभावना हैं । वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी ही शिवलिंग है । वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे सृष्टि प्रकट होती है उसे शिवलिंग कहते हैं ।

शिवलिंग ही शिव का आदि और अनादी रूप

ईश्वर निराकार है, और शिवलिंग भी उसी का प्रतीक हैं । या फिर ये कहे कि भगवान शंकर या महादेव भी शिवलिंग का ही ध्यान करते हैं । शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे ‘शिवलिंग’ कहा गया हैं । स्कंद पुराण में कहा गया है कि आकाश स्वयंलिंग है । धरती उसकी पीठ या आधार है और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे शिवलिंग कहा गया हैं । शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है । इस पुराण के अनुसार भगवान शिव ही पूर्ण पुरुष और निराकार ब्रह्म हैं ।

शिवार्पण मस्तु

सर्वेभवन्तु सुखिनः

रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद

एन सी आर खबर ब्यूरो

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