अजय पाल नागर । 2013 में राजस्थान कांग्रेस की जबरदस्त हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान युवा चेहरा सचिन पायलट को सौंपी गई। 2013 में 21 सीटों पर सिमट चुकी कांग्रेस के अस्तित्व की लडाई लडने के लिए न तो कोई चेहरा था न कोई रणनीति न कोई विशेष योजना।
इन सबके बीच कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भारी निराशा का वातावरण ऐसी परिस्थितियों में सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई ।
2014 के लोकसभा चुनाव सचिन पायलट के नेतृत्व में लड़ा गया जिसमें कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा इसके बाद सचिन पायलट ने अपने संघर्ष के बल पर राजस्थान के गांव गली शहर घूम घूम कर कार्यकर्ताओं मे जोश पैदा करके कांग्रेस को कुछ मजबूत जनाधार की ओर ले जाने एवं मजबूत युवा कार्यकर्ताओं की फौज के साथ खड़ा किया ।
2018 के विधानसभा चुनाव में जब सचिन पायलट अध्यक्ष रहते हुए जनाधार वाले संघर्षशील नेताओं को टिकट देने की नौबत आई तो वहां पर दिल्ली से टिकट की भूमिका बननी शुरू हो गई जिससे सचिन काफी दुखी हुए दुख का कारण था की अपने संघर्ष के साथी कई युवा चेहरे योग्य उम्मीदवारों को टिकट न दिला पाना इन सब के बावजूद सचिन ने धैर्य नहीं खोया और 2018 का चुनाव अपनी मेहनत के बल पर अपने संघर्ष के बल पर राजस्थान में लड़ा जैसा कि गत 5 वर्षों के इनके संघर्ष के बल पर 2013 में 21 सीट लाने वाली कांग्रेस 2018 में 100 सीटों पर पहुंच गई जिसका पूरा श्रेय सचिन पायलट को जाता है इस बात को राजस्थान की जनता भली-भांति जानती है दूसरे प्रदेशों की जनता भी इस बात से अनभिज्ञ नहीं है कि 21 सीटों से 100 सीटों तक पहुंचाने वाला व्यक्ति केवल और केवल सचिन पायलट है लेकिन बहुमत आने के बाद दिल्ली में बैठे अशोक गहलोत को एकदम से राजस्थान की गद्दी दिखाई देने लगी और आलाकमान से नजदीकियों का फायदा उठाते हुए राजस्थान मुख्यमंत्री पद के लिए अपना नाम आगे कर दिया सचिन पायलट ने इसका विरोध किया लेकिन सचिन का यह विरोध ज्यादा समय तक नहीं टिक सका और मान मनौव्वल एवं वरिष्ठ नेताओं के हस्तक्षेप के बाद सचिन पायलट उपमुख्यमंत्री पद लेकर राजस्थान में अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार कर लिया लेकिन सचिन और गहलोत का यह टकराव यह विरोध अंदर ही अंदर इस हद तक बढ़ता गया की गहलोत राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष पद से सचिन की छुट्टी कराने के लिए अपनी रणनीति बनाने में जुट गए इसके अलावा सचिन पायलट को धीरे-धीरे कमजोर करने की कोशिश अपमानित करने का प्रयास लगातार गहलोत की तरफ से जारी रहा जब अध्यक्ष पद से छुट्टी होने की भनक सचिन पायलट को लगी तो सचिन ने अपने समर्थक विधायकों के साथ बगावती तेवर अपना लिए अशोक गहलोत ने यह सब भागते हुए विधायकों का समर्थन अपने पक्ष में करते हुए विधायक दल की बैठक में सचिन और उसके समर्थक विधायकों की अनुपस्थिति में एक प्रस्ताव पास कराते हुए सचिन को उपमुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटवा दिया
सचिन के समर्थन में एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष सहित सैकड़ों प्रदेश एवं जनपद स्तरीय पदाधिकारियों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया यहां यह बताना आवश्यक है की सचिन के समर्थन में कई गुर्जर विधायक यहां तक कि उनके गृह जनपद गौतम बुद्ध नगर से राजस्थान में विधायक बने विधायक भी उनके साथ समर्थन में खड़े नहीं हुए।
उत्तर प्रदेश के गौतम बुध नगर जनपद के दादरी तहसील के गांव वैदपुरा से मूल निवासी सचिन पायलट को गौतम बुध नगर के गुर्जर नेताओं का भी साथ नहीं मिला । यहां तक की वैदपुरा में गोवर्धन पूजा मे शामिल होकर फोटो खिंचवाने वाले सैकड़ों कांग्रेस पदाधिकारी भी कहीं पर दिखाई नहीं दे रहे सचिन पायलट वैसे तो किसी एक बिरादरी के नेता नहीं है एक जाति के नेता नहीं है वह राजस्थान के अंदर सर्व समाज के नेता है लेकिन उनका गृह जनपद गौतम बुध नगर होने के नाते यहां के गुर्जर कांग्रेसी नेताओं सहित किसी भी कांग्रेसी नेता का न कोई बयान न कोई इस्तीफा आना कहीं ना कहीं सचिन पायलट को कमजोर प्रदर्शित कर रहा है जिसका परिणाम कहीं ना कहीं सचिन पायलट की राजनीतिक बली के रूप में भी हो सकता है इसलिए देश के एक ऐसे युवा तेजतर्रार सुशिक्षित नेता को केवल इसलिए समाप्त किया जा रहा है ताकि पार्टी के अंदर कोई चुनौती देने वाला नेता ना रहे।
यदि हम इतिहास में जाएं तो देखते हैं एक समय में कई बड़े नेताओं की रहस्यमय दुर्घटना वश मृत्यु होना कोई संयोग नहीं था जिनमें स्वर्गीय राजेश पायलट माधवराव सिंधिया जितेंद्र प्रसाद जैसे दिग्गज राजनेता शामिल है जिनकी मृत्यु की कोई जांच कराना भी उचित नहीं समझा गया यह निश्चित रूप से किसी योजना के अंतर्गत निश्चित रूप से राजनीतिक हत्याएं थी जिनके रहस्य.से पर्दा आज तक नहीं उठ सका।
क्या विशेष रूप से सचिन पायलट के गृह जनपद गौतम बुध नगर के कांग्रेसी नेताओं की जिम्मेदारी अन्य नेताओं अन्य जनपदों अन्य राज्यों से अपेक्षा अत्यधिक ज्यादा बनती है कि वह अपने नेता के पीछे कंधे से कंधा मिलाकर के खड़ा रहे और उनके समर्थन में अपने त्यागपत्र उनका धरना प्रदर्शन यह सब करें ताकि सचिन पायलट को अपनी ताकत ताकत मिले अन्यथा एक युवा से चला नेता की राजनीति का अंश बड़े आसान तरीके से हो जाना निश्चित है
अजय पाल नागर गुर्जर समाज के बड़े शिक्षाविद और नेता है ।