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महंगे कर्ज ने निकाले कंपनियों के पसीने, सूखते जा रहे हैं खजाने

31_10_2013-31walletनई दिल्ली। महंगाई पर काबू करने की रिजर्व बैंक की कोशिशों ने उद्योग के लिए संसाधन जुटाने के स्त्रोत सीमित कर दिए हैं। विस्तार के लिए आवश्यक लंबी अवधि वाले कर्ज ही नहीं, कंपनियों को अल्पकालिक कर्ज के स्नोत भी ऊंची ब्याज दरों के कारण सूखते जा रहे हैं। नतीजतन चालू वित्त वर्ष 2013-14 की पहली छमाही में कंपनियों के कर्ज लेने में 15 फीसद की गिरावट आई है।

कंपनियों को कर्ज लेने में दिक्कत इस साल जुलाई के बाद से शुरू हुई है। रिजर्व बैंक ने जुलाई के मध्य में मनीमार्केट में अल्पकालिक कर्ज की दरों को तय करने वाली प्रमुख दर एमएसएफ यानी मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी की दर में दो फीसद की वृद्धि की है। कंपनियों के लिए अल्पकालिक कर्ज का बड़ा स्नोत वाणिज्यिक पत्र (कॉमर्शियल पेपर) हैं।

कंपनियां बाजार में इन्हें जारी कर पैसा उठाती हैं। जुलाई के बाद लगातार इस स्नोत से धन जुटाने में कमी आई है। इस साल जून में कंपनियों ने इस सुविधा से 36,702 करोड़ रुपये जुटाए थे। वहीं जुलाई में यह आंकड़ा सिर्फ 29,520 करोड़ रुपये ही रहा। अगस्त में इस स्नोत से जुटाए गए कर्ज की राशि मात्र 7,652 करोड़ रुपये तक सीमित रह गई।

कॉमर्शियल पेपर अल्पकालिक कर्ज के लिए बीते दो साल में कंपनियों का पसंदीदा स्नोत रहे। लेकिन चालू वित्त वर्ष में जुलाई के बाद इसकी स्थिति बदल गई। प्राइम सिक्योरिटीज के आंकड़ों के मुताबिक इसके चलते कंपनियों ने पहली छमाही से सिर्फ 1.70 लाख करोड़ रुपये का कर्ज ही जुटाया। इसके बीते वर्ष कंपनियां 2.01 लाख करोड़ रुपये का कर्ज जुटा पाई थीं। प्राइम सिक्योरिटीज के एमडी प्रणव हल्दिया के मुताबिक रिजर्व बैंक के कदमों ने ब्याज दर में तीन फीसद तक वृद्धि कर दी। इसकी वजह से कंपनियों के लिए बाजार से कर्ज लेना व्यावहारिक नहीं रह गया।

NCR Khabar News Desk

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