सामाजिक संस्थाओ के सहयोग से सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए प्रत्येक ट्रेन में 1200 लोगों को उनके गांव भेजा जा रहा है लेकिन ऐसी ट्रेनो मे अधिकतर मजदूर नही जा पा रहे हैं। इस सुविधा का लाभ अधिकतर स्थानिय नेता या नेता के चमचे उठा रहे हैं। जो की आर्थिक रूप से मजबूत बिरादरी है।
लॉक डाउन के पहले भारत मे हर रोज 12617 सवारी गाड़ियां चलती है। भारत सरकार अपनी क्षमता का आधा उपयोग करते हुए भी लगभग 6000 सवारी गाड़ियां पटरी पर उतार कर मजदूरो को उनके गंतव्य तक भेजने की शुरुआत भर कर दे तो भी मजदूरों द्वारा पैदल पलायन की समस्या पांच दिन मे हल हो जाएगी !
1200 मजदूर हर रेल गाडी के पैमाने के अनुसार 6000 सवारी रेल गाड़ियों मे हर बार,हर रोज लगभग सात लाख बीस हज़ार मजदूरों को उनके राज्य भेजा जा सकता है।
ऐसी सुविधा पांच दिन भी लगातार देने पर लगभग छत्तीस लाख (3600000) प्रवासी मजदूरों को रूसवा होकर दर-दर की ठोकरे खाने से रोका जा सकता है लेकिन पता नहीं सरकारें ऐसा क्यो नही कर रही हैं?
न केंद्र सरकार और ना ही कोई राज्य सरकार ही इस मामले में कोई पहल कर रही हैं।
उपर से शोसल मीडिया के मठाधिश गिद्ध बने बैठे हैं। मजदूरों की समस्या से इनको कोई लेना देना नहीं है,बस गरीब मजदूरों के बहाने सरकार को कोसने का बहाना मिल गया है। आगे बढ कर कोई मदद का हाथ नही बढा रहा है, बस सोशल मीडिया पर रूदाली बने बैठे हैं।
इन प्रवासी मजदूरों की कोई मदद कर भी रहा है तो अपनी छवि चमकाने के लिए वे उसमे अपना धर्म,मजहब और जाति खोज ले रहे हैं। आज कल सोशल मीडिया पर भी गिद्धों की बहार आई हुई है।
प्रवासी मजदूरों की मज़बूरी,बेबसी,बेचारगी को दिखा-दिखा कर लाईक्स बटोरने मे लगे हुए हैं। मजदूरों से सरोकार किसी का नही है।
केंद्र सरकार बीस लाख हजार करोड़ को मुंगेरी लाल के सपने जैसा पॅकेज तो घोषित कर दी लेकिन गरीब,लाचार और बेबस मजदूरों को सडक पर यूं ही मरने के लिए छोड़ दी है।
इन प्रवासी मजदूरों के पलायन के लिए वे सब लोग जिम्मेदार है,जो सीधे तौर पर इनसे लाभ कमाते थे ! केंद्र सरकार जिम्मेदार है, राज्य सरकारें जिम्मेदार है और वे मालिक भी जिम्मेदार है जिनके पास ये काम करते थे! जिनकी वजह से आज वे आलिशान घरों में ऐश की जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं। साथ ही साथ सोशल मीडिया भी जिम्मेदार है जो इनके लिए आज भी गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कर रही है।
मै भारत सरकार और सभी राज्य सरकारों से गुजारिश करूगा कि वे इन प्रवासी मजदूरों की मदद को आगे आए और सिर्फ इनके लिए ही भारतीय रेल की सेवा को सुचारू रूप से शुरू करें ताकि ये अपने गंतव्य तक पहुच सके या फिर इनको अपने शहर मे ही रोक लिया जाए और इनके खान-पान और रहने की वयवस्था करके इनके अंदर घर कर चुके डर को खत्म किया जा सके और कोरोना के कहर को भारत मे और भी ज्यादा बढने से रोका जा सके!
धीरज फूलमती सिंह