तीन दशक पहले बिहार, उत्तर प्रदेश व आसपास के जातीय संघर्ष याद हैं आपको? इस देश में कुछ ताकतें हैं, जो भारतीय सभ्यता व संस्कृति के खिलाफ हैं। पहले वो आपको जातियों के बाँटते हैं, फिर पिछड़ों, दलितों व आदिवासियों को हिन्दू धर्म से अलग बताया जाता है, उनके दिल में हिंदु धर्म के खिलाफ जहर भरा जाता है। हजारों साल पुरानी हमारी परंपरा में, प्रभु श्रीराम और निषाद जी एक साथ शिक्षा लेते हैं, लेकिन इसकी जगह कई मनगढ़ंत कहानियां सुनाईं जाती हैं, ताकि हमारा समाज बंटा रहे।
इस पूरे प्रकरण में, कई राजनैतिक दल भी चंद वोटों के लिये इनका साथ देते हैं। धर्मांतरण करा रही मिशनरियों के लिए यह एक आदर्श स्थिति होती है, और इसका फायदा उठाने का वो कोई मौका नहीं छोड़ते।
हमारे गौरवशाली इतिहास को नकारने के प्रयास में, रामायण को काल्पनिक कथा बताकर, उस रामसेतु को तुड़वाने की कोशिश होती है, जिसके अस्तित्व को नासा समेत कई पच्छिमी देशों के भू-वैज्ञानिकों ने भी, एक मानव निर्मित संरचना के तौर पर माना है।
लेकिन, हजारों साल पुरानी हमारी मान्यताओं पर सवाल उठाने वाले इस सवाल पर चुप हो जाते हैं कि नासा के अस्तित्व से सैकड़ों साल पहले, हनुमान चालीसा में धरती से सूर्य की सटीक दूरी कैसे लिख दी गई? राइट ब्रदर्स से हजारों साल पहले, पुष्पक विमान कैसे चलते थे? बिना जीपीएस व गूगल मैप के, रावण ने नासिक से लंका का सबसे छोटा व सीधा मार्ग कैसे तय किया? हजारों सालों से हमारे पंचांग सूर्यग्रहण व चंद्रग्रहण की सटीक गणना कैसे कर रहे हैं। एक अचंभा तो यह भी है कि जिस देश में, सैकड़ों भाषायें हैं, और हिंदी बोलने का तरीका, व उसका टोन भी, हर क्षेत्र में बदल जाता हैं, वहाँ संस्कृत में लिखे मंत्रों के उच्चारण का तरीका सारे देश में एक कैसे है?
बचपन से, इतिहास के नाम पर चक्रवर्ती सम्राटों को नकार कर, कुछ हमलावरों को हीरो बताया जाता है, किताबों, फिल्मों व टीवी पर, टीपू सुल्तान जैसे लोगों का महिमामंडन होता है, लेकिन महाराणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी जैसे योद्धाओं व सिख गुरुओं को इतिहास में स्थान तक नहीं मिलता। अगले स्टेज में, उन्हीं फिल्मों व कहानियों में साधुओं को ढोंगी दिखाया जाता है, और हम दर्शक-दीर्घा में बैठे ताली पीटते हैं। फिर हमारे धर्म, हमारी मान्यताओं पर इतने सवाल उठाए जाते हैं, जिन्हें हम भी विमर्श मान कर सच मानने लगते हैं।
कालांतर में, कोरोना काल आता है, तब पूरी दुनिया हिन्दू रीति-रिवाजों को उन्नत मान कर नमस्ते करने लगती है, शाकाहारी भोजन का पालन करने को मजबूर हो जाती है, और विकसित देश भी शवों को जलाने की परंपरा के पैरोकार बन जाते हैं, तब इन वामपंथियों के लिये, यह असह्य होता है। उसके बाद, जब लॉकडाउन की वजह से, मरकज वाले “मानव बम” पूरे देश को कोरोना संक्रमित करने के अभियान में विफल हो जाते हैं, तो उस हताशा में पालघर में, पुलिस के सामने, सन्यासियों की हत्या का दुस्साहस किया जाता है।
इस हत्या को अगर आप एक मॉब-लिंचिंग की घटना मात्र मानते हैं, तो यकीनन, वो अपने षडयंत्र में सफल हो चुके हैं। उठिए, जागिये, व सही को सही तथा गलत को गलत कहने की आदत डालिये, अन्यथा ये शक्तियां हमारे धर्म, संस्कारों व मान्यताओं को समाप्त करने के अपने मिशन में सफल हो जायेंगी।
सुधीर कुमार
(23 अप्रैल 2020 को न्यू इस्पात मेल में प्रकाशित)