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अभिभावको की योगी सरकार से प्रार्थना : क्या स्कूल को लॉक-डाउन अवधि तक सभी प्रकार के शुल्क छोड़ देने चाहिए और क्यो ?

नोएडा, ग्रेटर-नोएडा व दिल्ली स्थित समरविले स्कूल ने अभिभावकों के आर्थिक समस्याओं को समझते हुए ट्यूशन फीस के अलावा सभी प्रकार के शुल्क लॉक-डाउन अवधि मे माफ करके एक सरहानीय कदम उठाया है जिसका स्वागत करना चाहिए। परंतु मेरा मानना है कि कम से कम एक त्रिमास (Quarter) की पूरी फीस ही माफ कर देनी चाहिए l

हालाँकि लॉक-डाउन की अवधि पूर्णतया भविष्य के गर्भ में है। उसकी अवधि पूर्ण होने के बाद भी सभी नागरिको को कम से कम एक माह समय अपने व्यवसाय को ठीक से संचालित करने में लग जायेगा।

कम से कम दस वर्ष पूर्व बारहवी कक्षा तक बोर्ड से संबद्धता (affiliation) मिले स्कूलों (well established) को जो सोसाइटी एक्ट के अधीन No profit – No loss के आधार पर सामाजिक संस्था द्वारा संचालित जिसको सरकार द्वारा भी ज़मीन सस्ते दर पर उपलब्ध कराने तथा टैक्स भी कम से कम दिया जाता है उसको प्रथम त्रिमासिक शुल्क नही लेने चाहिए का मेरा सुझाव है जिससे बहुत सारे अभिभावक भयंकर रूप से फैली विश्व्यापी महामारी में चिंतामुक्त हो सकते हैं।

कोरोना विश्व्यापी आपदा सभी के लिए एक कहर बनकर मुह फाड़े सामने खड़ी है और अगर हम सब इससे उबर भी जाते है तो हमे ये भी पता नही है कि हमें वेतन मिलेगा या नही, वेतन को आप भूल जाइये, हमे दुबारा नौकरी मिलेगी भी या नही, हमारा व्यापार अपनी उस पुरानी स्थिति में आयेगा या नही और यदि आयेगा तो कितने समय बाद। इसकी चिंता सभी देशवासियों को दिन-रात खाये जा रही है। पता नहीं कितने परिवार इस महामारी के भेट चढ़ेंगे या इसके उबरने के बाद अपने बच्चों की फीस के लिए अपना मानसिक संतुलन खोएंगे। कभी एक व्यक्ति की मौत ही एक परिवार की मौत बन जाती है।

सभी प्रतिष्ठान अपने ग्राहकों या संरक्षकों को आपदा की मार देखते हुए कुछ ना कुछ रियायत दे रहे है बस स्कूल ही एक मात्र ऐसी संस्था है जो जो शून्य प्रतिशत त्याग करने के लिए भी तैयार नहीं है। मेरा तात्पर्य है कि पिछले वर्ष की फीस लेने के लिए भी तैयार नहीं है। क्या कोई महानुभाव, जो स्कूल को पूरी फीस देने के पक्ष में हो, बता सकते हैं कि सभी अभिभावकों के वेतन या व्यापार इस वर्ष 7.88% से ज्यादा बढ़ेगा जो अभिभावक इस प्रतिशत की वृद्धि के बराबर फीस दे सके। यहाँ तक कि सरकारी कर्मचारी के वेतन में से 30% तक की कटोती की गयी है। इसके साथ साथ काफी नागरिक स्वेच्छा से कुछ प्रतिशत अपने वेतन की कटोती देशहित के लिए दे रहे हैं या सरकार के रिलीफ फंड में दान कर है। परंतु यह हमे अवश्य मानना पड़ेगा कि हम सब के वेतन व व्यापार में इतनी निश्चितता होती है जितनी स्कूलों द्वारा बढ़ाई गई फीस में है।

प्रथम त्रिमासिक शुल्क ना लेने के मुख्य कारण :

  • क्या अभिभावकों की आय इसी अनुपात में बढ़ी है जितनी स्कूल की फीस ??
  • क्या स्कूल ने अपने स्थायी व अस्थायी अध्यापको व अन्य कर्मचारी का वेतन इसी अनुपात में बढ़ाया हैं और वर्षों से कार्यरत अस्थायी (Ad hoc) स्टाफ को भी वेतन दिया जा रहा है ??
  • कोरोना जैसी अंतरराष्ट्रीय महा-आपदा के कारणवश लॉक-डाउन होने से सभी छोटे बड़े प्रतिष्ठानों और सेवाओं का अनिश्चित कालीन के लिए बन्द होना । नौकरीपेशा अभिभावकों में भी अधिकांशतः निजी कंपनियो में कार्यरत हैं जिनका वेतन की अनिश्चितता तो है ही, बल्कि उनके रोज़गार की भी अनिश्चितता हो सकती है। व्यापारी व सेवाओं प्रदत्त वर्ग वाले अभिभावकों को अपने व्यापार को पुनः स्थापित करने मे काफी समय लग सकता है। उपर से सरकार भी निवेदन कर रहीं है कि सभी व्यापारी अपने यहाँ कार्य करने वालों को वेतन के साथ कुछ अग्रिम राशि का भुगतान करे। वैसे ही सरकार को स्कूलों को भी अपने पास से अपने स्टाफ को वेतन देने के लिए बाध्य क्यो नहीं करती??
  • अभिभावकों को अभी अपने बच्चों के लिए स्कूल की किताबे, ड्रेसेस, स्टेशनरी, बैग्स इत्यादि की भी खरीदारी करनी है और लॉक डाउन को देखते हुए सी.बी.एस.ई. द्वारा सिलेबस में परिवर्तन की संभावना भी है तथा नई किताबे भी लेना अति आवश्यक है तथा इस विपदा की घड़ी में मुश्किल भी।
  • अधिकांश स्कूलों ने नये अभिभावकों से पिछले वर्ष के अंतिम त्रिमास तक इस वर्ष के लिए नर्सरी कक्षा के एडमिशन फीस के साथ साथ अन्य मदो के नाम पर अच्छी रकम वसूल ली है। जिसका उपयोग इस वर्ष अध्यापको/कर्मचारी को वेतन देने मे किया जा सकता है।
  • सभी स्कूलों में अधिकांश अध्यापक/कर्मचारी नियमित तौर पर नही लगे होते हैं। वह ऐडहॉक (ad hoc) आधार पर होते हैं जिनका वेतन सी. बी. एस.ई. के नियमानुसार नही होता। औसतन एक अध्यापक को स्कूल ₹ 1000 प्रति दिन के हिसाब से भुगतान करता है। ऐसे अध्यापक/कर्मचारी की संख्या 50% से 75% तक होती है। इनको स्कूलों के बंद होने के दौरान वेतन नही दिया जाता है।
    अभी स्कूलों में कक्षाएं की ऑन-लाइन व्यवस्था की जा रही है और वह भी 3 घंटे से 4 घंटे प्रति दिन। जो स्कूलों का नियमित स्टाफ ले रहा है वैसे भी ऑन-लाइन कक्षाओं का खर्च न्यूमतम होता है और विद्यर्थियो के स्वास्थ्य के प्रतिकूल भी।
  • ऐसे बहुत से स्कूल है (अभिभावक भी जानते हैं) जो अध्यापको से CBSE guidelines या निर्धारित वेतन-मान (Pay commission के अनुसार) वेतन तो देते है परंतु उनसे एक बड़ा हिस्सा वापिस भी ले लेते है और इसी शर्त पर उनको नौकरी पर रखा जाता है। कुछ स्कूल तो अपने स्टाफ पर 50% वेतन लेने का दवाब बना रहे हैं।
  • क्या स्कूल स्टाफ को वेतन तभी देता है जब अभिभावक उसको फीस देता है ?? क्या उसके पास अपना रिज़र्व फंड नही ?? परन्तु नई ब्रांच खोलने के लिए उसके पास करोड़ो रुपए आ जाते हैं
    प्रत्येक स्कूल का एक रिज़र्व फण्ड होता है जो अधिकतर एक नई ब्रांच खोलने के लिए उपयोग मे किया जाता है। अभी स्कूल उस फण्ड से अपने नियमित अध्यापक/कर्मचारी को वेतन दे सकता है। ये सभी को ज्ञात है कि स्कूल के इस फण्ड की पूर्ति लगने वाले सभी आर्थिक दण्ड और आने वाले एडमिशन चार्ज से (बढ़ा कर) निकाल लेता है।
  • अब तक बच्चों की सेकुरिटी security) का पैसा तथा तीन माह एडवांस में ली फीस और कम से कम एक माह के बाद सिर्फ एक माह (3 माह का नही) का वेतन कर्मचारियों को दिया जाता है। इन सबका ब्याज़ स्कूल के प्रबंधन के जेब मे ही जाता है।
  • कुछ स्कूलों में आपदा प्रबंधन (contingency charge) के नाम से कई वर्षो से वसूला जा रहा था। अब वो चार्ज कंपोजिट अनुअल फीस (Composite Annual fees) मे चला गया। अब उसको उपयोग मे लाया जाये।
  • सभी प्रकार की फीस जैसे Annual charge, development fees, tuition fees, Smart board fees etc ( optional fee को छोड़ कर) कंपोजिट अनुअल् फीस (Composite Annual Fees) में समाविहित है। इसका 75% अभिभावक अगले 3 quarter fees में देंगे ही। फिर स्कूलों को हानि कहा हुई है।
  • जब अभिभावक के शुल्क देने मे विलम्ब हो जाता है तो छोटे से छोटे स्कूल भी ₹10 से ₹ 50 प्रति दिन के हिसाब से आर्थिक दण्ड तो वसूलता ही है साथ मे अभिभावक के साथ विद्यार्थियों को भी मानसिक प्रताड़ना देता है।

आर एस एस जो दुनिया भर मे दान करने के लिए प्रसिद्ध है। वो भी अपनी तीनो संस्थाओ (सरस्वती शिशु मंदिर, सरस्वती बालिका विद्धालय, भाऊ देवरस) के अध्यापको व अन्य कर्मचारियों को वेतन देने के लिए आगे क्यों नही आते। क्या आर एस एस भी अभिभावकों के पैसे से ही अपना नाम दानियो मे करना चाहते हैं।

त्याग और मानवता सिखाने वाले इस मंदिर की मूर्तिया स्वयं लूट-खसूट और अमानवीयता मे परिवर्तित हो गयी, ये समाज को पता ही नहीं चला या यह कहिए कि अपने बच्चों को जरूरत से ज्यादा स्नेह दिखाने की प्रतियोगिता में हम स्वयं अपने आपको लुटाते रहे।

मेरे इस प्रश्नवार प्रार्थना का तात्पर्य यह नही है कि सभी स्कूल इस श्रेणि में आते है। कुछ छोटे स्कूलों ने अपनी पूर्ण फीस माफ करके दरियादिली दिखायी है। जबकि काफी संख्या ऐसे स्कूलों की है जिनके पास करोडो के फंड है फिर भी फीस मांग रहे है। लेकिन जिन स्कूलों के पास वास्तव में फंड नही है, उनके लिए जो अभिभावक फीस जमा करने की योग्यता रखते है वे स्वय अपनी सामर्थ्य अनुसार फीस की भुगतान अवश्य करे। जिससे उन अभिभावकों को अवश्य मानसिक प्रताड़ना से भारी मुक्ति मिलेगी और स्कूलों को और फंड भी मिल जायेगा।अगर हमारी सरकार इस आशय के साथ 3 माह की फीस माफ करती है कि जो अभिभावक सक्षम है। मेरी सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जहा सभी धर्म,जाती, संस्था के लोग देश के लिए कुछ ना कुछ करने के लिए उतावले है तो हमारे ये शिक्षा के मंदिर जो देशप्रेम के मंदिर भी जाने जाते थे, आज देश की इस भयावह स्थिति पर उदासीन है, मौन है, पता नही क्यो ???

मनोज कटारिया
ये लेख भारत के सभी अभिभावक इस प्रार्थना को काफी संख्या मे अभिभावकों के फोन पर कड़वे अनुभवों के सुनने के बाद लिखा गया है।

NCRKhabar Mobile Desk

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