वामपंथी मीडिया ने चटखारे ले ले कर इस खबर को परोसा कि एक आरटीआई के अनुसार ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ को लेकर गृह मंत्रालय के पास कोई जानकारी नहीं। महाराष्ट्र में रहने वाला साकेत गोखले नाम का व्यक्ति है जिसने आरटीआई लगा कर यह जानकारी माँगी थी कि क्या ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ शब्द गृह मंत्रालय की तरफ से परिभाषित किया गया है। मैं प्रश्नकर्ता के भोलेपन का कायल हो गया हूँ, हालांकि जैसे ही महोदय के ट्विटर अकाउंट को देखा तुरंत ही फिल्म प्रेमनगर का वह गाना याद आया कि “ये लाल रंग, कब मुझे छोडेगा”। जनता के दरबार का जो सवाल है उसे राजद्वार पर रखने से ठीक ही उत्तर मिला है कि हम नहीं जानते। इस कारण सवाल से अधिक जवाब से लाल-मीडिया को रस मिला और उन्होंने कमर कस ली कि नहीं जानते तो क्यों नहीं जानते? फिर भाषण में बोला क्यों था? अखबार-पोर्टल ऐसे रंग गये जैसे टुकडे टुकडे गैंग वास्तविकता नहीं है।
हवा का रंग क्या है? पानी का आकार क्या है? चिडिया चीं चीं क्यों करती है? कुत्ता अपने मालिक को क्यों नहीं काटता…क्या अब यही सब पूछा जायेगा आरटीआई में? कल को किसी भाषण में कोई नेता कहे कौवा तुम्हारा कान ले गया तो सीधे गुलेल तलाशोगे? कान की क्या उपयोगिता? कोई पूछे अक्ल बडी की भैंस तो आरटीआई लगा कर नपवाना उचित कि साकेत की अक्ल कितने सेंटीमीटर, वायर का वेबपेज कितने इंच और भैंस कितने मीटर? टुकडे टुकडे गैंग पर सवाल से एक सुझाव आया है कि आरटीआई के तहत मुहावरों-लोकोक्तियों की सप्रसंग व्याख्या के लिये अलग विभाग खोल देना चाहिये।
बात आगे बढे इससे पहले जंगल चलते हैं जहाँ शेर का राज है। फूल ने आरटीआई लगाई थी कि सरकार ने वह चड्डी देना क्यों बंद करवा दिया जिसे पहन कर हम खिला करते थे। मानहानी का दावा, बडे हो चुके उस परिंदे ने ठोंक दिया जिसे अंडे से बाहर निकलने पर गुलजार साहब ने नंगा कहा था। वह गीत सबूत के तौर पर सामने रखा गया – एक परिंदा था शर्मिंदा, था वो नंगा। इससे तो अंडे के भीतर था वो चंगा, सोच रहा है बाहर आखिर क्यों निकला है? चड्डी पहन के फूल खिला है फूल खिला है। राजा के गृहमंत्रालय ने फूल को उत्तर दिया कि तुम्हारी अक्ल पर परदा पड गया है, कविता को गलत समझ रहे हो। फूल अदालत चला गया कि बात चड्डी की हुई थी सरकार ने चिंदी चिंदी चुरा कर उसका परदा बना दिया है। राजा शेर ने मैटर में हस्तक्षेप किया, मंत्री से कहा, कोर्ट का फूल के मामले में जो भी डिसीजन आये लेकिन परिंदे से सेटलमेंट करो कम्पनशेसन दो। मंत्री असंतुष्ट था लेकिन राजा ने समझाया कि बंधु नंगों से खुदा भी डरता है, हमारी क्या बिसात?
मतलब अब आरटीआई इस तरह होगी। नेता ने भाषण में कहा “अपनी खिचडी अलग पकाना”, यह खिचडी किस नियम के तहत पकाई गयी। कहा गया है “ओखली में सिर देना”, यह सिर किसका था? वक्तव्य दिया गया कि वे “उड़ती चिड़िया पहचानना” जानते हैं, बताया जाये कि चिडिया पर उनका क्या अध्ययन है, इसपर किस कॉलेज से डिगरी ली है? मंत्री जी के हवाले से छपा गडे मुर्दे उखाडे गये, बताया जाये कि कब्रिस्तान कौन सा था और मुर्दा किसका था? उसी भाषण में कहा गया कि वे खून का घूंट पी कर रह गये थे तो बताया जाये कि किसका खून पिया गया था? किस नियम के तहत उन्हें खून पीने का विशेषाधिकार प्राप्त है?
कौन है टुकडे टुकडे गैंग और उसके सदस्य? क्या इसके लिये किसी आरटीआई की आवश्यकता है? जो जिन्ना वाली आजादी मांग रहे हैं क्या उनके चेहरे छिपे हुए हैं? जो भारत तेरे टुकडे होंगे इंशा अल्ला इंशा अल्ला चीख रहे थे, उनसे देश में कौन अपरिचित है? जो कश्मीर, केरल, बस्तर को देश से अलग करने वाली आजादी मांग रहे हैं, वे कौन लोग हैं? लाजिम है कि हम भी इन अक्ल के अंधों की राजनीति को देख रहे हैं। मित्रों, वामपंथ इसी तरह काम करता है, ऐसे ही विषय तैयार करता है। नये दौर के मुहावरे वामपंथ को चुभ रहे हैं, वे छटपटा रहे हैं कि आम लोगों के मन मानस में “अरबन नक्सल” और “टुकडे टुकडे” जैसे शब्द और इसके भावर्थ से जुडे हुए नैरेटिव गाढे छप गये हैं, लोग लाल-वाद विचारधारा से बिफरने लगे हैं।
– राजीव रंजन प्रसाद