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साक्षी अजितेश को समाजसेवी शैलेन्द्र बरनवाल का खुला पत्र

सर्वप्रथम नव दंपति को शैलेंद्र वर्णवाल की तरफ से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। आप लोगों ने जो निर्णय लिया एवं उसको एक अंजाम तक पहुंचाने में जो बुद्धि एवं विवेक का प्रयोग किया वह सराहनीय है। यहां पर एक चीज स्पष्ट कर दू कि आप किसी अन्य जाति वर्ग या संप्रदाय के होते तो भी आपको यह परेशानी झेलनी ही पड़ती। इसीलिए यह बात कहना कि आप दोनों किसी खास जाति से हैं इसलिए आपके साथ यह समस्या उठ पड़ी है ,यह बिल्कुल गलत है ।अगर किसी अन्य जाति के भी आप होते तो भी यही समस्या आपके सामने उपस्थित होती। आप खुशकिस्मत हैं कि आपको मीडिया बाद में शासन प्रशासन एवं कोर्ट का भी सहारा मिल गया। अन्यथा कुछ भी अनहोनी हो सकता था, जिसके ढेरों उदाहरण नित्य प्रतिदिन न्यूज़ में आते रहता है। इसके पहले भी हजारों जोड़ें माता पिता के मर्जी के खिलाफ जाकर अंतरजातीय एवं अंतरधार्मिक विवाह की है।

 

एक और आपके पक्ष में अच्छी बात यह रही कि आप के पिता ने सार्वजनिक रूप में यह कहा कि आप बालिग हैं और अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। आप जहां रहे, खुश रहे। उसी मंच पर आपने माफी भी मांगी, यह अच्छी बात है,आप भावनाओं की संवेदना को समझती हैं ।आपको आपके पिता के परेशानियों का एहसास है। सामाजिक परिस्थिति एवं विसंगतियों को आप भली-भांति जानती है। पिता के शंका अकारण नहीं है क्योंकि कई बार इसमें धोखा भी हो जाता है एवं लड़की को मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताड़ित की जाती है।

आप दोनों का निर्णय कुछ लोगों की नजर में भले ही गलत हो लेकिन संवैधानिक व कानूनी रूप से सही है, इसकी व्याख्या कोर्ट ने करके उस पर अपना निर्णय भी सुनाया है। यह भी कहा है कि आपको 2 महीने के अंदर विवाह का पंजीकरण कराना होगा।

एक बात खल रहा है कि मीडिया का सहारा लेकर अपने पिता पर दबाव डाल रहे हो कि आपको पिता माफ कर दें एवं अपना ले।इस प्रकार का दबाव मीडिया के द्वारा डालना सरासर अनुचित है। अगर आप यह सोच रहे हैं कि पिता पुनः दवाब में आकर आपको वही सुख सुविधाएं दे दे जो इस प्रकरण के पहले दे रहे थे तो यह और भी गलत है ,तर्कसंगत तो बिल्कुल भी नहीं। पहले वाली जिंदगी अब तो बिल्कुल ही संभव नहीं है। पिता एवं अपने परिवार से यह उम्मीद रखना बिल्कुल ही गलत है।

पिता के अपनी भावनाएं है एवं संविधान ने उन्हें अधिकार दे रखें। परिस्थितियां, विश्वास एवं हालात ठीक होंगे तो यह अपने आप भी हो सकता है। विश्वास प्यार भावनाएं एवं समर्पण किसी भी दबाव में नहीं होता है।
आप दोनों ने जो निर्णय लिया है उसमें जब आपके पिता एवं परिवार का कोई सहमति ही नहीं है तो उनसे उम्मीद पालना सरासर बेवकूफी और गलत है।

इस समय परेशान दोनों ही पक्ष है बेहतर है की मीडिया का सहारा ना लेकर दोनों पक्ष शांत होकर अलग अलग संभलने की कोशिश करें। अपने कैरियर पर ध्यान दें। क्योंकि परेशान इस समय दोनों पक्ष है।

जब दोनों पक्षों में विश्वास संवेदनाएं और भावनाएं सामान्य होगी, तब जाकर मिलने मिलाने एवं अपनाने की बात करें। इसके लिए कोई समय निर्धारित नहीं है ।एक महीना 1 साल 20 साल या फिर पूरी जिंदगी भी लग सकती है।विश्वास एवं धोखा दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।

इस समय तो आप दोनों आपसी सामंजस एवं भरोसा को बरकरार रखते हुए समाज में फिर से उठने की कोशिश करें एवं आत्मनिर्भर बने। सबसे ज्यादा जरूरी आर्थिक आत्मनिर्भरता है। क्योंकि जो अभी आर्थिक मदद कर रहा है कल को वही ताना मारने लगेगा ,जलील करने लगेगा। जो प्रश्न आप दोनों पर उठ रहे हैं, उन प्रश्नों का उत्तर, जब आप सक्षम और आत्मनिर्भर होगे ,जवाब अपने आप समाज और परिवार को मिलते चला जाएगा, जिससे परिवार एवं समाज की शंकाएं निर्मूल साबित होती चली जाएंगी।

लेकिन यह इतना आसान नहीं है। इसके लिए काफी संघर्ष मेहनत एवं समझदारी करनी होगी।इसके लिए ना तो मीडिया ,शासन-प्रशासन और ना ही कोर्ट इसमें आपको मदद करेगी। आपको स्वयं ही पुरुषार्थ कर समाज में पुनः स्थापित होने की कोशिश करनी होगी।

जो कदम आप ने उठाया है वह इतिहास में दर्ज हो चुका है उससे पीछे हटने का भी कोई मतलब भी नहीं है, क्योंकि उस पर भी समाज ताने मारेगा और हंसी का पात्र का बनाएगा। इसलिए आगे ही बढ़ना है। सर्वप्रथम आर्थिक रूप से निर्भर बने फिर सामाजिक रूप से आगे बढ़ने की कोशिश करें। सफल होगे तो यही विरोधी लोग आपके साथ खड़े होंगे। असफल लोगों की मनोहर कहानियां ज्यादा दिन नहीं चलती। क्योंकि आगे भी इस प्रकार के प्रकरण आ रहे हैं।

शैलेंद्र वर्णवाल
लेख में दिए विचार लेखक के है उनसे एन सीआर खबर का सहमत होना आवश्यक नहीं है 

एन सी आर खबर ब्यूरो

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