तहजीब खोते मेहमान और मेजबान : निधि राजदान आपका शो है , मगर आप खुद सिर्फ संचालक थी – आशु भटनागर

मैंने देखा तो नहीं पर पता चला कल NDTV के टॉक शो में विवाद हुआ , जाहिर है कोई नई बात नहीं , कोई निधि राजदान नाम की एंकर उसको होस्ट कर रही थी , विवाद में हालत यहाँ तक आये की उन्होंने बीजेपी का पक्ष रखने आये भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा को बीच बहस जाने को कह दिया I
उन्होंने बाहर करते हुए कहा की मेरा शो है मैं जिसको चाहे बाहर कर सकती हूँ I यहाँ मैं ना संबित पात्रा का पक्ष लेने बैठा हूँ ना ही निधि राजदान का I क्योंकि आजकल के मोहोल में जब लोगो की तो छोडिये पत्रकार तक पार्टी पोलीटिकस में बंट गये है किसी से भी सही गलत की उम्मीद रखना गलत है I टॉक शो का मतलब चर्चा परिचर्चा कम , एक दुसरे की इज्जत उतारना ज्यदा है I इसमें मेहमान ही नहीं मेजबान भी शामिल हैं I लेकिन किसी भी विषय पर निधि राजदान का इस कदर उत्तेजित हो जाना की कार्यक्रम और मेजबान होने की मर्यादा ही भूल जाए, सही नहीं कहा जा सकता I
वस्तुत टेलीविजन पत्रकारिता का ये पतन का दौर है जिसमे असहमति की कोई जगह नहीं I #NDTV के चैनेल पर होने के कारण इस आलोचना को और भी ज्यदा माना जाना चाह्यी क्योंकि इसके बारे में कहा जाता है की ये बुधिजिवियो का चैनेल है I
लेकिन जिस तरह की घटना हुई उसको सराहा सिर्फ इसलिए जाए की वो प्रवक्ता बीजेपी का था गलत होगा I घटना अगर आज एक के साथ हुई तो कल किसी और के साथ भी होगी , ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए आज ज़रूरत है मीडिया की एक गाइड लाइन की जिसमे ये समझा जाए की आखिर कहाँ तक आप मुद्दे को खीच सकते है I
ज़रूरत आज टॉक शो कर रहे एंकरों के मनोवैज्ञानिक ट्रीटमेंट की भी है क्योंकि रोज रोज बहस करते करते एक लेवल के बाद आप चिडचिडे हो जाते है I टेलीविजन पत्रकारिता में जिस तरह से तवरित प्रतिक्रया देनी होती है उसके लिए ज़रूरत है की न्यूज़ रीडर और मोडरेटर के फर्क को चैनेल समझना शुरू करे I

आशु भटनागर