” अयोध्या में तो सात हज़ार से ज़्यादा मंदिर हैं, एक और राम मंदिर बन गया तो क्या फर्क पड़ जायेगा ! प्लीज अब इस मुददे पर विवाद खड़ा न करें” …… “अयोध्या में सारी विवादित भूमि को समतल करके वहां एक हॉस्पिटल बना देना चाहिए ” ……” वहां एक पार्क बना दो, राम रहीम पार्क, जहाँ हिन्दू मुस्लिम बच्चे मिल कर खेल करेंगे” , सोशल मीडिया पर आज कल ‘बागो में बहार है’ टाइप ऐसे बुद्धिजीवियों की बहार आई हुए हैl दशकों पुराने अयोध्या विवाद को लेकर इन लोगों की जेबों में कोई दर्जन भर “सर्वमान्य फॉर्मूले” पड़े हुए हैं और शायद इन्हें आज कल रोज़ सुबह शाम ये सोच कर अचरज होता होगा कि जहाँ तक इनकी सोच जा रही है वहां तक देश के मूर्धन्य बुद्धिजीवियों की सोच क्यों नहीं जा पा रही है ? क्योंकि सोच वहां तक जाती तो कितनी आसानी से राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद का हल निकल आता !
सोशल मीडिया के बयान बहादुरों की ये फ़ौज युवा है l इन्हें नहीं पता कि 21 वीं सदी में इनकी सोच जहाँ तक जा रही है, बीसवीं सदी में लोग पहले ही वहां तक सोच कर आ चुके हैंl और सोच का क्या है, जहाँ सोच वहां शौचालय! और ये सार्वजानिक सोच तो सार्वजानिक शौचालय तक भी पहुँच चुकी है l
1992 में जब बाबरी ढांचा ढहा दिया गया था,उसके बाद इंडिया टुडे ग्रुप ने अयोध्या पर एक विशेष पुस्तिका निकाली थी जिसमें ‘सेक्युलर – लिबरल’ कलाकारों – बुद्धिजीवियों ने अयोध्या में रामजन्मभूमि विवाद के हल सुझाये थे l इस पुस्तिका में कई दर्जन सुझाव थे, जिनमें हॉस्पिटल- पार्क -स्कूल बनाने के विकल्प तो थे ही, एक विकल्प यह भी दिया गया था कि रामजन्मभूमि पर पब्लिक शौचालय बना दिया जाए l मुझे याद नहीं कि ये सुझाव देने वाला कौन था, लेकिन इस पर कई लोगों ने तब प्रतिकार जताया था l लेकिन उन दिनों लेफ्ट-लिबरल ताकतें इतनी शक्तिशाली थीं कि विरोध के ये स्वर नक्कारखाने में तूती की तरह दब कर रह गए l
पर आज हालात बदले हुए हैं l जो लोग आज हॉस्पिटल – पार्क बनाने जैसे सुझाव दे रहे हैं उनकी सोच शायद शौचालय तक भी जाती होगी, पर देश में आज मोदी जी के स्वच्छता अभियान के साथ साथ एक अलग तरह का दूसरा स्वच्छता अभियान भी चल रहा है, जिसके नतीजे अभी उत्तर प्रदेश के चुनावों में दिखाई दिए l इसलिए आज ऐसा दुस्साहस कोई नहीं करता l
पर जो ये कह रहे हैं कि एक और मंदिर बनाने से क्या होगा….हॉस्पिटल बनवा दो वगैरह- वगैरह उन्हें चाहिए कि पहले देश का इतिहास पढ़ लें ,राम मंदिर आंदोलन का इतिहास पढ़ लें l हो सके तो एक बार अयोध्या नहीं तो कम से कम मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर ज़रूर हो आएं l वहां जाकर पूजा अर्चना न करें, क्योंकि वो भी महज़ ‘एक और’ मंदिर ही तो हैं, पर वहां खड़े प्राचीन भवन का मुआयना ज़रूर करें l और उसके बाद ही अपने सुझाव दें l क्योंकि पढ़-लिख कर, जानकारी जुटा कर कुछ कहा जाए तो बात में कुछ वज़न होता हैं वरना आप खामख्वाह मूढ़ साबित हो जाते हैं l और मैं मानता हूँ कि इस देश को जेहादी – कट्टरपंथी मुसलामानों के साथ- साथ मूढ़ हिंदुओं से भी खतरा है l
अशोक श्रीवास्तव दूरदर्शन के जाने माने पत्रकार हैं , प्रस्तुत लेख उनके ब्लॉग – ‘प्रारम्भ’ से लिया गया है I