साइरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद से हटाए जाने का कारण अभी तक साफ नहीं हुआ है। लेकिन बताया जाता है कि उनके कई कदमों से बोर्ड नाराज था। अंग्रेजी न्यूज चैनल एनडीटीवी के अनुसार मिस्त्री रतन टाटा को साइडलाइन करना चाहते थे। साथ ही वे कंपनी के खास प्रोजेक्ट्स को भी बेचना चाहते थे। टाटा और मिस्त्री के बीच गंभीर मतभेद खड़े हो गए थे। यह भी माना जा रहा था कि मिस्त्री व्यक्तिगत रूप से टाटा को निशाना बनाने की तलाश में थे। खबरों के अनुसार मिस्त्री को हटाने की पटकथा पहले ही तैयार हो गई थी। मिस्त्री को हटाने के लिए कई महीनों पहले ही फैसला ले लिया गया था।सूत्रों के अनुसार जापानी टेलीकॉम कंपनी एनटीटी डोकोमो से कानूनी लड़ाई हारने ने मिस्त्री के बचे-खुचे अवसर भी खत्म कर दिए। अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने टाटा को 1.17 बिलियन डॉलर रुपये डोकोमो को चुकाने को कहा था।
वहीं टाटा स्टील के ब्रिटेन स्थित प्लांट को बेचने का फैसला भी बोर्ड को नागवार गुजरा। रतन टाटा ने खुद इस यूनिट के लिए बातचीत की थी। वहीं मिस्त्री जेएलआर-जगुआर लैंड रोवर में भी नया निवेश नहीं ला पाए। शिकागो में कंपनी की होटल बेचने के फैसले ने भी मिस्त्री के भविष्य का तय कर दिया था। खबरों के अनुसार ब्रिटेन में रतन टाटा ने जो साख बनाई थी साइरस मिस्त्री उसे खो रहे थे। नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक बनाने वाले टाटा ग्रुप की दो कंपनियों के अलावा बाकी सब कमाई के लिए जूझ रही हैं।
टाटा संस के प्रवक्ता ने फैसले की जानकारी देते हुए बताया, ”बोर्ड ने सामूहिक बुद्धिमत्ता और प्रधान शेयरहोल्डर्स के सुझावों के आधार पर टाटा संस और टाटा ग्रुप के दीर्घकालीन हितों को ध्यान में रखते हुए बदलाव का फैसला किया है।” रतन टाटा ने इस फैसले के बाद कंपनी के कर्मचारियों को खत लिखकर कहा कि स्थायित्व लाने के लिए उठाए गए इस कदम को वे स्वीकार करते हैं। उन्होंने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चिट्ठी भेजी। रतन टाटा के 75 वर्ष की आयु पूरे करने पर 29 दिसंबर 2012 में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद अब 48 वर्ष के हो चुके मिस्त्री को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर चुना गया था। वह इस पद पर नियुक्त होने वाले दूसरे ऐसे सदस्य थे जो टाटा परिवार से नहीं थे। उनसे पहले टाटा खानदान से बाहर के नौरोजी सक्लतवाला 1932 में कंपनी के प्रमुख रहे थे।