
पखवाड़े भर पहले चर्चा थी कि कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी सक्रिय राजनीति से संन्यास ले सकती हैं। हालांकि पिछले हफ्ते जब उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के घर तक मार्च किया तो लगा कि जैसे वह राजनीति की नई पारी शुरु कर रही हैं।
कोयला घोटाले में आरोपी बनाए गए मनमोहन सिंह के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए सोनिया गांधी ने कांग्रेस मुख्यालय से उनके घर तक मार्च किया। शीर्ष नेताओं के साथ कदमताल करती सोनिया की तस्वीरों ने निरुत्साहित कार्यकर्ताओं को जोश से भर दिया।
जानकारों ने कहा कि सोनिया गांधी मनमोहन सिंह को जारी किए गए समन का इस्तेमाल उसी तरह कर सकतीं है, जैसे इंदिरा गांधी ने 1977 में अपनी गिरफ्तारी के आदेश का किया था। कांग्रेस में जान डालने की सोनिया की ये नई रणनीति थी।
मंगलवार को सोनिया गांधी ने एक बार फिर मार्च निकाला। इस बार वह विपक्ष की 14 पार्टियों के सांसदों के साथ मार्च कर रही थीं। सोनिया नए मार्च ने 1998 की उस कांग्रेस की याद दिला दी, जिसने प्याज को मोहरा बना कर सत्तासीन राजग सरकार की चूलें हिला दी थीं। महंगाई के मुद्दे पर उस समय भी विपक्ष सोनिया के इर्दगिर्द खड़ा हो गया था। सोनिया ने चंद दिनों पहले ही कांग्रेस की कमान संभाली थी।पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार और उसके बाद एक बाद विधानसभा चुनावों में सफाया होने के बाद ऐसा लगने लगा था कि सोनिया गांधी की राजनीति चुक गई है। लेकिन सात दिनों में लगातार दो मार्चों को नेतृत्व कर मानों उन्होंने मुनादी कर दी है कि उन्हें चुका हुआ न माना जाए। सोनिया एकाएक नए राजनीतिक अवतार में दिखने लगीं।
कोयला घोटाले में आरोपी बनाए गए मनमोहन सिंह का समर्थन कर सोनिया ने कांग्रेस में जान फूंकने की कोशिश की। सोनिया की रणनीति कांग्रेस की उस पुरानी रणनीति से बिलकुल अलग थी, जिसमें उसने घोटालों में आरोपी बनाए जाने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का साथ छोड़ दिया था।
सोनिया ने मनमोहन का समर्थन तो किया है, विश्लेषकों ने ये तक कहा कि सोनिया मनमोहन के समन के बाद वैसी ही रणनीति अपना सकतीं हैं, जैसी इंदिरा ने अपनी गिरफ्तारी के बाद दिखाई थी।
उल्लेखनीय है कि 1977 में इंदिरा गांधी के खिलाफ पद के दुरुपयोग के मामले में गिरफ्तार किया गया था। इंदिरा ने खुद को शहीद की तरह पेश किया था और तत्कालीन मोरारजी देसाई सरकार के खिलाफ देश भर में आंदोलन खड़ा कर दिया था। इंदिरा की वह रणनीति काफी हद तक कारगर रही थी और तीन साल बाद ही वह सत्ता में वापस लौट आई थी।
हालांकि नए दौर में सोनिया कितनी कामयाब होंगी, ये तो वक्त ही बताएगा।बजट सत्र की शुरुआत में ही भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधनों के विरोध में प्रदर्शन शुरु हो गए थे। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के नेतृत्व में किसानों ने दिल्ली तक मार्च किया और जंतर मंतर पर धरना दिया था। उस धरने में आम आदमी पार्टी समेत कई राजनीतिक दल शामिल थे। कांग्रेस उस प्रदर्शन से अलग थी।
भूमि अधिग्रहण कानून के बदलावों के विरोध में कांग्रेस भी प्रदर्शन कर रही थी, लेकिन अन्य दलों से अलग हटकर। जंतरमंतर पर कांग्रेस नेता प्रदर्शन कर रहे थे। भट्टा पारसौल से उन्होंने किसानों के साथ एक पद यात्रा भी निकाली।
भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे कांग्रेस कार्यकर्ताओं और किसानों पर पुलिस ने लाठी चार्ज भी किया। हालांकि मंगलवार को कांग्रेस ने सोनिया के नेतृत्व में संसद से राष्ट्रपति भवन तक मार्च का फैसला किया। विपक्ष के कई दल भी उस मार्च में शामिल हुए।
सोनिया के नेतृत्व ने विपक्ष की एकजुटता का नई धार देदी। लोकसभा चुनावों में हार के बाद अलग-थलग पड़ा विपक्ष पहली बार उत्साहित दिखा और भूमि अधिग्रहण बिल पर आर-पार की लड़ाई की चेतावनी दे डाली।
माना जा रहा है कि विपक्ष की एकता के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। माना जा रहा है कि सोनिया गांधी के नए उभार से राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता एक बार फिर सवालों के घेरे में आ जाएगी। बजट सत्र के पहले से ही राहुल छुट्टी पर हैं। भूमि अधिग्रहण बिल पर हो रहे प्रदर्शनों में जब उनकी सर्वाधिक जरूरत है, वह गायब हैं और नेतृत्व सोनिया कर रही हैं।
राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना भर से कई कांग्रेसी खफा हैं। दिग्गज कांग्रेस नेता अजीत जोगी ने कहा है कि राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाया गया तो कई नेता पार्टी छोड़ सकते हैं।
सोनिया की नई पारी से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह है, लेकिन वे ये भी मानते हैं कि राहुल को अध्यक्ष पद के लिए सोनिया ही तैयार कर रही हैं।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस में इसी वर्ष सांगठनिक चुनाव होने हैं। सोनिया एक बार फिर पार्टी की कमान संभालने के लिए तैयार हो जाती हैं, तो 2019 का चुनाव भी उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।